मैस्मरेजम का गुप्त तत्व

February 1940

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ले. प्रो. धीरेन्द्र नाथ चक्रवर्ती बी.एस.सी.

गत अंक में बता चुका हूँ कि मैस्मरेजम क्या है? पाठक समझ गये होंगे कि मैस्मरेजम कोई टोना, टोटका, ठगी, अन्ध विश्वास या धोके बाजी चीज नहीं है। यह शरीर शास्त्र और मनोविज्ञान की विशुद्ध वैज्ञानिक पद्धति पर निर्भर है। जिस पत्थर को सहज स्वभाव हम नहीं उठा सकते उसे विशेष परिश्रम और क्रियाओं की सहायता से उठा लेते हैं। साधारण तरीके से किसी में हाथ का धक्का मार दिया जाय तो कोई ज्यादा चोट न लगेगी किन्तु हाथ को घूँसे की शक्ल में बना कर और पूरे जोर सी खींचकर किसी के मर्म स्थान में मारें तो उसे गहरी चोट पहुँचेगी और तिलमिला उठेगा। मानसिक शक्तियों के विशेष तैयारी के साथ किये हुए आघात की शारीरिक आघात से अधिक गहरी आर स्थायी चोट पहुँचती है। यह बात स्वयं सिद्ध है कि शरीर की अपेक्षा प्राण की शक्ति हजारों गुनी है। यह कहने में भी कोई हर्ज नहीं कि शरीर की शक्ति प्राण शक्ति की ही छाया है। प्राण निकल जाने पर शरीर एक तिनका भी नहीं उठा सकता, पागल हो जाने पर छोटे छोटे दैनिक काम भी अच्छी तरह नहीं होते। डरपोक और कायर मनुष्य चाहे वे शरीर से कितने ही बलवान क्यों न हो, कोई बहादुरी का काम नहीं कर पाते। यह सब बातें बताती है कि आश्चर्य जनक शारीरिक शक्ति अनन्त मानसिक शक्ति की ही प्रतिच्छाया है। फिर इस महान शक्ति का आघात क्या शारीरिक बल से भी कम होगा? हाथी को चलाने का काम महावत का शरीर नहीं, मन करता है। इस कार्य को मनुष्य से अधिक बल रखने वाले अन्य जीव नहीं कर सकते।

मित्र विछोह में लोगों की बुरी दशा हो जाती है। मित्रों में से एक बिछुड़ जाने पर दूसरा आत्महत्या तक कर लेता है। आर्थिक या अन्य प्रकार की भारी क्षति हो जाने पर आदमी बड़े दुख में ग्रस्त हो जाता है। उन दिनों उसके शरीर की दयनीय दुर्दशा हो जाती हैं। कड़वी बात मन में स्थिर बनी है और उसका घाव मन में वर्षों रहा आता है। इन बातों का आप क्या अर्थ लगाते हैं? बुरी बात कह देने, मित्र विछोह हो जाने, आर्थिक हानि हो जाने से शरीर पर क्या चोट लगी, जिससे वह इतना दुर्बल हो गया। मानों महीनों से बीमार हो? बीमार आदमी जब खुशी की बात सुनता है तो उछलने लगता है और उसका रोग न जानने कहाँ चला जाता है। सन् १८९० में पैरिस नगर के जीन अस्पताल में भयंकर आग लगी थी। अग्रिकाण्ड का समाचार सुनकर बिस्तरों पर पड़ हुए रोगी उठ- उठ कर भागे। दूसरे दिन बाहर निकले हुए रोगियों में ऐसे पैंतालीस बीमार पाये गये जो मौत की घड़ियाँ गिन रहे थे और जिनमें चारपाई से नीचे पैर रखने की भी शक्ति न थी। डाक्टरों को यह देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ कि वे लोग किस प्रकार इतनी तेजी से तीन फर्लांग दौड़ सके। यही मनोबल है। जब आदमी किसी एक काम को ही आवश्यक समझकर उस पर विशेष विचार करता है तो उसका सम्पूर्ण बल एक तरफ इकट्ठा हो जाता है।

