जाड़े बुखार से सुरक्षित रहने के उपाय

September 1944

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(श्री गुरुदयाल जी वैद्य अलीगढ़)

निम्न नियमों पर चलने से प्रत्येक मनुष्य इस रोग के आक्रमण से बच सकते हैं, मक्खी तथा मच्छरों से यथा सम्भव यथा शक्य सदा पृथक रहना। पानी के निकट स्थान जैसे सरोवर आदि का परित्याग। जहाँ पानी भरा रहता हो वहाँ मिट्टी का तेल छिड़क देना। प्रत्येक कमरे में वामी की मिट्टी डालना, वामी की मिट्टी में विषम ज्वरों (Malrial Fevers) के कीटाणु नष्ट करने की अपूर्व शक्ति है, बड़े से बड़े कमरे में 1 सेर वामी की मिट्टी काफी है, अधिक पड़ जाए तो कुछ हानि नहीं। सर्प की वामी की मिट्टी के अभाव में कलई तथा सूखा तंबाकू कूटा हुआ डाला जा सकता है। मिथ्या आहार विहार का परित्याग। सुपाच्य भोजन अल्पमात्रा में करना। दुर्गन्धित वायु का परित्याग शुद्ध वायु का सेवन। प्रातःकाल का परिभ्रमण, नित्य प्रातः पाँच तुलसी के पत्तों का सेवन करना। उदर में किंचित मात्रा भी कोष्ठबद्धता कब्ज मालूम होने पर मृदु विरेचन द्वारा जिसका प्रयोग आगे लिखा जावेगा पेट साफ कर लेना।

मृदु विरेचन-काला दाना 6 मासा, काला नमक 6 मा. सनाय 9 मा. सोंठ 6 मा. पीपल 6 मा. निसोथ 6 मा सबको कूट पीसकर शीशी में भर लो मात्रा बड़े आदमी के लिये 3 मा प्रातः साँय गरम जल के साथ यह बहुत अच्छी दवा है। पचा हुआ दस्त होता है बार बार पाखाना नहीं जाना पड़ता एक दो दस्त में सब मल निकल कर पेट साफ हो जाता है।

ज्वर आने से पहिले ये लक्षण होते हैं- बिना परिश्रम के थकावट, समस्त शरीर अस्वस्थ जान पड़ना, मुख का स्वाद बिगड़ जाना, नेत्रों में जलन पड़ना-रोंगटे खड़े होकर सरदी लगना, जम्भाई आना, देही टूटना, भोजन में अरुचि आदि। जनता के सुभीते तथा काम के लिये कुछ प्रयोग नीचे दिये जाते हैं जो कि विषम ज्वरों पर कई बार के अनुभूत हैं।

(1)प्रथम प्रयोग-नित्य आने वाले ज्वर पर-इन्द्र जौ 1 तो. पटोल पत्र 1 तो. कुटकी 1 तो. सबको मिट्टी के पात्र में आध सेर पानी डाल मुख खोलकर औटाआ। एक छटाँक जल शेष रहने पर 1 तो. शहद मिला प्रातः साँय पीना चाहिये लाभप्रद है। (2) द्वितीय प्रयोग नित्य आने वाले ज्वर पर पटोल पत्र 1 तो. नागरमोथा 1 तो. पाढ़र 1 तो. कुटकी 9 मा. सौंफ 1 तो. मिश्री 2 तो. सब को पाव भर पानी में डाल क्वाथ बना 1 छटाँक शेष रहने पर पीले। सायंकाल को फिर उसी क्वाथ की हुई दवा ओटावे और मिश्री डालकर पान करे अवश्य लाभ होगा। (3) तृतीय प्रयोग-दूसरे दिन के ज्वर पर-नीम की छाल 1 तो. पटोलपत्र 1 तो. त्रिफला 9 मा. दाख 7 नग नागरमोथा 6 मा. इन्द्रजो 6 मा. गुलकन्द 2 तो. सबको क्वाथ बना दोनों समय सेवन करना चाहिये। (4) चतुर्थ प्रयोग तीसरे दिन आने वाले ज्वर पर गिलोय 6 मा. धनिया 4 मा. रक्त चन्दन 6 मा. सौंठ 6 मा. खस 6 मा. मिश्री 2 तो. मिला काढ़ा बना दोनों समय पीने से तिजारी जाती रहती है। (5) पंचम प्रयोग चौथे दिन आने वाले ज्वर पर गिलोय धनिया नागरमोथा प्रत्येक 1 तोले क्वाथ बना 1 तोले शहद मिला प्रातः साँय पीने से चोथिया जाती रहती है। (6) षष्ठम् प्रयोग सब प्रकार के विषम ज्वरों पर पटोलपत्र 5 मा. इन्द्र जौ 4 मा देवदारु 4 मा. मुलेठी 6 मा. गिलोय 6 मा. दाख 7 नग दाने त्रिफला 9 मा. गूदा अमलतास 2 तो. अड़ूसा 5 मा. लिसौडा 5 नग इनके क्वाथ में 2 तोला शहद डालकर पीने से सभी प्रकार के विषम ज्वर निश्चय करके टूट जाते हैं।


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