पेट ठीक रखने की दो क्रियाएं

April 1946

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पेट को ठीक रखना एक ऐसा सुनिश्चित उपाय है जिससे प्रायः सभी रोगों से बचा जा सकता है। 1. कड़ी भूख लगने पर खाना। 2. खूब चबा-चबा कर खाना। 3. पेट को थोड़ा खाली रहने देना। 4. सुपाच्य सात्विक पदार्थ खाना और 5. भोजन में अमृत की भावना करके खाना। इन पाँच नियमों का जो सावधानी के साथ अनुसरण करता है उसको कब्ज की शिकायत करने का अवसर नहीं आता।

पेट की कमजोरी दूर करके पाचन यंत्रों को सबल बनाने तथा आमाशय और आँतों की खराबियों को दूर करने के लिए योगाभ्यास के अंतर्गत ‘उड्डियान बंध’ और ‘नौलि कर्म’ दो साधनाएं ऐसी हैं जिनसे पेट का बड़ा हित होता है। उन दोनों की विधि नीचे बताई जाती हैं।

उड्डियान बंध -

प्रातःकाल सुखासन या पद्मासन से बैठ कर दोनों हाथों को दोनों घुटनों पर रखो सिर को जरा नीचे की तरफ झुकाओ, रीढ़ (मेरुदंड) जरा झुकने दो। फिर आहिस्ता-आहिस्ता श्वांस नासिका द्वारा बाहर निकाल डालो, और साथ ही उदर को अन्दर खींचो और बाहर निकालो, इस प्रकार चार बार करो, पुनः श्वास लेकर निकाल दो और फिर उसी प्रकार करो, प्रथम दिन प्रातःकाल 5 या 6 बार करो और सायंकाल भी यानी प्रातः-काल के भोजन के 5 घन्टे पश्चात् 5 या 6 बार करो, इसको उड्डियान बंध कहते हैं। पेट जितना हो सके अन्दर जाने दो और जल्दी से बाहर निकाल दो, ध्यान रहे! जब कि पेट को अन्दर लेने तथा बाहर निकालने का काम करते रहो तब तक श्वाँसों को बन्द रखो यानी निकाले हुए ही रहना चाहिये। यदि रोग पुराना और शरीर स्थूल (मोटा) हो तो उक्त प्रमाण से अधिक यानी 8 या 9 बार करो और धीरे-धीरे बारह बार करना विशेष लाभप्रद होगा।

ऐसा अभ्यास प्रति दिन 7 दिन तक दो-दो बार अधिक बढ़ाते जा वो तीन या चार दिन के बाद बहुत ही आराम मालूम होने लगेगा। दस्त साफ आवेगा, पेट की शिकायतें दूर होती जायगी, नींद अच्छी आवेगी, शरीर हल्का व चित्त प्रसन्न रह कर स्फूर्ति दीखने लगेगी, परन्तु ऐसे समय में खाने पर पूर्ण ध्यान रखना चाहिये भारी खुराक बिलकुल नहीं लेनी चाहिये।

नौलि कर्म -

जब उड्डियान अच्छी तरह होकर खाद्य पदार्थ को भली प्रकार मिश्रित होकर रस बनने लगे।

प्रायः 15 दिन बाद सिद्धासन या पद्मासन से बैठकर घुटनों पर दोनों हाथ रखो और सिर को नीचे झुकाकर रीड़ को भी झुकाओ, फिर श्वास संपूर्ण रूप से बाहर निकाल कर पेट को अन्दर की ओर खींचो जब पेट अच्छी तरह अन्दर चला जाय तब केवल सिर्फ दोनों नलों को युक्ति से ऊपर को उठाओ (पेट नहीं उठाना सिर्फ नले ही उठाना चाहिये) और उठने के बाद दायें से बायें तरफ और बाई से दाई तरफ फिराओ, इस प्रकार तीन मिनट तक करो बीच-बीच में आराम लेते जाओ। यह कार्य प्रातःकाल (सुबह) उठने के साथ ही करना चाहिये, फिर दस मिनट बाद शौच को जाओ।

इस प्रकार नित्य करने से उदर से सर्व रोग नष्ट होकर पाचन शक्ति बढ़ती है और पेट के ठीक रहने से अन्य रोगों से बचाव होता रहता है।


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