सत्य ही शक्ति है।

April 1946

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जो मनुष्य बोलता कुछ है, विचारता कुछ और करता कुछ और ही है वह आगे चलकर बड़ा नीच विश्वासघाती और पर निन्दा में रत हो जायगा। वह समाज-कण्टक बन कर समस्त संसार के तिरस्कार का पात्र हो जायगा। सत्य पक्ष के ऊपर पहले चाहे विपत्ति भी आ जाय परन्तु अन्त में उसकी जीत हुए बिना नहीं रहती। सत्य का मार्ग अगम होने पर भी सुगम, सीधा और सरल होता है। सत्य के ही बल पर संसार स्थित है। इसके विपरीत झूठे पन का मार्ग क्षणिक मोहकता के कारण पहले यद्यपि सरल मालूम होता हो परन्तु अन्त में दूध का दूध और पानी का पानी होता है, हर एक मनुष्य इस बात को जानता है कि झूठ सदा अन्त तक नहीं छिप सकता। तब फिर भंडा फूट जाने पर बड़ी विपन्न दशा आ पहुँचती है। इतना ही नहीं झूठे पन का मार्ग सभी तरह से नाशकारी हैं। एक झूठ बात कह कर उसका निर्वाह करने के लिए दूसरी झूठ बात बनानी पड़ती है और दूसरी के लिए तीसरी इस प्रकार सदा झूठी बातें करने की ही आवश्यकता होती जाती है।

अन्त में किसी न किसी तरह निशाना चूक जाने पर मनुष्य ऐसा बेढ़ग फँसता है कि फिर उस जाल से जन्म भर निकलना असम्भव हो जाता है। असत्य प्रिय मनुष्य अपने आचरण से सदा विचार हीनता, मन-दुर्बलता और कायरता प्रकट किया करता है।


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