इस व्यक्तिगत विद्युत का दूसरों पर अच्छा और बुरा दोनों तरह का भारी परिमाण में असर होता है। योरोप के एक शहर में एक व्यक्ति को मृत्यु दण्ड दिया गया। डाक्टरों ने अपने प्रयोग द्वारा वध करने के लिए अदालत से उसे माँग लिया। अपराधी को डाक्टरों ने एक मेज पर लिटाया और उसका शरीर इस प्रकार बांध दिया कि वह हिल डुल न सके तथा यह न जान सके कि कहाँ क्या हो रहा है। उसकी आँखों से पट्टी बाँध दी गई। उसकी गरदन के पास जरा सी पिन चुभाई गई जिससे सिर्फ एक बूँद खून निकला। सुई वाले स्थान पर एक रबड़ की नली द्वारा पानी बहाया गया और नीचे एक टब रख दिया गया जिसमें नली वाला पानी टपकता रहे। अब पानी टपकना शुरु हुआ। रोगी को बराबर विश्वास दिलाया जाता रहा कि तुम्हारा खून टपक रहा है। थोड़ी- थोड़ी देर बाद उसके शरीर की परीक्षा करके झूठ- मूठ यह कहा जाता रहा कि अब तुम्हारा मृत्यु काल निकट है। अपराधी को यह विश्वास हो गया कि अब मेरा रक्त बहुत निकल चुका है और कुछ ही क्षण में मरने वाला हूँ। कुछ देर में ही उसके हृदय की गति बन्द हो गई और वह मर गया। इसी प्रकार गत वर्ष कलकत्ते के अस्पताल में एक रोगी जहर खाने के कारण मरा। जिस शीशी में से उसने दवा खाई थी उस पर जहर लिखा हुआ था। उसे विश्वास हो गया कि मैंने जहर खा लिया है। अस्पताल जाते जाते वह मर गया। मृत शरीर की परीक्षा करने पर उसमें रत्ती भर भी जहर न मिला। जिस दवा को जहर समझा गया था वह कुनेन निकली। बेचारा रोगी संदेह के कारण ही मर गया। साँपों के बारे में अनुसंधान करने वाली सरकारी कमेटी की रिपोर्ट है कि साँप के जहर से जितने आदमी मरते हैं उससे तिगुने आदमी भय के कारण मर जाते हैं। हैजा और प्लेग द्वारा मरे हुए व्यक्तियों में अधिकांश भय से मरने वाले होते हैं। तात्पर्य यह है कि विश्वास की दृढ़ता में मृत्यु उपस्थित कर देने तक की भयंकरता और असंभव शब्द को मूर्खों के उपयुक्त सिद्ध करने वाली शुभ शक्ति है।

मन के द्वारा अपना कितना हानि लाभ होता है यह हम लाग रोज मर्रा के कामों में देखते हैं। सरकस में पतले तारों पर नाचने वाले और शरीर को गेंद की तरह काम में लाने वाले नट नटी यही कहते है कि हमने कोई जादू नहीं सीखा। केवल मन को एकाग्र करने का अभ्यास किया है। जिस समय लोग तमाशा देख रहे होते हैं उस समय हमारी निगाह और सारी विचार शक्ति तार पर एकत्रित होती है। पाण्डवों के धनुर्विद्या शिक्षक ने एक दिन अपने शिष्यों की परीक्षा ली और एक चिड़िया को तीर मारने के लिए कहा। पहला शिष्य आया। गुरु ने पूछा- तुम्हें क्या दिखाई दे रहा है? उसने उत्तर दिया पेड़, टहनियाँ, चिड़िया आदि सब चीजें दिखाई दे रही हैं। गुरु ने उसे बिठा दिया और कहा तुम लक्ष्यवेध नहीं कर सकते, बैठ जाओं। इसी प्रकार दूसरे शिष्य से पूछा उसने कहा मैं चिड़िया और पेड़ की टहनी को देखता हूँ उसे भी बिठा दिया गया। तीसरे ने कहा मैं चिड़िया को देखता हूँ उसे भी लक्ष्यवेध की आज्ञा न मिली। अंतिम शिष्य ने कहा मैं केवल चिड़िया की गरदन देखता हूँ। उसे लक्ष वेधने की इजाजत मिली और उसने सचमुच ठीक निशाना मार दिया। नैपोलियन बोनापार्ट के चार हाथ नहीं थे जिस ताकत के बूते पर वह असंभव शब्द को मूर्खों के कोष में बताता था, वह मनोबल था।

