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May 1977

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तेषां सततयुक्तानां भजतां प्रीतिपूर्वकमू। ददामि बुद्धि योग तं येन मामुपयान्ति ते॥

तेषांमेवानुकम्पार्थमहमज्ञानज तमः। नाशयाम्यात्मभावस्थो ज्ञानदीपेन भास्वता॥

(गीता 10। 10-11)

जो प्रेम से मेरा सदैव भजन करते हैं उनको मैं ऐसी बुद्धि देता हूँ जिससे वे मुझे प्राप्त कर सकें, उन पर अनुग्रह करने के लिए मैं उनकी बुद्धि में वास कर ज्ञान-दीपक की सहायता से अज्ञान मूलक अन्धकार का नाश करता हूँ, ज्ञान भक्ति से अलग नहीं है, ऐसी बात को समझाने के लिए गीता कहती है।


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