रोग निवारण के मानसिक प्रयोग

April 1946

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(प्रो. रामचरण जी महेन्द्र एम. ए. डी. लिट्.)

मानसिक उपचारों द्वारा जो विचित्र चमत्कार प्राप्त होते हैं, उनका अनुभव पाठकों को निम्न-स्वर्ण-सूत्रों से उपलब्ध होगा। ये सूत्र बड़े-बड़े अनुभवी मानस चिकित्सकों के जीवन के निचोड़ हैं। इनमें गहरा अनुभव एवं अनुसंधान निहित है। पाठकों से हमारा अनुरोध है कि वे इन प्रयोगों को स्वयं कर देखें।

अमृतधारा ध्यान-

रोगी को प्रतिदिन सायं-प्रातः एकान्त स्थल अथवा किसी शान्त स्थल, मन्दिर इत्यादि में बैठकर एक घण्टे तक अपने इष्टदेव का या जिस पर उसका विशेष प्रेम, श्रद्धा, व विश्वास हो, उसका ध्यान नियत समय पर करना चाहिए। ध्यान के समय ऐसा देखने का प्रयत्न करें कि इष्टदेव स्वर्ण के कमंडल से अमृत की वर्षा हमारे मस्तिष्क पर कर रहे हैं जिसकी धारा उदर में प्रवेश कर रही है। जिसकी प्रत्येक बूँद सम्पूर्ण रोगों को समूल नष्ट कर रही है तथा शरीर में अतुलबल, स्वास्थ्य, व उत्साह प्रदान कर रही है। इस अमृतधारा ध्यान से कुछ ही सप्ताहों में पुराने रोगों से छुटकारा मिल जायगा।

सिरदर्द मिटाने के प्रयोग-

शान्त होकर अपनी मानसिक प्रवृत्तियों को पैरों पर एकाग्र करो। पैरों का ही ध्यान करो और इच्छा करो कि पैरों की तरफ ऊपर से नीचे की ओर रक्त संचार हो रहा है। इच्छा से रक्त की मस्तक में अधिकता मिटा कर नीचे की ओर उसका संचार होगा। इससे सिरदर्द मिट जाता है।

सिरदर्द मिटाने के लिए दूसरा प्रयोग कपाल के मध्य में ध्यान एकाग्र करने का है। अब इच्छा करो कि मस्तक की सारी शक्ति उसी मध्य बिन्दु में आ रही है। वह शक्ति तुम्हारे आज्ञानुसार कार्य कर रही है। रोग के द्रव्य हट रहे हैं। सरदर्द कम हो रहा है। प्रसन्नता एवं आनन्द आत्मा से प्रकाशित होने लगा है। इस ध्यान में मग्न होते ही सिरदर्द का फुर हो जायगा।

पाचन शक्ति सुधार-

हमारे शरीर के जठर भाग में रक्त संचालन बराबर न होने से पाचन शक्ति विकृत हो जाती है। इसके लिए अपना मन पाचन क्रिया पर लगाओ और ध्यान करो कि जठर भाग में रक्त संचालन ठीक हो रहा है। हमें थोड़ी-थोड़ी क्षुधा लगने लगी है। पाचन शक्ति तेजी से कार्य कर रही है। ऐसी भावना से विद्युत का सा प्रभाव पड़ेगा।

ठंड से बच सकते हैं-

जाड़े के दिनों में जब ठंड लगती हो, सहन न हो सकती हो तो अपने शरीर के सब अंगों में रक्त गति बढ़ाने का प्रयत्न करो। मन को उत्तेजित करो। ध्यान कर प्रबल इच्छा करो कि सम्पूर्ण शरीर में रक्त तीव्र गति से संचरित हो रहा है। नस-नस में तेजी से रक्त दौड़ रहा है। गर्मी आ रही है। चारों ओर गर्मी ही गर्मी भरी पड़ी है।

