इच्छा शक्ति और सफलता

September 1944

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(श्री चन्द्र किशोर जी तिवारी)

किसी कार्य की सफलता के लिए दृढ़ संकल्प की अत्यन्त आवश्यकता है। जिसकी प्रेरणा से मनुष्य कठोर परिश्रम में संलग्न होकर अपने ध्येय को प्राप्त करने तक निष्ठापूर्वक जुटा रहता है वह संकल्प शक्ति ही है। तीव्र इच्छा होने पर ही किसी कार्य में पूरी शक्ति के साथ लगा जा सकता है और पूरी शक्ति के साथ प्रवृत्त होने पर ही सफलता प्राप्त होती है। तात्पर्य यह है कि तीव्र इच्छा-दृढ़ संकल्प ही वह शक्ति है जिसके द्वारा लक्ष को प्राप्त किया जा सकता है।

जिनमें आशा, उत्साह और लालसा नहीं है, जो उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए अपनी समस्त इच्छा शक्ति का प्रयोग नहीं कर रहे हैं ऐसे लोगों के लिए छोटे, मामूली और साधारण कामों में भी सफलता मिलना कठिन है। थकी हुई नस नाड़ियों में भी तीव्र इच्छा की बिजली जब कौंधती हैं तो उनमें एक अपूर्व सामर्थ्य जाग पड़ती है। इसके विपरीत आशा और उत्साह के अभाव में स्वस्थ और समर्थ शरीर भी निस्तेज हो जाता है उसका मन मुर्झाया रहता है। अधूरी शक्ति से काम करने पर अधूरी सफलता की ही आशा की जा सकती है। कभी कभी तो ऐसे अवसर आते हैं कि वह अधूरी सफलता भी हाथ से चली जाती है और भाग्य को दोष देना एवं दुर्भाग्य पर पछताना ही हाथ रह जाता है।

निर्बल इच्छा-जिसके पीछे प्रयत्न का क्रियात्मक कार्यक्रम न हो निरर्थक है। शेखचिल्ली की तरह कल्पना की उड़ानों में उड़ना और पलंग पर पड़े पड़े मन के मोदक खाते रहने से कुछ प्रयोजन सिद्ध नहीं हो सकता। ऐसी निर्बल कल्पनाएं करते रहने से तो मनुष्य अवास्तविक, संदिग्ध, सनकी और एक प्रकार का मानसिक रोगी हो जाता है। हमें अपनी शक्ति, सामर्थ्य, योग्यता, कार्यक्षेत्र और सामयिक परिस्थितियों को देखते हुए अपनी योजनाएं बनानी चाहिए, उनके हानि लाभ, विघ्न बाधा और परिणामों पर गंभीरतापूर्वक विचार करना चाहिए जब विचार विवेचना के पश्चात किसी निश्चित परिणाम पर पहुँच जाया जाए तो उसे पूरा करने के लिए समस्त इच्छा शक्ति, दृढ़ता, संकल्प, आशा और उत्साह के साथ लग जाना चाहिए, तभी सफलता का प्राप्त होना संभव है।

संसार के महापुरुषों की सफलता पर जब हम दृष्टिपात करते हैं तो मालूम होता है कि धन, सुविधा या साधनों के कारण वे इतने ऊँचे नहीं बने। गरीबी और बेबसी की दुरवस्था को उनने अपने व्यक्तिगत सद्गुणों के द्वारा पार किया और फिर जीवन संग्राम के मोर्चे पर मोर्चा फतह करते हुए आगे बढ़ गये। तीव्र इच्छा की अलौकिक शक्ति उनकी धमनियों में प्राण संचार करती रही और वे बिना एक क्षण के लिए रुके अपने उद्देश्य पथ पर चलते रहे, आखिर एक दिन उनने सफलता को प्राप्त कर ही लिया।

महात्मा वाक्सटन कहा करते थे कि - “ऐ युवकों! तुम अपने भाग्य के स्वयं निर्माता हो, जैसे चाहो वैसे बन सकते हो। जो कुछ प्राप्त करना चाहो कर सकते हो। तीव्र इच्छा करो, अभिष्ट कार्य को पूरा करने की प्रतिज्ञा करो और निश्चित गति से काम में जुटे रहो तो तुम अवश्य ही सफल होकर रहोगे।”

जहाँ चाह है वहाँ राह मिलेगी। जहाँ आवश्यकता होगी वहाँ आविष्कार होकर रहेगा। जो खटखटायेगा उसके लिए खोला जायेगा। जिसका जिस पर सत्य स्नेह है, सो उसे मिलने में कुछ संदेह नहीं समझना चाहिए। इच्छा शक्ति का ऐसा ही चमत्कार पूर्ण महात्म्य है, जो प्राण प्रण से किसी काम में जुट जाता है वह उस कार्य में सफल होकर ही रहता है। इस सत्य को यदि हम हृदयंगम कर लें तो समझना चाहिए कि सफलता के सम्मुख ही खड़े हुए हैं।


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