आम तौर से समझा जाता है, कि हमें जो भी काम करना चाहिए, अपने फायदे के लिये करना चाहिए। दूसरों के फायदे के लिए हम क्यों सर खपावें।’ बात ठीक हैं, अपने घर की आग बुझाकर तब पड़ोसी के घर की हिफाजत की जाती है। मेरी दाढ़ी जल रही हो और दूसरे की भी जलने लगे, तो स्वभावतः मैं पहले अपनी बुझाऊँगा तब दूसरे की ओर ध्यान दूँगा। नेकी, भलाई, परोपकारिता आदि अच्छी वस्तु हैं, परन्तु एक व्यवहारवादी व्यक्ति तो अच्छी चीजें अपने लिए लेना चाहता है। यह नेकी अच्छी वस्तु है तो निःसंदेह उसे पहले अपने लिए लेना होगा। स्वाभाविक स्वार्थ -बुद्धि का यही तकाजा है, कि हम अपने साथ नेकी करें, अपनी भलाई सोचें, अपने उपकार में प्रवृत्त हों और अपने कल्याण का मार्ग अवलंबन करें।
एक ही वस्तु प्रयोग भेद से भिन्न प्रकार के परिणाम उपस्थित कर सकती है, सुई कपड़ा सीने का एक अच्छा साधन है, किन्तु यदि उसका दुरुपयोग करके शरीर के किसी हिस्से में चुभो दी जाए तो वह कष्टदायक बन जाएगी। भोजन और जल जैसे जीवनोपयोगी पदार्थ यदि अनियमितता के साथ सेवन किये जाएँ, तो नाना प्रकार के रोगों के कारण बन सकते हैं। आत्म कल्याण एक अत्यन्त उपयोगी जीवन तत्व है, किन्तु जब इसका सदुपयोग होता है, तब परमार्थ कहा जाता है और दुरुपयोग की अवस्था में वही स्वार्थ के घृणित नाम से संबोधन किया जाता है। वास्तव में स्वार्थ और परमार्थ एक ही वस्तु है पर एक को आदरणीय दूसरे को तिरष्कृत इसलिए कहा जाता है, कि एक के उपयोग में काम लिया गया है, और दूसरा मूर्खतापूर्ण है।
मूर्ख पक्षी दाने के लोभ में फँस जाते हैं और चतुर पक्षी चारों ओर देखकर चोंच खोलते हैं, जैसे उन्हें कुछ खटका प्रतीत हुआ वैसे ही वे उड़ जाते हैं। इस प्रकार चतुर पक्षी तो बच जाते हैं और मूर्ख पक्षी बहेलिये के जाल में फँसकर कष्ट उठाते हैं। स्वार्थ और परमार्थ में उपरोक्त दो पक्षियों की विचारधारा के समान ही अन्तर है। स्वार्थी मनुष्य आज के लाभ को प्रधानता देता है, उसकी दृष्टि बहुत ही संकुचित और विचारधारा बहुत ही सीमित होती है। आज के, आँखों से दिखाई देने वाले, लाभ ही उसकी दृष्टि में लाभ है किन्तु बुद्धिमान,चतुर और परमार्थी भविष्य के परिणामों का ध्यान रखकर आज का काम करता है। किसान परमार्थी है, वह अच्छी फसल पाने के लिए आज अपने बीज को खुशी खुशी खेत में बखेर देता है। निश्चय ही आप उस मूर्ख पक्षी के कार्य की सराहना नहीं करेंगे, जिसकी दृष्टि सिर्फ सामने वाले दाने तक ही थी और जो आगे रखे हुए जाल की ओर लोभ के मारे ध्यान नहीं देता था, वह अल्पज्ञ पक्षी कुछ थोड़े से क्षणों तक अहंकार में फूला रह सकता है और उन दानों के लाभ से अपने को सौभाग्यशाली गिन सकता है, परन्तु अन्त में उसे अपनी भूल पर पछताना पड़ेगा। बुद्धिमान पक्षी जाल के खतरे और दानों के लाभ की तुलना करता है और भविष्य के परिणामों पर विचार करता है, इस प्रकार वह सामने रखे हुए दानों को बिना किसी हिचकिचाहट के जहाँ का तहाँ पड़ा छोड़कर उड़ जाता है।
नेकी का- आत्म कल्याण का मार्ग अवलम्बन करने वाले व्यक्ति के सामने इसी तरह की समस्या आती है एक ओर तो स्वार्थ, भोग, विलास, इन्द्रिय लिप्सा, तृष्णा लालसा, संग्रह, परिग्रह का प्रलोभन होता है जिनमें लिप्त हो जाने पर भविष्य अन्धकारमय बन जाता है, दूसरी ओर परमार्थ, त्याग, दया, प्रेम, करुणा, सहानुभूति का मार्ग है, प्रत्यक्ष में यह रास्ता सूखा, कष्ट -साध्य और घाटे का प्रतीत होता है, किन्तु अन्त में उसका परिणाम बहुत ही आशातीत तथा आनन्ददायक होता है। जाल के ऊपर पड़े हुए दानों को छोड़कर जो पक्षी उड़ गया था, भले ही वह किसी की दृष्टि से घाटे में रहा हो पर जब हरे भरे पेड़ की ऊँची डाली पर बैठकर वह प्रसन्नता के मधुर गीत गाता है, तब वह अनुभव करता है कि जाल के दानों को छोड़कर भी मैं घाटे में नहीं रहा। किसान जब फसल के समय अपना भरा हुआ कोष देखता है तो उसे प्रतीत होता है कि खेत में जो बीज मैंने बखेरा था वह व्यर्थ नहीं गया। उस समय घाटा प्रतीत होता था, पर आज तो जितना दिया गया था, उससे हजार गुना वापिस लौट आया।
