भगवान बुद्ध के उपदेश

April 1952

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-जो फटे पुराने वस्त्रों को धारण करता है, जो दुबला है, जिसकी नसें दिखाई देती हैं, जो वन में अकेला ध्यान करता है। वह ब्राह्मण है। ब्राह्मणी माता से पैदा होकर कोई ब्राह्मण नहीं बनता। जिसके पास कुछ नहीं है, जो अक्रोधी है, व्रती है, सदाचारी है, तृष्णारहित है, संयमी है। वही ब्राह्मण है।

-कमल के पत्ते पर बूँद की तरह जो काम भोगों से अलिप्त है वही ब्राह्मण है। जो गम्भीर प्रज्ञावाला है, जो मेधावी है, जो मार्ग कुमार्ग को पहचानता है, जो असंप्रही है, जो इच्छारहित है, संयम विरत है, जिसने गाढ़े अमृत को पी लिया है वह ब्राह्मण है। जो पुण्य-पाप से परे है शोक रहित है, निर्मल है, शुद्ध है, वही ब्राह्मण है।

-जो काम भोगों को छोड़ अनिकेतन हो परिव्राजक बन गया है, जिसका पुनर्जन्म क्षीण हो गया है, और जिसने निर्वाण प्राप्त कर लिया है। वही सच्चा ब्राह्मण कहा जा सकता है।

-सभी धर्म पहले मन में उत्पन्न होते हैं। मन ही मुख्य है। वे मनोमय है। जब आदमी मलिन मन से बोलता वह कार्य करता है तब दुःख उसके पीछे वैसे ही हो लेता है जैसे गाड़ी के पहिये बैलों के पीछे-पीछे।

-सभी अवस्थाएँ पहले मन में उत्पन्न होती हैं। मन ही मुख्य है। वे मनोमय हैं। जब आदमी स्वच्छ मन से बोलता व कार्य करता है तब सुख उसके पीछे-पीछे वैसे ही हो लेता है जैसे कभी साथ न छोड़ने वाली छाया।

-मुझे गाली दी। मुझे मारा। मुझे हराया। मुझे लूट लिया। जो ऐसा सोचा करते हैं उनका बैर कभी शान्त नहीं होता।

-बैर बैर से शान्त नहीं होता। अबैर से ही शान्त होता है। यही सनातन का, संसार का सनातन नियम है।

-यदि घर की छत ठीक नहीं है तो जिस प्रकार उसमें वर्षा का जल प्रवेश कर जाता है उसी प्रकार यदि संयम का अभ्यास न हो तो मन में राग प्रविष्ट हो जाता है।

-पापी मनुष्य दोनों जगह शोक करता है। यहाँ भी और परलोक में भी। अपने दुष्ट कर्मों को देखकर दुखित होता है। पीड़ित होता है।

-शुभ कर्म करने वाला मनुष्य दोनों जगह प्रसन्न रहता है यहाँ भी और परलोक में भी। शुभ कर्मों को देखकर यहाँ भी मुदित होता है वहाँ भी प्रमुदित होता है।

-धर्म ग्रंथों को कितना ही पाठ करो, लेकिन यदि प्रमाद के कारण मनुष्य उन धर्म ग्रंथों के अनुसार आचरण नहीं करता है तो दूसरे की गौवें गिनने वाले की तरह वह श्रमणत्व का अधिकारी नहीं है।

-धर्म ग्रंथों को चाहे थोड़ा ही पाठ करे लेकिन यदि राग द्वेष तथा मोह से रहित कोई व्यक्ति धर्म के अनुसार आचरण करता है तो ऐसा बुद्धिमान, अनासक्त यहाँ वहाँ दोनों लोकों में धर्म का भागी होता है।

-ध्यान करने वाले जागरुक नित्य दृढ़ पराक्रम में लगे रहने वाले, धीरज नहीं अनुत्तर योगक्षेम निर्वाण को प्राप्त करते हैं।

-उद्योगी जागरुक, पवित्र कर्म करने वाले सोच समझ कर काम करने वाले संयमी धर्मानुसार जीविका चलाने वाले अप्रमादी मनुष्य के यश की वृद्धि होती है।

-प्रमाद मत करो। काम भोगों में मत फँसो। प्रमाद रहित हो ध्यान करने से विपुल सुख के भागी बनोगे।

-चित्त चंचल है, चपल है, रक्ष्य है, दुरनिवार्य है। मेधावी पुरुष इसे इसी प्रकार सीधा करता है, जैसे बाण बनाने वाला बाण को।

-कठिनाई से निग्रह किये जा सकने वाले शीघ्रगामी। जो चाहे वहाँ चला ले जाने वाले चित्त का दमन करना अच्छा है। दमन किया हुआ चित्त सुख देने वाला होता है।

वर्ष -13 सम्पादक - श्रीराम शर्मा आचार्य अंक -4


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