स्वास्थ्य वर्धक कुछ सरल कसरतें

February 1949

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अमेरिका के मि. सैनफोर्ड वैनेट ने एक महत्वपूर्ण व्यायाम पद्धति का आविष्कार किया है। वे इतने सरल और सीधे हैं कि मनुष्य उन्हें लेटा-लेटा भी कर सकता हैं। वृद्ध, युवा और बालक तथा बालिका में सभी इन व्यायामों से लाभ उठा सकते हैं। समय भी उनमें विशेष व्यय नहीं होता, 30 मिनट में ही समाप्त किये जा सकते हैं। मि. वैनेट जब 50 वर्ष के हुए उस समय अपने ही को इन व्यायामों के आजमाने का साधन बनाया और 75 वर्ष की आयु में उनके शरीर में वह परिवर्तन आया कि उनका शरीर एक 30 वर्ष के युवक जैसा दिखाई पड़ने लगा। इस व्यायाम में एक विशेषता यह है कि मनोविज्ञान के आधार पर इसकी स्थापना की गई है, यदि इसमें व्यायाम करते समय यह न सोचा जाय कि इस अमुक अंग का व्यायाम करते हुए मेरा अमुक अंग व्यायाम के कथित लाभ को प्राप्त कर रहा है तो बहुत कुछ संभव है उतना लाभ न हो जितना कहा गया है या होना चाहिये। इससे इन व्यायामों को करते समय मन में यह धारणा करनी आवश्यक है कि मैं जिस व्यायाम को जिस अंग की पुष्टि के निमित्त कर रहा हूँ। उस व्यायाम से मेरा वह अंग पूर्ण पुष्टि को प्राप्त हो रहा है और व्यायाम का लाभ मुझे पूर्ण रूपेण मिल रहा है। इस प्रकार व्यायाम करने पर एक आश्चर्यजनक लाभ होता है। अब पाठकों के समक्ष उन व्यायामों को उपस्थित करते हैं।

गले की कसरतें -

(1)प्रथम चित्त लेट जाओ, फिर कंधों के नीचे तकिया रख लो। पुनः अपने सिर को आगे की ओर झुकाकर फिर पीछे की ओर झुकाओ। इस प्रकार 5 बार से शुरू करके 100 बार तक करना ही पर्याप्त है।

इस व्यायाम से ग्रीवा की नसों में तनाव आता है इसी कारण बुढ़ापे की निशानी झुर्रियाँ नष्ट हो जाती हैं। गला हृष्ट-पुष्ट होकर सुन्दर बन जाता हैं। पेट की नसों में तनाव और ढील आने से पेट को भी लाभ होता है।

(2) ग्रीवा में 2 माँस पेशियाँ हैं जो सिर के पिछले भाग से प्रारम्भ होती हैं और कन्धों में पसलियों की हड्डियों के समीप समाप्त होती हैं। जब ये पेशियाँ कमजोर पड़ जाती हैं तो गर्दन भी कमजोर पड़ जाती है। इन पेशियों की मालिश करने और इनमें खिंचाव पैदा करने से गर्दन सुदृढ़ बन जाती है। इनके लिए नीचे लिखी विधि काम में लावें।

(अ) अपने दोनों हाथों की अंगुलियों को आपस में फंसा कर सिर के पीछे दृढ़ करके जमा लें। फिर सिर को अकड़ाकर पृष्ठ भाग की ओर अत्यन्त शक्ति से मोड़ें। इस प्रकार 5 बार से प्रारम्भ करें और सप्ताह में 2 बार बढ़ाते जायें।

(ब) एक करवट लेटकर अपनी ठोड़ी को ऊपर वाले कंधों पर छुआवें। इसी तरह दूसरे करवट से भी करें। इससे नसों में तनाव आने से और सिर के सीधा करने से नसें ढीली होने से सारी सुकड़न दूर हो जाती हैं।