इस मनोबल का गुप्त प्रकट रूप से दूसरों पर भी असर पड़ता है। जब हम लोग भले आदमियों के साथ रहते हैं तो भलमनसाहत आती है और दस दिन गुण्डों के साथ रह कर पक्के बदमाश बन जाते हैं। कहावत है कि गंगा गये तो गंगादास, जमना गये तो जमनादास। इस कहावत में यद्यपि ढील मिल स्वभाव वालों का मजाक उड़ाया गया है पर वास्तव में यह बात बिलकुल स्वाभाविक है। पिता के सामने हम पितृभक्त बनते हैं तो पत्नी के सामने पत्नीभक्त। दूसरों का जो प्रभाव हमारे ऊपर पड़ता है उसके सामने झुकना पड़ता है और उनके से विचार जबरदस्ती बनाने पड़ते हैं। अन्तर केवल निर्बल और सबल भावना का है। जिसका विश्वास दृढ़ होगा वह दूसरे को प्रभावित करेगा। गुरु शिष्य को, पिता पुत्र को, पति पत्नी को प्रभावित करता है पर शिष्य, पुत्र आदि का गुरुजनों पर उतना असर नहीं होता। यहाँ यह न समझना चाहिये कि अधिक आयु, धन, विद्या या बल वाला अपने से छोटे लोगों को ही प्रभावित कर सकता है, वरन यह बात भावना की दृढ़ता पर निर्भर है। छोटी उम्र के राजा से बड़ी उम्र के सरदार भी डरते हैं, दरोगा जी को देखकर सेठजी घबराते हैं। मौके की बात कहने वाला लड़का विद्वानों को हरा देता है। एक कमाण्डर की उपस्थिति हजारों सिपाहियों में उत्साह भर देती है। एक नेता के कहने पर असंख्य जनता अपने प्राण होम देती है। यही तो आत्म शक्ति है। आज तानाशाहों का एक वाक्य संसार में खलबली मचा देता है, यही व्यक्तिगत विद्युत है।

एकाग्रता और दृढ़ विश्वास एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। नाम दो हैं पर असल में एक के साथ ही दूसरा हो सकता है। ढील मिल स्वभाव वाले न तो किसी चीज पर अपना चित्त स्थिर कर सकते हैं और न दृढ़ विश्वास धारण कर सकते हैं। मैस्मरेजम करने वाले सिद्ध को पूर्ण एकाग्रता का अभ्यास होना चाहिये। वह अपनी सारी मानसिक शक्तियों को एकत्रित करके दूसरों के शरीर में अधिक मात्रा में प्रवेश करना जानता हो और जिस पर प्रयोग किया जाय, साधक में दृढ़ विश्वास हो। बस यही पूर्ण मैस्मरेजम है। इसमें जिनका जितना अधिक अभ्यास होगा वह उतनी ही अधिक सफलता प्राप्त कर सकेगा। शरीर द्वारा हम दूसरों का और अपना जितना भला बुरा कर सकते हैं उससे कहीं अधिक मानसिक बल मैस्मरेजम द्वारा हो सकता है। यदि शारीरिक बल संचय करन आवश्यक है तो मनोबल को बढ़ाना, मैस्मरेजम का अभ्यास करना भी फिजूल नहीं हो सकता।


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