धीरे-धीरे

February 1940

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अखण्ड ज्योति के प्रथम अंक को देखकर कई पाठकों ने शिकायत के पत्र भेजे हैं कि इसमें मैस्मरेजम, तन्त्र संतान, योग क्रियाओं का बहुत थोड़ा बयान है। अपने उन स्नेही बन्धुओं से एक प्रार्थना हमें करनी है कि जल्दी न करें। धीरे- धीरे और थोड़ा- थोड़ा ही वे ग्रहण करे मनन करते जाय और उसे अभ्यास में लाते जाय। एक साथ उच्च कक्षा की चर्चा आरम्भ कर देना अनुचित और निष्फल होगा। हम उन अत्यन्त गुह्य और आश्चर्यजनक एवं सरल और सत्य साधनों को पाठकों के समक्ष उपस्थित करेंगे। पर एकदम उछलना ठीक न होगा। धीरे- धीरे चलिए, आपकी सब इच्छित चीजें क्रमशः मिलेगी। स्कूल में भी तो आपने क्रमशः ही कक्षाऐं पास की थी।


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