दाम्पत्ति प्रेम का संतति पर प्रभाव

April 1946

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पति पत्नी के आपसी घनिष्ठ एवं सच्चे प्रेम का बहुत ही गंभीर प्रभाव बालकों के स्वास्थ्य, वर्ण एवं संस्कारों पर होता है। जो स्त्री पुरुष हृदय से एक दूसरे को प्रेम करते हैं और एक दूसरे की सुविधाओं का ध्यान रखते हैं उनके अन्तःकरण आपस में पूरी तरह मिल जाते हैं। जिस प्रकार उत्तम खाद और उत्तम पानी के मिलने से सुन्दर हरे भरे पौधे उगते हैं और उनकी भीतरी बाहरी सुन्दरता देखने ही योग्य होती है, उसी प्रकार पति और पत्नी का निष्कपट प्रेम सम्बन्ध होने पर बालकों का शरीर और मन परिपुष्ट हो जाता है।

डॉक्टर जान कावेन के अनुभव में एक ऐसा बालक आया जो बहुत छोटी उम्र का होने पर भी मशीनों के काम में बहुत जानकारी और दिलचस्पी रखता था। उन्होंने उसके पिता से पूछ कर मालूम किया कि जिन दिनों वह बालक अपनी माता के पेट में था तब उसका पिता इंजीनियरिंग संबंधी एक कार्य में बड़ी तत्परता से लगा हुआ था, वह जब काम पर से लौट कर आता तो अपनी गर्विणी स्त्री से भी उसी संबंध की वार्तालाप करता, तदनुसार बालक की प्रवृत्ति उसी ओर झुकी हुई थी।

डॉक्टर फाउलर के कुछ अनुभव बहुत ही महत्वपूर्ण हैं, वे अपनी पुस्तक में लिखते हैं- मैं एक दिन घूमने जा रहा था कि रास्ते में दो बहुत ही तन्दुरुस्त और सुन्दर बालकों को देखा। मेरी इच्छा उनके सम्बन्ध में अधिक जानने की हुई। तलाश करता हुआ उनके घर पहुँचा और उनके माता-पिता से उत्तम सन्तान प्राप्त करने के कारणों के सम्बन्ध में पूछ ताछ की। मालूम हुआ कि वे इस सम्बन्ध में किसी विशेष नियम का पालन नहीं करते केवल उन दाम्पत्ति में अत्यधिक प्रेम है। दोनों ने आपस में कभी किसी को कटु शब्द नहीं कहा और न कोई किसी से नाराज हुआ। इसी गुण के कारण उन्हें उत्तम सन्तानें प्राप्त हुई।

इन्हीं डॉक्टर साहब के इलाज में एक ऐसा लड़का आया जो बहुत कमजोर और बुद्धिहीन था। उसकी माता यद्यपि बहुत तन्दुरुस्त और चलते पुर्जा थी, फिर भी ऐसी सन्तान क्यों, उत्पन्न हुई, इससे डॉक्टर साहब को आश्चर्य हुआ, उन्होंने उस स्त्री से पूछताछ की तो मालूम हुआ कि दाम्पत्ति प्रेम के अभाव के कारण ऐसी सन्तान हुई, इस स्त्री के साथ उसके पति की सदा अनमन बनी रहती थी।

इसी तरह की एक और कन्या को उन्होंने देखा जो बड़ी ही डरपोक और रोनी सूरत की थी। जवान होने पर भी उसे साँसारिक कार्यों की ओर बिल्कुल रुचि न थी। सदा एकान्त में रहती और बाइबिल पढ़ा करती, कोई जरा भी कुछ कह देता तो आँसू नाक पर आ जाते। पूछने पर उसकी माता ने बताया कि जब यह लड़की गर्भ में थी तो उसका पति सदा उससे झगड़ता और रुलाता रहता था। माता दुखी होकर एकान्त में पड़ी रहती और अपने दुखी चित्त को धार्मिक गाथाएँ पढ़ कर शान्त करती रहती थी। यही सब गुण उस कन्या में भी आ गये।

