मनुष्य की स्वतंत्र आत्मा पर अन्याय के विषमय फल नहीं लगने पाते।
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यह शरीर धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष-इन चारों पुरुषार्थों का मुख्य साधन है। इसके आरोग्य-युक्त होने पर उक्त सब कार्यों की सिद्धि हो सकती है।