क्या यज्ञ घाटे का सौदा हैं?

February 1940

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ले. श्री अनिरुद्ध मिश्र, साहित्याचार्य, तेघड़ा

हिन्दू धर्म शास्त्रों में यज्ञ की महिमा अनन्त है। जितने भी धार्मिक कृत्य हैं। जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त जितने भी संस्कार होते हैं, हर्ष शोक के जो भी अवसर आते हैं वे सब यज्ञ मूलक हैं। वेदों में यज्ञ के विषय का जितना वर्णन है उतना किसी अन्य विषय का नहीं है। क्या यह सब अन्ध विश्वास पूर्ण और अवैज्ञानिक है? आइये, आज इसी पर विचार करें।

हमारे ऋषि दृष्टा थे। वे प्रत्येक विषय में छिपे हुए सर्व प्रकार के तत्वों को भली प्रकार जानते थे। धर्म और कर्मकाण्ड की रचना उन्होंने ऐसे गहन वैज्ञानिक अन्वेषण के आधार पर की है कि उसमें भ्रम और अन्ध विश्वास के लिए कोई स्थान नहीं रह जाता। यज्ञ की उपयोगिता को हमारे पूर्वज प्रत्यक्ष प्रमाण की तरह स्वीकार करते थे। उससे किसी का कुछ मतभेद न था। जब कभी आपस में विचार विमर्श होता था तो वह उसके सूचक विषयों पर ही होता था। परन्तु आज तो हम उसकी साधारण उपयोगिता पर से भी विश्वास गवाँते जा रहे बाबू लोग झट यह कह बैठते हैं कि यह सब वाहियाद है। यज्ञ करने से कुछ लाभ नहीं। यदि इतनी सामग्री पेट में खाई जाय तो कुछ गुण भी करे, कीमती चीजें आग में जला डालना बेवकूफी है। ऐसे बाबूओं को किसी शास्त्र के प्रमाण देकर या तर्क के आधार पर समझाने से काम नहीं चलता, उनके लिए तो विलायती डाक्टरों के प्रमाण ही वेदवाक्य हो सकते हैं। इसलिए इस लेख में वैज्ञानिक अन्वेषण के आधार पर यज्ञ की जो उपयोगिता सिद्ध हो चुकी है उसी का उल्लेख करने का प्रयत्न किया जायेगा।

स्वास्थ्य को अच्छा बनाने क लिए डाक्टर लोग शुद्ध वायु सेवन की सलाह देते हैं। वायु परिवर्तन के लिए लोग पहाड़ आदि पर जाते हैं क्योंकि वहाँ की वायु उत्तम होती हैं। उत्तम वायु में केवल आक्सीजन ही नहीं है वरन् उसका वह सूक्ष्म भाग हैं जिसे ओजोन कहते हैं। इस अत्यन्त प्राणप्रद वायु का साधारण हवा में यह पच्चीस लाखवाँ भाग भी मिला हो तो भी वह अपनी मनोहर सुगन्धि से आदमी का चित्त प्रफुल्लित कर देती है। पर्वत आदि स्थानों में जहाँ इस अत्यन्त प्राणप्रद वायु की अधिकता होती है वही स्थान वायु सेवन के लिए उत्तम समझे जाते हैं। यह प्रसिद्ध है कि दूषित वायु से सिर्फ स्वास्थ्य की वृद्धि ही होती है वरन् क्षयी आदि कठिन रोग भी दूर हो जाते हैं। यज्ञ के द्वारा उसी ओजोन तत्व की अधिकता से उत्पत्ति होती है। उत्तमोत्तम पौष्टिक और रसायन पदार्थों का अग्रि द्वारा जो रूपान्तर होता है उसमें ओजोन की अधिकता पाई जाती है। जो लाभ पहाड़ों पर जाकर वायु सेवन से होता है वह यज्ञ द्वारा शुद्ध हुई वायु द्वारा भी हो सकता है। भयंकर रोगों से छुटकारा पाया जा सकता है।