घबराहट से मुक्ति-

जब अशान्ति, घबराहट या थकान मालूम हो तो दस बीस मिनट पूर्ण शान्त रहो। अपने मन के अन्तर्भाग में पूर्ण शान्ति स्थापित होने की इच्छा करो। शरीर में प्रत्येक भाग में शान्ति का ध्यान करो। मुझमें क्रमशः भक्ति प्रेम और शान्ति का स्त्रोत खुल गया है। मेरे पवित्र हृदय में तो शान्ति की सरिता का प्रवाह बड़े वेग से बहने लगा है। मेरे शान्त और पवित्र हृदय को क्लेश एवं कष्ट कैसे स्पर्श हो सकता है? मैं पूर्ण तृप्त हो गया हूँ। मेरे हृदय में अब कोई प्रचंड द्वन्द्व उधम नहीं मचा सकता। ऐसी भावना में ध्यान स्थिर करने से शरीर की घबराहट मिटकर ताजगी आती है। मन की अशान्ति दूर होकर एकाग्रता प्राप्त होती है।

जैसे चाहो वैसे बनो-

जब तुम अपने को जैसा प्रफुल्ल चाहते हो, वैसा न मालूम करते हो, तो अपने मन को बारबार सूचना देते रहो कि तुम जैसा चाहते हो, वैसा ही अनुभव भी कर रहे हो। जब कभी समय मिले इसी प्रकार की सूचना से मन को हरा भरा उत्साहित रखो ऐसा करने से प्रकृति तुमको इतनी सहायता देगी कि तुम्हारे शरीर में से सब सुस्ती दूर हो जावेगी। प्रकृति नित्य ही मनुष्य शरीर को नवीन और प्रफुल्ल बनाये रखने का प्रयत्न करती है। उत्तम सूचना से प्रकृति को इस काम में सहायता मिलती है।

जब तुम अपने आपको हारा थका कुछ हीन से मालूम पड़ते तो अपनी कल्पना के अनुसार अपने का सर्वोत्कृष्ट, समृद्धि शील सुन्दर और भव्य होने का चित्र अपने मानस जगत में खींचो। ऐसा करने से तुम अपने मन में अधिक उत्तमता, योग्यता, और निरोगता उत्पन्न करते हो। मन को परिपूर्ण और संतुष्ट करने पर तुमको अपना सब कुछ प्रिय और योग्य प्रतीत होता है।

सुन्दर कल्पना के चित्र-

जब तुम्हें आस-पास का वातावरण बुरा मालूम हो तो अपनी कल्पना में एक प्रशान्त चित्र खींच कर मन को उसी का ध्यान करने दो। इससे शीघ्र ही मन शान्त और सुखी हो जायगा। जब तुम्हें ऐसा प्रतीत हो कि तुम्हारा शरीर कमजोर हो रहा है या थक गया है तो तुम तुरन्त मन में बलवान इच्छा को जाग्रत करो कि-”तुम बलवान हो, शक्ति के अवतार हो! कार्यक्षम हो।” इस इच्छा को इस प्रकार करो कि शरीर के रोम-रोम में, नस-नस में बल स्फूर्ति का संचार होते हुए जान पड़े। ऐसा करने से तुम घंटों बिना किसी उचाट के काम करते रहोगे।

जब तुमको अपनी प्रकृति ठीक न जान पड़े तो कम भोजन करो और अधिक निद्रा लो। ऐसे समय अपने शरीर में जो नीरोग मय और बलवान तत्व हैं, उसका ही ध्यान करके मन को शान्त रखो। सबसे महत्वपूर्ण तत्व तो यह है कि हमारा आरोग्य तब तक ठीक नहीं रह सकता और सुधर सकता जब तक हम अपने मन को सुन्दर विचार, उच्च भावना और आरोग्य मय सूचनाओं से निरोग रखें। शरीर का आरोग्य हमारे मन पर ही निर्भर है-यह कदापि न भूलिये।


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