मृत्यु का भय दूर कर दीजिए।

September 1944

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मृत्यु से मनुष्य बहुत डरता है। इस डर के कारण की खोज करने पर प्रतीत होता है कि मनुष्य मृत्यु से नहीं वरन् अपने पापों के दुष्परिणामों से डरता है। देखा जाता है कि यदि मनुष्य को कहीं कष्ट या विपात्त स्थान में जाना पड़े तो वह जाते समय बहुत डरता और व्याकुल होता है। मृत्यु से मनुष्य इसलिए घबराता है कि उसकी अन्तःचेतना ऐसा अनुभव करती है कि इस जीवन का मैंने जो दुरुपयोग किया है, उसके फलस्वरूप मरने के पश्चात मुझे दुर्गति में जाना पड़ेगा। जब कोई व्यक्ति वर्तमान की अपेक्षा अधिक अच्छी उन्नत सुखकर परिस्थिति के लिए जाता है तो उसे जाते समय कुछ भी कष्ट नहीं होता वरन् प्रसन्नता होती है।

जो लोग अपने जीवन को निरर्थक, अनुचित और अनुपयोगी कार्यों में खर्च कर रहे हैं वे लोग मृत्यु से उसी की प्रकार डरते हैं जैसे बकरा कसाई खाने कि दरवाजे में घुसता हुआ भावी पीड़ा की आशंका से डरता है। यदि आप मृत्यु के भय से बचना चाहते हैं तो अपने जीवन का सदुपयोग करना, अपने कार्यक्रम को योग्य बनाना आरम्भ कर दीजिए, ऐसा करने से आपकी अन्तःचेतना को यह विश्वास होने लगेगा कि मनुष्य अंधकारमय नहीं वरन् प्रकाश पूर्ण है। जिस क्षण यह विश्वास हृदय को हुआ उसी क्षण मृत्यु का भय भाग जाता है। तब वह शरीर परिवर्तन को वस्त्र परिवर्तन की तरह एक मामूली बात समझता है और मृत्यु से जरा भी डरता या घबराता नहीं।


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