विज्ञान का सिद्धान्त है कि कोई भी पदार्थ नष्ट नहीं होता केवल उसका रूपान्तर हो जाता है। अग्रि में जलाने से पौष्टिक सामग्री का नाश नहीं होता वरन् श्वांस द्वारा सूक्ष्मतर होकर वायु में मिलती है और पुनः श्वांस द्वारा शरीर में प्रवेश करके बल वृद्धि करती है। जितना लाभ इस क्रिया से होता है उतना लाभ उन वस्तुओं को खाने से नहीं हो सकता। बादाम को घिस कर खाना साधारण तौर से पीस कर खाने की अपेक्षा अधिक लाभकर होता है। सूखी दवाओं से प्रवाही अधिक गुण कारक समझी जाती है। इसका कारण यह है कि किसी वस्तु के जितने अधिक सूक्ष्म परमाणु किये जायेंगे उतनी ही उनकी गुप्त शक्ति उभरेगी और सूक्ष्म होने के कारण बड़ी सरलता पूर्वक शरीर में प्रवेश करके रक्त वीर्य आदि में मिल जायेंगे। यज्ञ द्वारा उन रसायन औषधियों का इसी प्रकार का सूक्ष्मीकरण होता है। उतनी थोड़ी सी सामग्री का सार भाग खाने से एक आदमी को जितनी पुष्टि होती है उससे कई गुनी पुष्टि यज्ञ द्वारा असंख्य आदमियों की हो जाती है, इस प्रकार यह घाटे का सौदा नहीं रहता।

आग जलाने के महत्त्व को भी डाक्टर लोग एक मत से स्वीकार करते हैं। आजकल जब प्लेग, हैजा आदि महामारियाँ फैलती हैं तब सरकारी मेडीकल अफसर घरों में धुँआ करवाते हैं और आग जलवाते हैं। योरोप में अंगीठियों (फायर स्टोव) इस कार्य के लिए उपयोग में लाते हैं। पारसी और यहूदी धर्म में अग्रि जलाने की बड़ी महिमा है। स्काटलेण्ड, आयरलेण्ड, अमेरिका आदि कई देशों में अग्रि पूजन धर्म में सम्मिलित है। प्रसिद्ध तत्ववेत्ता लश्यकी ने अपनी पुस्तक में अग्रि जलाने का महत्त्व के विस्तृत विवेचन किया है। अग्रि द्वारा दूषित कीटाणु जल जाने, सील और नमी नष्ट होने की बात सब जानते हैं। उस स्थान में भरी हुई वायु गरम होकर हलकी हो जाती है इसलिए उसका ऊपर को उड़ जाना स्वाभाविक ही है। दूषित हवा के गरम होकर उड़ते ही नई शुद्ध हवा उस स्थान पर आ जाती है। वायु शोधन का इससे उत्तम और सस्ता उपाय दूसरा कोई नहीं है।

प्रसूति गृह में आग जलाने, चौके में बैठकर भोजन करने, जिस घर में किसी की मृत्यु हुई हो उसमें तेरह दिन तक आग जलाने आदि की रिवाजें इसी विज्ञान पर आधारित है। धुँआ देकर अनेक रोगों का इलाज किया जाता है। डाढ़ के दर्द, बवासीर, उपदंश, फोड़ों की खुजली, भूत बाधा आदि रोगों में तो विभिन्न औषधियों का धुँआ देकर बड़ी उत्तम चिकित्सा की जाती है। उपरोक्त बातों पर ध्यान देने और उनके द्वारा होने वाले लाभों का विचार करने के बाद यह मानना पड़ता है कि अग्रि प्रज्वलन और उसमें उत्तम पदार्थ जलाना अनुपयोगी और व्यर्थ नहीं है।

जिन्हें फिर भी यज्ञ के महत्व पर अविश्वास हो, वे परीक्षा के तौर पर कुछ दिन नियमित रूप से यज्ञ करके देखें। आरम्भ में अपने परिवार के वर्तमान स्वास्थ्य की दृष्टियों से लेखा कर लें और एक मास नित्य हवन करे। बाद अपने पास रहने वाले लोगों का फिर स्वास्थ्य परीक्षण करें। उनको आश्चर्य जनक लाभ हुआ प्रतीत होगा।


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