साँसारिक वैभव मनुष्य को अपनी दृष्टि में न तो ऊँचा उठा सकता है और न नीचा गिरा सकता है। महान पुरुष स्वयं अपनी दृष्टि में बड़ा होता है, संसार चाहे उसकी महानता से परिचित हो या न हो। नीच मनुष्य स्वयं अपनी कमजोरी जानता है, अतः वह उस सतह तक कभी ऊँचा नहीं उठ सकता, जिस तक उसके प्रशंसक उसे उठाना चाहते हैं।
*****
मनुष्य अपनी इच्छा और रुचि के अनुकूल संसार को नहीं बना सकता अपितु साँसारिक परिस्थिति के अनुकूल अपने आपको ही बनाना होता है। संसार सार्वजनिक आवश्यकताओं के लिए बना है। व्यक्ति को अपनी आकांक्षाएं सार्वजनिक आवश्यकता के अन्तर्भूत कर देना चाहिए।