धिक्कार है उस जिंदगी पर जो मक्खियों की तरह पापों की विष्ठता के ऊपर भिनभिनाने में और कुत्ते की तरह विषय भोगों की जूठन चाटने में व्यतीत होती है। उस बड़प्पन पर धिक्कार है, जो खुद खजूर की तरह बढ़ते हैं पर उनकी छाया में एक प्राणी भी आश्रय नहीं पा सकता। सर्प की तरह धन के खजाने पर बैठ कर चौकीदारी करने वाले लालची किस प्रकार सराहनीय कहे जा सकते हैं? जिनका जीवन कुछ स्वार्थों को पूरा करने की उधेड़ बुन में निकल गया। हाय, वे कितने अभागे हैं। सुर दुर्लभ देह रूपी बहुमूल्य रत्न, इन दुर्बुद्धियों ने काँच और कंकड़ के टुकड़ों के बदले बेच दिया, किस मुख से यह कहेंगे कि हमने जीवन का सद् व्यय किया। इन कुबुद्धियों को तो अन्त में पश्चाताप ही प्राप्त होगा। एक दिन उन्हें अपनी भूल प्रतीत होगी, पर उस समय अवसर हाथ से चला गया होगा और सिर धुन-धुन कर पछताने के अतिरिक्त और कुछ हाथ न रहेगा।
मनुष्यों! जिओ और जीने योग्य जीवन जिओ, ऐसी जिन्दगी बनाओ जिसे आदर्श और अनुकरणीय कहा जा सके। विश्व में अपने ऐसे पद चिह्न छोड़ जाओ जिन्हें देख कर आगामी संतति अपना मार्ग ढूँढ़ सके। आपका जीवन सत्य से, प्रेम से, न्याय से भरा हुआ होना चाहिये। दया, सहानुभूति, आत्मनिष्ठा, संयम, दृढ़ता, उदारता आपके जीवन के अंग होने चाहिये। हमारा जीवन मनुष्यता के महान गौरव के अनुरूप ही होना चाहिये।