सफलता का रहस्य

February 1940

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(ले. श्री. नारायणप्रसाद तिवारी, कान्हीवाड़ा)

ऐसे अनेक व्यक्ति देखने में आते हैं जो सब प्रकार के साधन उपलब्ध होते हुये भी किसी प्रकार की उन्नति नहीं कर पाते। जिनकी आर्थिक दशा अच्छी है, विद्या-उपार्जन के साधन प्राप्त हैं, अन्य प्रकार के सहयोग का भी अभाव नहीं है, वे लोग भी जब मुर्दे की तरह एक ही स्थान पर अचल पड़े रहते हैं तब यह प्रश्न उठ खड़ा होता है कि क्यों यह उन्नति नहीं कर पाते। वे स्वयं भी यह सोचते हैं कि जब हमसे सब दृष्टियों में छोटे लोग तरक्की करके बड़े स्थानों में पहुँच गये तो हमें सफलता क्यों नहीं मिलती? वे यथासाध्य प्रयत्न जारी रखते हैं, ईश्वर और धर्म पर विश्वास रखते हैं, मन ही मन देवताओं की मनौती मनाते हैं, परन्तु फल कुछ नहीं होता। निराशा और असफलता के ही बार बार दर्शन करने पड़ते हैं।

सम्भव है ऐसे लोग किसी को सताते न हों, किसी की बुराई न करते हों, किसी के साथ विश्वासघात न करते हों, किसी के साथ अन्याय न करते हों, पर विचार पूर्वक देखने से पता चलता है कि वे अपने साथ बुराई, विश्वासघात और अन्याय अवश्य करते हैं।

अमेरिका के धनपतियों का सिद्धान्त है कि ‘कम से कम खर्च में अधिक काम निकाला जाय’ यह सिद्धान्त केवल रुपया कमाने या कारखाने चलाने के लिए ही नहीं अपितु दैनिक जीवन यात्रा के लिए भी आवश्यक है। हम छोटे काम में अधिक शक्ति खर्च कर देते हैं, परिणामतः अधिक पूँजी में थोड़ा काम होता है। भला ऐसा कारखाना किस प्रकार मुनाफे पर चल सकता है जो लोहे की एक कील बनाने में एक रुपया खर्च कर दे! जो पाव भर दाल उबालने में पाँच सेर लकड़ियाँ जलाता है उसकी रसोई कैसे सस्ती पड़ सकती है। जिन साधन सम्पन्न लोगों को अक्सर असफलता का सामना करना पड़ता है उनको इसी अपव्यय का शिकार पाया जाता है।

जिस कार्य में जितनी शक्ति व्यय करनी है उसमें उतनी ही या उतनी से कम व्यय करनी चाहिए तभी तो लाभ होगा। बहुत से लोग छड़ी को इस तरह लेकर चलते हैं मानो भरी हुई बन्दूक ले जा रहे हों, शौच बैठने में इतना जोर लगाते हैं मानों रस्सा खींच रहे हों। साधारण बात चीत करने में इतने जोर से बोलते हैं मानो किसी से लड़ रहे हों, यह शक्ति का अनावश्यक ह्रास करना है। कुछ लोगों को छोटी बातों पर बहुत सोचने की आदत होती है, कोट में काले बटन लगवाये जायँ या नीले? यह एक समस्या बन जाती है। ताश खेलने में बाजी हार गये तो घण्टों तबियत उदास बनी रहेगी। कई लोग व्यर्थ की बातें सोचते रहते हैं। आप मिठाई की दुकान करते हैं और यह सोचने में लगे रहते हैं कि आराजी एक्ट से जमींदार को कितना नफा नुकसान होगा तो यह उपयोगी नहीं हो सकता। आपके कारखाने में पचास आदमी काम करते हैं उनके काम काज पर ध्यान रखने की अपेक्षा नाली की मरम्मत करने वाले मजदूर के साथ समय खर्च कर रहे हैं तो यह बुद्धिमत्ता न होगी। आप मकान में खुद झाड़ू लगाकर एक रुपये महीने की बचत करें और उतने समय के लिए बच्चों को पढ़ाने के लिए दस रुपए महीने का मास्टर बुलावें तो यह बचत नहीं नुकसान है।

