मनुष्य सहस्र बार नीचे गिर सकता है पर उसे सहस्र वार ही ऊँचे उठने का प्रयत्न करना चाहिए। जहाँ से वह गिरा था वहाँ से अधिक ऊँचा उठने का हर बार प्रयत्न होना चाहिए। पूर्णता प्राप्त करने का यही अव्यर्थ साधन है।