कामवासना का रूपांतर

September 1944

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(प्रोफेसर रामचरणजी महेन्द्र एम. ए. डी. लिट् अमेरिका)

इस तत्व को भली भाँति स्मरण रखिए कि जब तक ‘काम’ वासना पर विजय प्राप्त नहीं की जाती तब तक कोई भी महान कार्य सम्पादन नहीं किया जा सकता, साँसारिक, धार्मिक, या दैविक कोई भी क्यों न हो। अर्जुन भगवान् कृष्ण से प्रश्न करते हैं कि महाराज पाप करने में अनेक घोर कष्ट हैं-यह जान कर भी मनुष्य किस प्रेरणा से पाप कर्म में प्रवृत्त होता है। उन्होंने उत्तर दिया-

काम एष क्रोध एष रजोगुणसमुद्भवः।

महाशनो महापाप्मा विद्धयेनमिह वैरिणम्॥

अर्थात् हे अर्जुन! काम क्रोध जो कि रजोगुण से उत्पन्न हुए हैं भय देने वाले हैं और इन्हीं से प्रत्येक पाप में प्रवृत्ति होती है। ये ही सब से बड़े शत्रु हैं। जहाँ तक हो सके इनके विनाश का उपाय करो।

जिस प्रकार अग्नि के धुएँ से दर्पण मलीन हो जाता है और गर्भ के गन्दे पदार्थों से नवजात शिशु ढ़का हुआ होता है इसी प्रकार काम की कालिमा से यथार्थ आत्मज्ञान ढ़का हुआ रहता है।

इस शत्रु को विजय करने के अनेक उपाय बताये जाते हैं किन्तु लोग यह भूल जाते हैं कि इस प्रवृत्ति को जड़मूल से उखाड़ डालना संभव नहीं। अनेक महात्माओं ने प्रयत्न किये और वे असफल रहे। यह वासना नष्ट तो नहीं की जा सकती हाँ, इससे छुटकारा पाने का एक और उपाय है। वह है इस का रूपांतर (Transmutation) कर देना। काम वासना का रूपांतर का अर्थ स्पष्ट ही है। इसका अभिप्राय यह है कि काम की शक्ति का प्रवाह शारीरिक संपर्क के निंद्य मार्ग से रोक कर उसे निकलने का कोई अन्य मार्ग प्रदान कर देना। नदियों, झरनों, नालों के पानी का मार्ग अवरुद्ध कर लिया जाता है फिर उसे किसी नवीन क्षेत्र में प्रवाहित करके आश्चर्यजनक विद्युत की उत्पत्ति की जाती है। इसी प्रकार काम वासना के तीव्र प्रवाह को क्षुद्र साँसारिक भोगविलास के संकीर्ण मार्ग से हटा कर एक ऐसे क्षेत्र में खोल देते हैं जिससे उसकी आश्चर्यजनक शक्ति से अनेक दुष्कर कार्य सम्पन्न हो सकते हैं।

काम शमन के उपायों में उसे एक नवीन उत्पादक क्षेत्र प्रदान कर देना सर्वोत्कृष्ट है। साँसारिक इच्छा पूर्ति के मार्ग को अवरुद्ध कर उसे किसी अन्य मार्ग से प्रकट होने का अवसर दीजिए। नवीन क्षेत्र पाने से इस वासना का कूड़ा करकट साफ हो जाता है और इसका परिष्कृत रूप अनेक आश्चर्यचकित करने वाले महान् कार्य कर दिखाता है। यह सामान्य व्यक्ति को अद्भुत प्रतिभा सम्पन्न व्यक्ति में परिणत कर देता है।

वह व्यक्ति धन्य है जिसने अपनी काम वासना (Sex energy) को निकलने के लिए एक नवीन उत्पादक मार्ग प्रदान कर दिया है। इस शक्ति के प्रवाह को जिस क्षेत्र में लगायेगा उसी में चमत्कार उत्पन्न कर देगा। सेक्स शक्ति के रूपांतर का अर्थ ही है कि ऐसा व्यक्ति एक ऐसी दशा की ओर उन्मुख होने लगा है जिस ओर उसकी विशेष रुझान है और जिसमें यह अपनी अद्भुत शक्तियों का परिचय भली भाँति दे सकता है। मनोवैज्ञानिक खोज के उपरान्त हम इस निर्णय पर पहुँचते हैं कि -

