साधना पथ और अनन्त ऐश्वर्य

May 1977

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प्रकृति के रहस्यों को जितनी तत्परता से खोजा रहा है, उसी अनुपात से एक से एक बड़े रहस्यों और शक्ति स्रोतों का पता लगता चल रहा है। आदिम काल में मनुष्य भी अन्य पशुओं की तरह ही मात्र अपने शरीर पर निर्भर था तत्परता पूर्ण शोधों ने अग्नि, विद्युत, अणु, ऊर्जा आदि अनेक शक्तियों को उसके वशवर्ती बना दिया। ज्ञान-विज्ञान की अभिनव, उपलब्धियाँ ही उसे सशक्त और सुसम्पन्न बनाती चली जा रही है। यह सब तत्परता पूर्ण शोधों का ही परिणाम है। वैसा न क पाने के कारण अन्य प्राणी असमर्थ एवं असहाय ही बने हुए है। यों प्रकृति का महान् भण्डार उनके सामने भी वैसे ही खुला पड़ा है, जैसा कि मनुष्य के सामने।

प्रकृति क्षेत्र में अधिक महत्त्वपूर्ण और रहस्य पूर्ण है- चेतना का समुद्र। वह सूक्ष्म जगत के रूप में इस समस्त ब्रह्माण्ड में हिलोरें ले रहा है। समुद्र को रत्नाकर, रत्न भण्डार कहा जाता है, पर वास्तविक सम्पदाएँ और शक्तियाँ चेतना के समुद्र में ही भरी पड़ी है। प्रकृति में तो उसी की कुछ सम्पदाओं और विभूतियों का स्त्रोत, कारण और आधार है। हमारे भीतर और बाहर इतना कुछ है, जिसकी कल्पना करना तक अशक्य है। न तो ब्रह्माण्ड के विस्तार की कल्पना हो सकती है और न चेतना के अन्तरंग बहिरंग स्तरों की गरिमा का मूल्यांकन कर सकना सम्भव है। हम अनंत वैभव के भाण्डागार के बीचों-बीच ही तो निवास कर रहे है।

दरिद्रता, अतृप्ति और अशान्ति दूर करने के लिए जिस वैभव की आवश्यकता है, उसकी उपलब्धि के दो ही पुरुषार्थ करने पड़ेंगे एक तत्परतापूर्वक शोध और दूसरा विज्ञान शक्तियों का पराक्रम पूर्ण उपयोग। जी यह चरण उठा सका उसके लिए ऐश्वर्य और आनन्द की कोई कमी नहीं रह सकती। इसी दिशा में बढ़ चलने का राज-मार्ग साधना पथ कहलाता है।


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