कन्धों का व्यायाम -

(1) सीधे लेटकर कोहनी को जोर से तान कर बारबार वाली छाती में मारिये। 5 से 50 तक करें। इससे कमजोर और ढीले कन्धे सुडौल और दृढ़ हो जाते हैं। ग्रन्थिवात या हवा का दर्द भी इससे जाता रहता है।

(2) सीधे लेटकर एक हाथ की कोहनी दूसरे से और दूसरे की पहले से परस्पर पकड़कर मारो। इससे कंधे दृढ़ होते हैं और छाती का विस्तार होता है।

(3) सीधे लेट कन्धों को नीचे ऊपर करें। यदि पूर्व में कुछ पीड़ा जान पड़े तो घबराइये मत। 5 से प्रारम्भ करके बढ़ाते रहें। ऊंचे तथा सुदृढ़ करने का यह सर्वोत्तम साधन है।

(4) दोनों हाथों से कोहनी पकड़कर सीधे लेट जाइये फिर शनैः-2 सिर को अपनी छाती की ओर झुकाइये, पुनः पीठ को ढीला करिये और बाहुओं को तानिये तथा कन्धों का संचालन कीजिये। 5 से 15 तक आवश्यक है। इससे कमर में भी शक्ति उत्पन्न होती है।

भुजाओं का व्यायाम -

(1) लेटकर एक करवट से सो जाइये, पुनः अपने ऊपर वाले हाथ को निचले हाथ से पकड़ कर दबाइये तथा ऊपर वाले हाथ को ऊपर को खींचिये। बढ़ाते हुए 5 से 15 तक बढ़ाइये।

(2) एक हाथ से दूसरे की कलाई को पकड़िये और दूसरे में 2-21। सेर का डम्बल लेकर उसे सीधा कीजिये। 10 से 15 पर्याप्त है।

(3) एक करवट सो जाइये और ऊपर वाली कोहनी को नीचे के हाथ से पकड़िये और फिर दोनों को नीचे ऊपर हिलाइये।

(4) प्रथम करवट के सहारे लेटकर ऊपर वाली जो बाजू है उसको सीधी तान दें और मुट्ठी बाँध कर जोर से अकड़ाइये। इसके अनन्तर हाथ को बल देते हुए पीछे आगे करिये। 5 से 15 तक काफी है।

(5) एक हाथ से दूसरी बाजू का मध्य भाग पकड़िये और जिस हाथ से पकड़ा है उस करवट लेट जाइये, फिर उस पकड़े हुए हाथ को अकड़ा कर पीछे की ओर ले जाइये। 5 से 15 पर्याप्त होगा।

(6) एक डेढ़ इंच मोटी लोहे की छड़ खाट के सिरहाने गाड़ लीजिये। सीधे लेटकर उस छड़ को हाथ से पकड़ कर सारे शरीर का भार उस पर तोल कर ऊपर उठिये। उसी तरह दूसरे हाथ से करिये। फिर एक साथ दोनों हाथों से वैसा ही करें। 5 से 15 तक पर्याप्त हैं।

बगल की माँस पेशियों का व्यायाम -

तकिये पर करवट से लेटकर सिर को ऊंचा करिये। पैरों को भी साथ ही उठाते जाइए। 7 बार तक करिये।

पेडू का व्यायाम -

सीधे लेटकर क्रमशः दाँया, बाँया घुटना उठाकर छाती की तरफ झुकाइये। 15 तक पर्याप्त है।

लाभ- इस व्यायाम से मसाने में और आँतों में बल का संचार होता है विष्टम्भ (कब्जी) दूर होती है।

कमर के मसल्सों का व्यायाम -

(1) खाट पर सीधे होकर बाहुओं को छाती की ओर टेढ़ा करके घुमाओ। पुनः तकिये से सिर को उठा कर बांये-दायें मुड़िये। 5 से 15 बार तक।

(2) हाथ चूतड़ों पर रखकर सीधे खड़े हो जाइए। फिर शरीर को दोनों ओर झुकाइए।

(3) करवट से चारपाई पर लेटकर क्रमशः दोनों घुटनों को पकड़-2 कर जोर से खींचो और ढीला कर दो। 10 से 15 बहुत है।

