गायत्री की दैनिक साधना

September 1944

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(श्री मन्त्र योगी)

पिछले अंक में ‘मन्त्र शक्ति का रहस्य’ लेख लिख कर मैंने बताया था कि मन्त्र द्वारा जो चमत्कारी शक्ति प्राप्ति होती है उसका कारण क्या है। निस्संदेह मन्त्रों में बहुत बड़ा बल मौजूद है और यदि कोई उनका ठीक ठीक उपयोग जान ले तो अपनी और दूसरों की बड़ी सेवा कर सकता है। गोस्वामी तुलसीदास जी का कथन है कि -

मंत्र परम लघु जासुबस विधि हरिहर सुर सर्व।

महामत्त गजरात कहँ बस करि अंकुश खर्व॥

यों तो बहुत से मन्त्र हैं। उनके सिद्ध करने और प्रयोग करने के विधान अलग अलग हैं और फल भी अलग अलग हैं। परन्तु एक मंत्र ऐसा है जो सम्पूर्ण मन्त्रों की आवश्यकता को अकेला ही पूरा करने में समर्थ है। यह गायत्री मन्त्र है। गायत्री मन्त्र ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद और सामवेद चारों वेदों में है। इसके अतिरिक्त और कोई ऐसा मन्त्र नहीं है जो चारों वेदों में पाया जाता हो। गायत्री वास्तव में वेद की माता है। तत्वदर्शी महात्माओं का कहना है कि गायत्री मन्त्र के आधार पर वेदों का निर्माण हुआ है, इसी महामन्त्र के गर्भ में से चारों वेद उत्पन्न हुए हैं। वेदों के मन्त्र दृष्टा ऋषियों ने जो प्रकाश प्राप्त किया है वह गायत्री से प्राप्त किया है।

गायत्री मन्त्र का अर्थ इतना गूढ़ गंभीर और अपरिमित है कि उसके एक एक अक्षर का अर्थ करने में एक एक ग्रन्थ लिखा जा सकता है। आध्यात्मिक, बौद्धिक, शारीरिक, साँसारिक, ऐतिहासिक, अनेक दिशाओं में उसका एक एक अक्षर अनेक प्रकार के पथ प्रदर्शन करता है। वह सब गूढ़ रहस्य यहाँ इन थोड़ी सी पंक्तियों के छोटे से लेख में लिखा नहीं जा सकता। यहाँ तो पाठकों को गायत्री का प्रचलित, स्थूल और सर्वोपयोगी भावार्थ यह समझ लेना चाहिए कि-तेजस्वी परमात्मा से सद्बुद्धि की याचना इस मन्त्र में की गई है। श्रद्धापूर्वक इस मन्त्र की धारणा करने पर मनुष्य तेजस्वी और विवेकशील बनता है। गायत्री माता अपने प्रिय पुत्रों को तेज और बुद्धि का प्रसाद अपने सहज स्नेह वश प्रदान करती है। इसके अतिरिक्त अनेक आपत्तियों का निवारण करने की शक्ति गायत्री माता में है। कोई व्यक्ति कैसी ही विपत्ति में फँसा हुआ हो यदि श्रद्धापूर्वक गायत्री की साधना करे तो उसकी आपत्तियाँ कट जाती हैं और जो कार्य बहुत कठिन तथा असंभव प्रतीत होते थे वे सहज और सरल हो जाते हैं।

जिन्हें मन्त्र ठीक तरह शुद्ध रूप से याद न हो वे नीचे की पंक्तियों से उसे शुद्ध कर लें।

“ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।”

साधारणतः जप प्रतिदिन का नियम यह होना चाहिए कि कम से कम 108 मन्त्रों की एक माला का नित्य किया जाए। जप के लिए सूर्योदय का समय सर्वश्रेष्ठ है। शौच स्नान से निवृत्त होकर कुश के आसन पर पूर्वाभिमुख होकर बैठना चाहिए। धोती के अतिरिक्त शरीर पर और कोई वस्त्र न रहे। ऋतु अनुकूल न हो तो कम्बल या चादर ओढ़ा जा सकता है। जल का एक छोटा पात्र पास में रखकर शान्त चित्त से जप करना चाहिए। होंठ हिलते रहें, कंठ से उच्चारण भी होता रहे, परन्तु शब्द इतने मंद स्वर में रहे कि पास बैठा हुआ मनुष्य भी उन्हें न सुन सके। तात्पर्य यह है कि जप चुपचाप भी हो और कंठ ओष्ठ तथा जिह्वा को भी कार्य करना पड़े। शान्त चित्त से एकाग्रतापूर्वक जप करना चाहिए। मस्तिष्क में त्रिकुटी स्थान पर सूर्य जैसे तेजस्वी प्रकाश का ध्यान करना चाहिए और भावना करनी चाहिए कि उस प्रकाश की तेजस्वी किरणें मेरे मस्तिष्क तथा समस्त शरीर को एक दिव्य विद्युत शक्ति से भरे दे रही है। जप और ध्यान साथ साथ आसानी से हो सकते हैं। आरम्भ में कुछ ऐसी कठिनाई आती है कि जप के कारण ध्यान टूटता है और ध्यान की तल्लीनता से जप में विक्षेप पड़ता है। यह कठिनाई कुछ दिनों के अभ्यास से दूर हो जाती है।

