मुख-श्री की वृद्धि के कुछ सहज उपाय

February 1949

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बहुत से लोग अपने नित्य-प्रति के जीवन में अपनी मुख-मुद्रा की ओर भूलकर भी ध्यान नहीं देते। वे कभी दर्पण में अपने चेहरे के प्रभावशाली केन्द्रों का निरीक्षण ही नहीं करते। अनेक व्यक्तियों के मुख मण्डल पर जो झुर्रियाँ पड़ी रहती हैं, चेहरे पर जो बराबर मायूसी सी छाई रहती है, इसका वास्तविक कारण क्या है? इस पर लोग बहुत कम विचार करते हैं। चेहरे के अवयवों पर अधिक जोर डालने से-जैसे मुँह बिचकाना, चिढ़ाना आदि-अपने आपको हर घड़ी दार्शनिक के रूप में बनाए रखने से, मुखमण्डल पर स्थायी रूप से झुर्रियाँ पड़ जाती हैं। इस तरह का मनुष्य समय आने से पहले ही वृद्ध दिखने लगता है। मुख-मण्डल मानव हृदय को प्रतिबिम्बित करने वाला उज्ज्वल दर्पण है। अमुक व्यक्ति का हृदय कितना सुन्दर अथवा असुन्दर है, यह उसके मुख-दर्पण पर दृष्टिपात करके कोई भी व्यक्ति आसानी से समझ सकता है। संसार के मनोवैज्ञानिकों ने मनुष्य के चरित्र विश्लेषण अथवा मनोविश्लेषण को मुख-मुद्रा का प्रमुख साधन बताया है। फिर यदि यह दर्पण धुँधला ही बना रहे तो, यदि मानव की आत्मा, मानव का हृदय प्रतिबिम्बित न होता रहे, तो भला मानव-जीवन किस प्रकार सुख-परिपूर्ण एवं आनन्दमय बन सकता है?

जिस प्रकार रेशमी वस्त्र में मोड़ने या तह लगा कर रखने के कारण सिकुड़न पैदा हो जाती है और फिर बार-बार प्रयत्न करने पर भी वह दूर नहीं होती, वही बात चेहरे की झुर्रियों के भी सम्बन्ध में समझनी चाहिए। चेहरे की रंगों और नसों को किसी विशिष्ट मुद्रा में बनाए रखने, मोड़ने या सिकोड़ने की आदत पड़ जाने पर वह आसानी से दूर नहीं की जा सकती। फिर तो मनुष्य अपनी इस आदत से लाचार हो जाता है-लाख प्रयत्न करने पर भी उससे छुटकारा नहीं मिलता। ऐसे व्यक्ति यदि हंसना, खिलखिलाना अथवा उत्फुल्ल होना चाहें, तो भी उनके मुख-मण्डल पर वह रौनक नहीं आ पाती, जो वास्तव में आनी चाहिए। अपने वास्तविक मनोभावों को बरबस छिपाने और चेहरे को लगातार विद्रूप मुद्रा में बनाए रहने से मुखाकृति का बिगड़ जाना, उसकी सुन्दरता का नष्ट हो जाना सर्वथा स्वाभाविक है। निरन्तर क्रोध करने वाले व्यक्ति की आकृति भयानक हो जाती है और वह क्रोध की प्रतिमूर्ति बन जाता है। इसी प्रकार लगातार चिंता करते रहने से भी मुखश्री को भारी आघात पहुँचता है। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि मानसिक कारणों से नष्ट हुई चेहरे की सुन्दरता की क्षति-पूर्ति बाहरी उपकरणों से उतना अधिक नहीं की जा सकती है जितनी कि प्राकृतिक साधनों से चेहरे को सुन्दर एवं प्रभावशाली बनाने के लिए दर्पण में सुतीक्ष्ण दृष्टि से अपनी मुखाकृति का अवलोकन करें। चेहरे का कौन सा अवयव अथवा अंग सुडौल अथवा समानुपातिक नहीं है, उसमें कौन-कौन से वैषम्य विद्यमान हैं, मुख मण्डल पर किन-किन मनोभावों की स्पष्ट छाप पड़ती है, इन सारी बातों का अपनी मुख-मुद्रा के द्वारा पता लगाने का प्रयत्न कीजिए। इसके लिए किंचित् अभिनय का भी अभ्यास करना चाहिये। प्रारम्भ में छोटे-छोटे मनोभावों को मुख-मण्डल पर मुद्रित करने का प्रयत्न करें और इनमें सफलता मिलने या क्रमशः अपेक्षाकृत गम्भीर मनोभावों का। उग्र मनोविकार मुख-श्री को नष्ट कर देते हैं, इस बात को सदैव ध्यान में रखते हुए अपने को भूलकर भी मानसिक उद्वेगों-शोक, क्रोध, ईर्ष्या, घृणा आदि-का शिकार मत बनने दें। मन में शान्ति, आनन्द और उत्साह-वर्धक विचारों को स्थान दें। सद्विचार के स्थायित्व से ही मुखाकृति प्रभावशाली बनती है। जिसने अपने मनोविकारों पर अंकुश जमा लिया है, वह दूसरों को बड़ी आसानी से प्रभावित तथा आकर्षित कर सकता है। मन की एकाग्रता एवं अभ्यास से मनोद्वेग पर विजय प्राप्त की जा सकती है।

चेहरे को सुन्दर तथा प्रभावशाली बनाने के इस मानसिक साधन को समुचित रीति से उपयोग में लाने पर ही बाह्य उपकरण भी आँगिक उपचार के तौर पर चेहरे की सुन्दरता बढ़ाने में विशेष सहायक हो सकते हैं। किन्तु उसके लिए बाजारों में आमतौर से बिकने वाली पेटेन्ट दवाइयों, क्रीम, पाउडर आदि का प्रयोग न करके प्राकृतिक उपचार करना श्रेयस्कर होगा। चेहरे की झाई, मुंहासे, झुर्रियाँ, साधारण फुँसियाँ दूर करने के लिए नींबू का प्रयोग विशेष उपयोगी होता है। दही और छाछ मलने से चेहरे की स्वाभाविक लालिमा बढ़ती है और मुख-मण्डल की त्वचा, स्वच्छ, सुकोमल और कान्तिवान बन जाती है। इसी प्रकार के अन्य प्रकार के प्राकृतिक उपचार भी हैं। जिनका बड़ी सफलतापूर्वक उपयोग किया जा सकता है।


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