सिद्धि का अहंकार (kahani)

May 1977

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

हसन ने अपनी सिद्धि का चमत्कार दिखाते हुए बहती नदी के ऊपर मुसल्ला (नमाज पढ़ने का आसन) बिछाया और महिला सन्त राबिया से कहा-आओ हम दोनों यहाँ नमाज पढ़े।’

राबिया उनका अहंकार ताड़ गई। उसने अपना मुसल्ला हवा में अधर फैला दिया और कहा-नदी से यह बेहतर है। क्यों न हम दोनों आसमान में नमाज पढ़े? ‘

हसन का अहंकार गल गया। वे अपनी सिद्धि का प्रभाव राबिया को दिखाकर उसे चमत्कृत करना चाहते थे, पर बात उलटी हुई राबिया की सिद्धि उनसे भी बढ़ी-चढ़ी निकली।

सटपिटाये हसन को सान्त्वना देते हुए राबिया ने कहा-देखो , हसन तुमने जो किया वह तो एक मछली भी कर सकती है और मैंने जो किया वह तो एक मक्खी के लिए भी सरल है। सच तो यह है कि हम दोनों का जो असली काम है वह चमत्कार प्रदर्शन की अपेक्षा कहीं अधिक ऊँचा है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles