गायत्री महाविज्ञान के पाँच अनुपम ग्रंथ रत्न

February 1949

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गायत्री मंत्र भारतीय धर्म की आत्मा है, जड़ है। हिन्दू धर्म गंगा है तो उसका उद्गम स्त्रोत-गंगोत्री-गायत्री में है। गायत्री से चारों वेद उत्पन्न हुए हैं। वेदों में जो ज्ञान है वह बीज रूप से गायत्री में मौजूद है। इसी प्रकार श्रुति, स्मृति, उपनिषद्, शास्त्र, पुराण, दर्शन आदि में जो ज्ञान भण्डार भरा हुआ है वह सब गायत्री के थोड़े से अक्षरों में मौजूद है। इसीलिए गायत्री को सर्वश्रेष्ठ मंत्र माना गया है, और उसकी नित्य उपासना करने के लिए विशेष जोर दिया गया है।

गायत्री महाविज्ञान की विस्तृत जानकारी करने के लिए अब तक कोई ऐसा संकलन दृष्टि-गोचर नहीं हो रहा था जिसमें वह सब गायत्री संबंधी ज्ञान एकत्रित किया गया होता, जो विभिन्न शास्त्रों में फैला हुआ है। हर्ष की बात है कि ‘अखण्ड-ज्योति’ ने इस कार्य को पूरा किया है। लगभग दो हजार ग्रन्थों का दश वर्ष में मंथन करके इस संबंध में महान ज्ञान एकत्रित किया गया है। उसे अब प्रकाशित करके सर्वसाधारण के लिए सुलभ बना दिया गया है।

(1) गायत्री विज्ञान- गायत्री शक्ति का वैज्ञानिक विवेचन तथा परिचय, गायत्री की सरल, सुबोध एवं नित्य करने योग्य साधनाओं का वर्णन, गायत्री उपासना से होने वाले चमत्कारी लाभों की विवेचना, इस पुस्तक में बड़े विस्तार से की गई है। गायत्री संध्या, गायत्री अनुष्ठान तथा गायत्री यज्ञ की विधियाँ भली प्रकार समझाई गई हैं।

(2) गायत्री रहस्य- गायत्री मंत्र के एक-एक अक्षर में ज्ञान का अगाध समुद्र भरा हुआ है। इन चौबीसों अक्षरों की ऐसी विस्तृत व्याख्या, विवेचना एवं मीमाँसा की गई है कि उनके गर्भ में छिपे हुए ज्ञान भंडार का परिचय भली प्रकार प्राप्त हो जाता है। अनेकों ऋषियों ने, शास्त्रों ने, वेद भाष्यकारों ने, राक्षस राज रावण ने गायत्री के जो विभिन्न अर्थ किये हैं वे सब भी इस पुस्तक में मौजूद हैं। ‘गायत्री रामायण’ भी इसी पुस्तक में संकलित है।

(3) गायत्री के अनुभव- वेद, शास्त्र, पुराण, स्मृति, उपनिषद् आदि में वर्णित गायत्री की महिमा तथा प्राचीन काल से लेकर आधुनिक काल तक के महापुरुषों ने गायत्री के संबंध में जो अपने अनुभव और अभिमत प्रकट किये हैं उन सबका इस पुस्तक में वर्णन है। साथ ही अनेक साधकों ने गायत्री की उपासना करके जो अद्भुत लाभ प्राप्त किये हैं, उसके स्वयं बताये हुए वर्णन भी दिये गये हैं।

(4) गायत्री तंत्र- गायत्री मंत्र को “मन्त्र राज” कहा है। उससे बड़ा कोई मंत्र नहीं है। जो कार्य संसार के अन्य किसी भी मंत्र से हो सकता है वह गायत्री मंत्र से भी हो सकता है। इस पुस्तक में दक्षिण मार्गी वेदोक्त, तथा बाम मार्गी तंत्रोक्त दोनों प्रकार की विधियाँ बताई गई हैं जिनके द्वारा सात्विक, राजस और तामसिक तीनों ही प्रकार के लाभ उठाये जा सकते हैं। पुरश्चरण, अभिचार, कवच, कीलक, मारण, सम्मोहन आदि सभी साधनाओं का पथ प्रदर्शन किया गया है।

(5) गायत्री योग- गायत्री द्वारा 12 योगों की साधना हो सकती है। प्रणव-योग, विश्व-योग, ध्यान-योग, सूर्य-योग, प्राण-योग, दिव्य-योग, विभु-योग, विज्ञान-योग, लय-योग, नाद-योग, षट्चक्र-योग, ग्रन्थि-योग इन बारह योगों की मीमाँसा तथा उनकी साधना विधि भली प्रकार बताई गई है। गायत्री द्वारा इन बारह योगों को सुगमता पूर्वक किस प्रकार साधा जा सकता है यह सब इस पुस्तक में बताया गया है साथ ही गायत्री उपनिषद् भी है। इस पुस्तक के द्वारा गृहस्थ व्यक्ति भी योगी बन सकता है।

पाँचों पुस्तकें एक साथ लेने पर डाक खर्च माफ। व्यवस्थापक-’अखण्ड-ज्योति’ कार्यालय, मथुरा।

वर्ष-10 संपादक-श्रीराम शर्मा आचार्य अंक-2


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