आप अपनी नेकी के मार्ग पर दृढ़ता से चलते रहिए। अपने वास्तविक कल्याण को दूर- दृष्टि के साथ, विशाल दृष्टिकोण के साथ देखिए। दूसरे लोग, इस दुनिया में, बहुत पैसा इकट्ठा करते हुए, विषय भोगों में लगे हुए इन्द्रिय तृप्ति में परायण एवं लालसाओं को पूरा करने में लगे हुए आपको दिखाई पड़ेंगे। यह लोग बाहर से ठाठ -बाठ का और तड़क भड़क का जीवन व्यतीत करते हुए प्रतीत होंगे। आप इनके वैभव को देखकर भूलकर भी ललचाइये मत, क्योंकि यह विनाश के पथ पर दौड़ रहे हैं। तृष्णा, लालसा और अनीति की पाप वासनायें उनके भीतर लुहार की भट्टी की तरह जल रही हैं, एक दिन यह भीतरी ज्वाला बाहर आवेगी और उन्हें जड़- मूल से नष्ट कर देगी। आप भविष्य के आनन्दमय परिणामों के लिए आज के कठोर, रूखे काम करना आरम्भ कर दीजिये। चतुर किसान की तरह अपनी मानसिक, शारीरिक और भौतिक शक्तियों को ईश्वर के संसार रूपी खेत की उपजाऊ मिट्टी में बखेर दीजिए। लोक हित के, परमार्थ के, धर्म के कार्यों में सब कुछ छोड़कर लग जाइए। अपनी योग्यताओं का बीज परमार्थ के खेत में बोइए और फसल आने तक निष्ठा और विश्वास के साथ अपने स्वेद बिन्दुओं से उसे सींचते रहिए। सचमुच एक दिन आप ही बुद्धिमान ठहराये जायेंगे और स्वीकार किया जायगा, कि आप ही बेजोखों का व्यापार करने वाले सच्चे व्यापारी हैं।
आप अपनी आत्मा के गौरव को स्मरण कीजिए, अपनी महानता को अनुभव कीजिए और केवल उन्हीं कार्यों में हाथ डालिए जो आपके पद के अनुकूल हों। सम्राटों के सम्राट परमात्मा का उत्तराधिकारी राजकुमार मनुष्य वस्तुतः महान् है। महानता का गौरव इसी में है, कि अपनी मर्यादा पर स्थिर रहा जाए। चकवा प्यासा मर जाता है पर स्वाति बूँद के अभाव में गन्दे नाले का पानी नहीं पीता, हंस अपनी मर्यादा की रक्षा करता है, मछली अपनी मर्यादा की रक्षा करती है, हंस मोती न मिलने पर भूखों मर जाता है और मछली जल के अभाव में जीवित नहीं रहती। आप भी अपनी गौरव मर्यादा से नीचे मत गिरिये। धर्ममय उत्तमोत्तम कार्यों को करने के लिए आपका अवतार इस पृथ्वी पर हुआ है, परमात्मा का राजकुमार - आत्मा - अपने पिता की राज-सत्ता को सुव्यवस्थित करने आया है। सरकारी हाकिम देहातों में दौरा करने के लिए भेजे जाते हैं, ताकि वे सम्राट का शासन सुव्यवस्थित रखने में सहायता करें, आपको इसलिए यहाँ भेजा गया है, कि ईश्वर की इच्छा और आज्ञाओं का सन्देश विश्व के कौने-कौने में गुँजित करें और अधर्म को हटाकर धर्म की स्थापना करें। आप अपने पद और जिम्मेदारी का स्मरण कीजिए और इसी की मर्यादा की रक्षा के निमित्त कार्य करना आरम्भ कीजिए। आपके लिए नेकी और भलाई का यह बहुत ही उत्तम मार्ग हो सकता है।
अच्छी तरह इस बात को हृदयंगम कर लीजिए। जीवन का सच्चा लाभ इसी में है कि आप आत्म कल्याण के, नेकी और भलाई के, मार्ग पर चलें। अपने आचरणों को सचाई और धर्म-निष्ठा से परिपूर्ण रखें एवं अन्तःकरण के किवाड़ों को सद्भाव एवं सद्विचारों के लिए खोल दें। कल्याणकारी पिता के, हे कल्याणकारी पुत्र! उठो, परमात्मा का अवलम्बन ग्रहण करो और नेकी के मार्ग पर अग्रसर हो जाओ। आपकी सच्ची भलाई इसी में है।