व्यर्थ की गप्पे हाँकने, घण्टों ताश खेलते रहने, दूसरों की अकारण निन्दा स्तुति में लगे रहने, नशेबाजों की आदत डाल लेने, शेखचिल्ली के से मनसुए बाँधते रहने में संचित शक्ति का उपयोगी भाग फिजूल चला जाता है और आवश्यक कार्यों के लिए आवश्यक पूँजी निबट जाती है। जो घर में दो घन्टे लड़कर आया है वह कैसे एक सुन्दर कविता कर लेगा, जिसने रातभर नाटक देखा है वह दफ्तर में जा कर किस प्रकार ठीक ठीक काम कर सकेगा। देखा जाता है कि योग्यता होते हुए भी कई आदमी ठीक प्रकार अपना काम नहीं कर पाते उनके काम अधूरे, बेढंगे और गलतियों से भरे हुए होते हैं। समझना चाहिए कि इन्होंने दूसरे काम में अपनी शक्ति खर्च कर दी है और यहाँ बालू के किले बना रहे हैं। उठती जवानी के नवयुवकों में जब सुस्ती, काहिली, उदासी, पीलापन, दुर्बलता दिखाई पड़े तो यह अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है कि इन्होंने अपनी शक्ति का दुरुपयोग कर डाला है और आवश्यक कार्य करने में दिवालिए बन गए हैं।

वैज्ञानिकों का कहना है कि खान से निकल कर इंजन तक जाते जाते कोयले की 99 प्रतिशत शक्ति नष्ट हो जाती है और एक प्रतिशत ही काम में आती है। यही बात असफलता के शिकार हुए लोगों में देखी जाती है। वे अपनी ताकत को न तो संचय ही करते हैं और न उसका ठीक उपयोग। यदि आप कपड़े के व्यापारी हैं तो इसी व्यवसाय की बारीकियों पर विचार करना चाहिए और इसकी वर्तमान तथा भावी स्थिति का चिन्तन करना चाहिए। यदि आप किसी दफ्तर में क्लर्क हैं तो क्या जरूरत है कि आप अपना काम हर्ज करके रेलवे कम्पनी के हानि लाभों की समालोचना करें। आपकी उन्नति का मार्ग तो यही हो सकता है कि जिस कार्य में लगे हुए हैं उसकी और उससे सम्बन्धित अन्य बातों की जानकारी प्राप्त करें एवं दूसरों के मुकाबले में अपने को अधिक उपयोगी सिद्ध करें।

एक समय में एक काम कीजिए, जब जो कार्य करना हो उसमें पूरी शक्ति लगा दीजिए। मनोयोग के साथ काम करने से शरीर और मन की सारी शक्तियाँ एक स्थान पर केन्द्रित हो जाती हैं और तब उस विषय के गुप्त रहस्य प्रत्यक्ष दिखाई पड़ने लगते हैं। सफलता इन्हीं रहस्यों में छिपी रहती है। जिन छोटे लोगों ने बड़े काम किए हैं उन्होंने जाने अनजाने में इसी नियम को अपना सहायक बनाया है कि ‘शक्ति को ठीक काम में लगाया जाय एक ही ओर झुकाव होने और शक्ति को अनावश्यक नष्ट न होने देने का ध्यान रखने से कम खर्च में ज्यादा काम होने वाला सिद्धान्त पूरा हो जाता है और उन्नति होने में देर नहीं लगती।

बूँद-बूँद इकट्ठा करने से घड़ा भर जाता है। रत्ती रत्ती इकट्ठा कर के मधुमक्खियाँ छत्ते में सेरों शहद जमा कर लेती है। निरंतर एक ही दिशा में थोड़ा थोड़ा भी प्रयत्न करते रहने पर बहुत संग्रह हो सकता है। व्यर्थ की बातों से दूर रहिए। भूतकाल की दुखदायी घटनाओं की बार-बार मत याद कीजिए। सुनहले भविष्य की ओर टकटकी लगाये रहिए। शक्ति को संचय कीजिए, अपने निश्चित लक्ष की ओर उत्साह के साथ बढ़िये, उसी में पूरी ताकत खर्च कर दीजिए। आप का छोटा काम भी इतना सुन्दर होगा कि बड़ों से अधिक महत्व रखेगा। सफलता आपको नवीन उत्साह प्रदान करेगी जिससे प्रेरित होकर आप महानतम कार्यों को आसानी से कर सकेंगे।


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