(4) करवट के बल लेट जाइए और फिर दोनों हाथों को पकड़ लीजिए। तदनंतर उनके बीच में घुटनों को फंसा कर ऊपर की ओर तानों और ढीला कर दीजिए, दोनों तरफ ऐसा ही कीजिए। कन्धा, कमर और पीठ में शक्ति का संचार होगा।

(5) कूल्हे को करवट के बल लेटकर सामने की ओर झुकाइये तथा ऊपर की कोहनी को पीछे की ओर हटाइए। यह दोनों कार्य एक साथ ही होने चाहिए। दोनों करवटों से करिये। 5 से 10 बार।

टाँग और जाँघों का व्यायाम -

(1) खाट में पैरों की ओर डेढ़ फुट लम्बा एक रस्सा बाँध लीजिए। रस्से के दूसरे सिरे पर एक फंदा लगा लीजिए। पुनः एक करवट लेट कर ऊपर का पैर नीचे के पैर के ऊपर लाकर खाट की पाटी से छुआइये और रस्से को खींचिये और ढीला कीजिए। इसी प्रकार दूसरी करवट भी करिए इससे पिंडलियों की फूली हुई नसें ठीक हो जाती हैं और कमजोरी दूर होती है।

सम्पूर्ण शरीर का व्यायाम -

हाथों को दोनों कुहनियों के ऊपर रखकर करवट से लेट जाइये। टाँगों को सीधा रखो और कुहनियों को सिर के पीछे की ओर झुकाओ। पुनः दोनों हाथों का बल कोहनियों पर देकर सम्पूर्ण शरीर को अकड़ा दीजिए और दो तीन सेकेंड भर इसी अवस्था में रहिए। एकाध सेकेंड विश्राम करके पुनः ऐसा ही करिए। ऐसा करने से एकदम पसीना आ जायेगा। शनैः-2-10 बार तक बढ़ाइये।

आँखों का व्यायाम -

सीधे लेटकर दोनों आँखों से क्रमशः दोनों ओर दूर-दूर तक देखिए। और फिर एक बार की आँखों को जोर से बन्द कर लीजिए। फिर आँख खोलकर ऊपर नीचे, तिरछे पुतलियों को वृत्ताकार दूर-दूर तक घुमाइए। इससे आँखों में ज्योति आकर चश्मा लगाने का अभ्यास छूट जाता है।

यकृत का व्यायाम -

(1) चित्त लेटकर दोनों पैरों को खड़ा कीजिए। पुनः सीधी तरफ दोनों हाथों की अंगुलियों के अग्र भागों को पसली तथा कूल्हे की हड्डी के मध्य में पेडू पर रखिये। पुनः अंगुलियों को दबाकर पसलियों से लगाये हुए ऊपर की ओर खींचिए। 20 बार इसी प्रकार नीचे से ऊपर की ओर खींच-2 कर छोड़िये। अभ्यास 100 तक कीजिए। इससे पेट दबकर पेडू की नसें ढीली होंगी और जिगर में उत्तेजना आयेगी।

(2) सीधी करवट लेटकर सीधे हाथ को नीचे सीधा फैला दो। फिर उल्टे हाथ को जिगर पर रख सिर को सामने की ओर थोड़े-2 झुका लीजिए और साथ ही घुटनों को भी थोड़ा समेट लीजिए। (इस प्रकार से नसें ढीली होकर यकृत ऊपर उठा सा दिखाई देगा) अब उस जिगर को अंगूठों से पसलियों के नीचे दबाइए।

(3) उल्टे हाथ की करवट लेटकर सिर और घुटनों को झुकाइए। उल्टे हाथ को सीधी बगल में दबाकर सीधे हाथ की मुट्ठी बाँधकर जिगर पर हौले से जल्दी-2 मारिए। 20 से प्रारम्भ कर बढ़ाते जाइए।


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