डॉक्टर डे. का यह मत है कि माता-पिता के आपसी प्रेम में जितनी अधिक घनिष्ठता होगी, बालक उतना ही अधिक उत्साही, स्फूर्तिवान और तेजस्वी होगा। कारण यह है कि गर्भ पलता तो माता के पेट में है, परन्तु उसका मूल बीज पिता के शरीर से आता है, इसलिए माता के द्वारा प्राप्त होने वाली वस्तुएं ही उसके लिए पर्याप्त नहीं है। मनुष्य स्थूल ही नहीं है। उसका जितना भाग स्थूल दिखाई पड़ता है, उसकी सूक्ष्मता उससे हजार गुनी अधिक है। मनुष्य को गुप्त शक्तियाँ सूक्ष्म लोक से प्राप्त होती हैं। चूँकि बालक माता के बन्धन में होता है, इसलिये वह अपने योग्य सूक्ष्म तत्व उसी से प्राप्त कर सकता है, जिससे माता पिता की विद्युत शक्ति आकर्षण रखती हो। यों तो माता के पास अन्य स्त्री-पुरुष भी रहते हैं, परन्तु आकर्षण केवल आन्तरिक प्रेम के द्वारा ही होता है। स्त्री का यदि अपने पति से पूर्ण प्रेम है तो अपनी आकर्षण शक्ति द्वारा पति के सूक्ष्म तत्वों को खींच कर उदरस्थ बालक को देती रहेगी। इसी प्रकार यदि पति का पत्नी से अधिक स्नेह है, तो वह अपने तत्वों को उसकी ओर फेंकता रहेगा। इस प्रकार के सूक्ष्म आकर्षण द्वारा बालक उन शारीरिक और मानसिक वस्तुओं को प्राप्त कर लेता है, जिसकी उसे आवश्यकता है। पिता द्वारा यह गुण इसलिए आसानी से प्राप्त हो सकते हैं कि गर्भ अपने मूल स्थान की वस्तुओं का अभ्यासी होता है। शुभ कीट जो अब गर्भ का रूप धारण किये हुये हैं, अपने उद्गम स्थान को भूल नहीं गया है। जिस प्रकार बछड़ा अपनी माता का दूध आसानी से पी लेता है और माता उसके लिए अधिक दूध निकाल देती है, इसी प्रकार पिता के तत्वों से ही गर्भ का अधिक मात्रा में मानसिक पोषण होना सम्भव है।

स्त्री पुरुष में प्रेम की घनिष्ठता होने पर ही यह सूक्ष्म वस्तुएं प्राप्त हो सकती हैं। यदि ऐसा न हो और इसके विपरीत दंपत्ति में अनबन या उदासीनता रहती हो, तो गर्भ का पूरा पोषण नहीं हो पाता और जिस प्रकार भोजन मिलने पर, पानी न मिलने या पानी मिलने पर भोजन न मिलने से अपूर्णता रहती है-पेट नहीं भरता और संतोष नहीं होता, उसी प्रकार पिता के तत्वों के अभाव में बालक का शारीरिक और मानसिक संगठन अपूर्ण रह जाता है। चाहे उसके शारीरिक अंग देखने में पूरे भले ही प्रतीत होते हैं, परन्तु वास्तव में उसके अन्दर बहुत सी दुखदायी त्रुटियाँ रह जाती हैं, जो कि बड़े होने पर प्रकट होती हैं।

डॉक्टर बेवर कहते हैं कि- “स्त्री, पुरुषों का उदासीनता या उपेक्षा पूर्वक जीवन बिताना सब दृष्टिकोणों से हानिकर है, उससे तो यही अच्छा है कि वे विवाह ही न करें। स्त्री, पुरुष आपस में अधिकाधिक प्रेम बढ़ा कर केवल अपने शरीरों की उन्नति करते और जीवन को सुखमय ही नहीं बनाते हैं, वरन् उत्तम संतान भी उत्पन्न करते हैं। मैंने तीन सौ से अधिक परिवारों की गुप्त जाँच की है और इस परिणाम पर पहुँचा हूँ कि प्रेमी दम्पत्तियों ने ही उत्तम शरीर और बुद्धि वाली संतानें उत्पन्न की हैं। चालीस परिवार मेरी जाँच में ऐसे आये, जिनमें स्त्री, पुरुषों में अनबन रहा करती थी। इनके तीन चौथाई बच्चे बड़े बेढंगे, बेहूदे, अंग-अंग, दुर्बल और मूर्ख थे। जो बच्चे अच्छे थे, वे भी प्रेमी दम्पत्तियों की सन्तान की अपेक्षा कहीं नीचे दर्जे के थे।


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