गायत्री वेद मन्त्र है। वेद का उच्चारण अशुद्ध स्थान पर अपवित्र अवस्था में करना निषिद्ध है। इसलिए इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि पवित्र होकर ही जप किया जाए। स्नान यदि संभव न हो तो हाथ पैर मुँह अवश्य ही धो लेना चाहिए। कपड़े धुले हुए न हों तो धोती को छोड़कर अन्य वस्त्र उतार देने चाहिए। जप के लिए यदि कुश का आसन न हो तो चौकी आदि लकड़ी की किसी चीज का प्रयोग किया जा सकता है। ऊनी आसन भी किसी हद तक ठीक है। रेशम मृगछाला आदि के आसन भी वैसे शास्त्र सम्मत हैं परन्तु इनमें जीव हिंसा होती है इसलिए जहाँ तक हो सके चमड़े के आसन काम में न लाने चाहिए। कपड़े के बिछौने पर या खाली जमीन पर बैठकर जप करना ठीक नहीं क्योंकि ऐसा करने से जप के द्वारा प्राप्त हुई विद्युत शक्ति जमीन में खिंच कर चली जाती है। रोग में, अशुद्ध अवस्था में, आकस्मिक आपत्ति में जब मन्त्र जप की आवश्यकता हो तो मन ही मन जप करना चाहिए, कंठ, होंठ या जिह्वा का जरा भी प्रयोग न होना चाहिए। इस प्रकार का जप रास्ता चलते, काम करते या बिस्तर पर पड़े पड़े भी किया जा सकता है। ऐसे जप में माला का प्रयोग न करना चाहिए।

उपरोक्त रीति से नित्य जप करना चाहिए। इससे शरीर का स्वास्थ्य ठीक रहता है। रक्त की शुद्धि और बल वीर्य की वृद्धि होती है। चेहरे की चमक बढ़ जाती है। वाणी में प्रभाव डालने वाली शक्ति की अधिकता होने लगती है, स्मरण शक्ति तीव्र होती है। सद्-असद् विवेक करने वाली बुद्धि का विकास होता है, धैर्य और साहस बढ़ता है, चित्त में प्रसन्नता और शान्ति रहती है, ईश्वर और धर्म की ओर मन झुकने लगता है, व्यसन व्यभिचार और दुष्कर्मों से घृणा होने लगती है। यह लाभ पूर्णतया निश्चित है। हमने अब तक अनेक व्यक्तियों को गायत्री का जप सिखाया है उन सब का अनुभव है कि इन नियमों के साथ कुछ दिन लगातार श्रद्धापूर्वक जप करने से उपरोक्त सभी लाभ प्राप्त होते हैं।

यह दैनिक जप का साधारण क्रम है। आधा घंटा समय नित्य लगाकर उपरोक्त रीति से गायत्री के कम से कम 108 मन्त्र आसानी से जपे जा सकते हैं। जिन्हें यह मन्त्र सिद्ध करना हो वे सवालक्ष गायत्री का विधिपूर्वक जप करके उसे सिद्ध कर सकते हैं। इस सिद्धि से ऐसी ऐसी अद्भुत शक्तियाँ प्राप्त होती हैं जिनकी शक्ति की कोई तुलना नहीं। मन्त्र शास्त्र के समस्त मन्त्रों से गायत्री का बल अनेक गुना है। जो कार्य किसी मन्त्र से होता है वह गायत्री से भी अवश्य हो सकता है अगले अंक में हम गायत्री को सवालक्ष मन्त्र जप करके सिद्ध करने की विधि बतावेंगे।


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