प्राणायाम संबंधी अनुभव

May 1944

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(डॉक्टर शोजाबुरो ओटेव)

जब मैं पाँच वर्ष का था तभी से मुझे बीमारियों ने घेर लिया था, आरम्भ में मेरी बाँई जाँघ में अस्थि शीथ हुआ। अस्पताल में चीर फाड़ हुई जिसमें बेकाम हड्डी के तीन टुकड़े निकाले गये। इसके बाद मैं बहुत ही दुर्बल, पीला और रक्तहीन हो गया। डाक्टरों ने मेरी कम चौड़ी और सुकड़ी हुई छाती देखकर संदेह प्रकट किया कि कहीं तपैदिक का शिकार न हो जाऊँ, वैसे मैं इतना दुर्बल और रुग्ण आकृति का हो गया था कि हर कोई मुझे तपैदिक का रोगी समझता था। अनेक उपचारों के बाद भी जब किसी प्रकार मेरे स्वभाव में कोई उन्नति न हुई तो निराश होकर मैं अपनी मृत्यु की घड़ियाँ गिनने लगा।

इन्हीं दिनों मैंने एक व्याख्यान में सुना कि- “प्राणायाम द्वारा अधिक ऑक्सीजन प्राप्त करके फेफड़ों को मजबूत और स्वास्थ्य को उन्नत बनाया जा सकता हैं।” उसी दिन से मैंने प्राणायाम करना आरम्भ कर दिया। सोते जागते मुझे सदा प्राणायाम की ही धुन लगी रहती।

इससे मेरे शरीर की असाधारण उन्नति हुई। एक वर्ष के भीतर ही छाती का घेरा 4 इंच अधिक बढ़ गया और ऊँचाई भी करीब चार इंच बढ़ी। इससे अन्दाज लगाया जा सकता हैं कि मेरा स्वास्थ्य किस तेजी से आगे बढ़ा। डाक्टरों से जाँच कराई तो उन्होंने बताया कि अब फेफड़े इतने मजबूत हो गये है कि तपैदिक होने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता। 2 अगस्त सन् 1905 से लेकर 18 जुलाई सन् 1907 तक के दो वर्षों के भीतर मेरा वजन करीब 22 पौंड बढ़ गया। तब से मैं नित्य प्राणायाम का कट्टर भक्त हूँ। मेरा विश्वास हैं कि उत्तम स्वास्थ्य प्राप्त करने के लिए प्राणायाम एक संजीवनी बूटी हैं।


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