संसार को हिला डालने वाले व्यक्तियों में काम प्रवृत्ति विशेष रूप से उग्र (Developed) थी किन्तु उन्होंने इस प्रचंड शक्ति के प्रवाह को शारीरिक संपर्क के नाशक क्षेत्र से हटाकर एक नवीन क्षेत्र में उसका प्रवाह खोल दिया था। शक्ति के इस सागर ने उनकी आत्मा को नव शक्ति, नव धैर्य प्रदान किया था।

साहित्य, कला, वाणिज्य, शिल्पकारी, प्रसिद्धि (Recognition) के प्रायः प्रत्येक क्षेत्र में उन्हीं व्यक्तियों को प्रतिभा, समृद्धि या प्रसिद्धि प्राप्त हुई जिनकी शक्ति का उद्गम स्थान कोई स्त्री थी। उन्हें उस स्त्री ने विशेष उत्तेजना, उत्साह, साहस प्रदान किया तदुपरान्त उस प्रचंड शक्ति का प्रवाह शारीरिक संपर्क की संकीर्णता से हट कर एक कल्याणकारी क्षेत्र में प्रवाहित हो गया। इस शक्ति के रूपांतर द्वारा ही वे बहुत ऊँचे चढ़ गये।

कवि शिरोमणि सूरदास को किसी सुन्दरी ने उत्तेजना (स्ह्लद्बद्वह्वद्यद्गह्य) प्रदान की, शक्ति के महासागर में प्रचंड तूफान उठा, उन्होंने अपनी आँखें निकाल डाली और शक्ति को कृष्ण प्रेम के कल्याणकारी मार्ग में प्रवाहित कर दिया। इसी प्रकार कविश्रेष्ठ तुलसीदास जी अपनी प्रियतमा पर अत्यन्त अनुरक्त रहे, फिर एक दिन उन्हें “काम वासना का रूपांतर” की शिक्षा प्राप्त हुई और वे महानता को प्राप्त हुए। महात्मा बुद्ध का प्रारम्भिक जीवन शृंगारिक था। अनेक महर्षियों तत्ववेत्ताओं, साहित्य के देवताओं को स्त्रियों ने महानता के लिए उत्तेजना प्रदान की है।

संसार का इतिहास उठा देखिए। बड़े नायकों बड़े राजनैतिकों, बड़े राजाओं सभी की काम वासना उद्दीप्त हुई और फिर उसका क्षेत्र परिवर्तित हो गया। जार्ज वाशिंगटन, शेक्सपीयर, अब्राहम लिंकन, इमरसन, राबर्टबर्न्स, टामस जैफरसन, ऑस्कर वाइल्ड, रोजेटी, एन्ड्रजैकसन, इन सभी की जीवनियों में यही सत्य उपलब्ध होता है। नैपोलियन ने जब (Josephine) से विवाह किया था तो वह अजेय बन गया था। उसी की उत्तेजना से वह एक के बाद अनेक विजय प्राप्त करता चला गया। जब उसकी शक्ति का वह उद्गम स्थान बन्द हुआ तो पतन भी प्रारम्भ हुआ और सैन्टहेलना में बड़ी पराजय हुई।

काम की शक्ति इतनी प्रबल है कि इसके आवेश में मनुष्य में अद्भुत परिवर्तन हो जाता है। मनुष्य की कल्पना तीव्र हो उठती है। उत्साह और आशा का संचार हो जाता है। संकल्प शक्ति में बल आता है आत्म निर्भरता की अभिवृद्धि हो उठती है। ऐसी शक्तियों का केन्द्र खुल जाता है जिनका मनुष्य को भान तक नहीं होता। सेक्स द्वारा उद्दीप्त कल्पना, आशा, आत्मनिर्भरता, संकल्प की सामूहिक शक्तियों का रूपांतर किसी भी दिशा में आश्चर्यजनक कार्य कर सकता है। इसके प्रवाह के बिल्कुल अवरुद्ध होने से मनुष्य कई मानसिक रोगों का शिकार बनता है और इस प्रवाह को उत्तम मार्ग प्रदान करने से संसार में साहित्य, कला, विज्ञान और समाज का निर्माण और उन्नति होती है। इस शक्ति के प्रवाह को, बिना किसी और मार्ग से निकाल, रोक देने में उतना ही भय है जितना कि वेग से बहते हुए पर्वतीय सोते को बाँध देने में। यदि उसके निमित्त कोई नवीन मार्ग न निकाला जाए तो वह सारे बाँध को तोड़ फोड़ सकता है।


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