दृष्टि-दोष दूर करने की सरल विधि

February 1949

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(ले.-डाँ. आर. एस. अग्रवाल, नेत्र विशेषज्ञ, दिल्ली)

अक्सर लोग पढ़ते समय नेत्रों में पानी आने, खुजली और जलन होने, आँख और सिर में दर्द होने आदि बातों की शिकायत किया करते है। अनेकों के लिये यह असम्भव हो जाता है कि वे बुढ़ापे में बारीक अक्षर पढ़ सकें और किताब को नजदीक रखकर देख सकें। पढ़ने में किसी प्रकार की भी दिक्कत या तकलीफ होने से डॉक्टर लोग तुरन्त चश्मा लगाने की सलाह दे देते हैं, पर चश्मा लगाने से दृष्टि कमजोर होती जाती है। जिसकी वजह से लोगों को बार-बार चश्मा बदलना पड़ता है। बहुत से रोगियों का कष्ट चश्मे से दूर नहीं होता और उन्हें बार-बार चश्मेवालों की दुकानों पर जाना पड़ता है। इस प्रकार नए-नए चश्मे खरीदते रहने के कारण उनके घर में चश्मे की एक दुकान ही बन जाती है।

यदि आप पढ़ने के नियम जान लें और उनको प्रयोग में लावें तो लिखने-पढ़ने की हर प्रकार की कठिनाई दूर हो जाय, चश्मे की आवश्यकता न रहे और आपके नेत्र जन्म भर स्वस्थ बने रहें तथा मोतियाबिन्द की बीमारी कभी न सतावे। पढ़ने की चक्षु स्वास्थ्यवर्द्धक विधि नीचे दी जाती है।

(1) पढ़ते समय आपकी किताब नीचे की ओर रहनी चाहिये, नेत्रों के बिल्कुल सामने नहीं।

(2) आप कुर्सी या जमीन पर आराम से बैठें। पढ़ते समय अपने हाथों को सिर या ठोड़ी पर न रखें। सिर को किसी एक ही विशिष्ट अवस्था में न रखकर जरा-जरा हिलाते रहें। यदि आप लेटकर पढ़ने के अभ्यासी हों तो पढ़ने के समय सिर के नीचे कोई तकिया लगाकर पढ़ना चाहिए, करवट लेटकर नहीं।

(3) पढ़ते समय ऊपर की पलकें कुछ-कुछ नेत्रों पर गिरी रहनी चाहिये, आँखों को अधिक नहीं खोलना चाहिए। पढ़ते समय पलकों को धीमे-धीमे गिराते रहना नेत्रों के लिए लाभदायक है।

(4) जाड़े की ऋतु में अक्सर लोग धूप में बैठकर भी पढ़ते है। परन्तु जो लोग धूप में पढ़ना चाहें, उन्हें अपनी किताब ऐसे स्थान पर रखनी चाहिये जिससे किताब पर धूप न पड़े। यदि चेहरे पर धूप पड़ती हो तो परवाह नहीं। परन्तु यदि धूप किताब पर पड़ेगी तो आपकी आँखों पर जोर पड़ेगा। इसलिए इससे आपको बचना चाहिये।

(5) पढ़ने के लिये रोशनी बहुत तेज नहीं होनी चाहिए। बिजली की तेज रोशनी में पढ़ना आँखों के लिए हानिकर है। मोमबत्ती, शेडदार टेबल लैम्प या दूधिया बल्ब पढ़ने के लिए उपकारी हैं। अगर सादे बल्ब से पढ़ना पड़े तो इस प्रकार से पढ़ना चाहिये कि बल्ब की किरणें कागज पर सीधी न पड़े।

(6) धीरे-धीरे पलक झपकाने से नेत्रों को आराम मिलता है। हर पंक्ति के पढ़ने में पलकों को एक या दो बार जरूर झपका लेना चाहिये और इस काम को कैसे करना होगा इसको भी आपको ठीक तौर पर जान लेना चाहिए। पलकों को ठीक तौर पर झपकाने का तरीका यह है कि ऊपर की पलकें धीरे-धीरे नीचे की ओर गिरें और फिर धीरे-धीरे ऊपर उठें। पर नीचे की पलकों को उनसे ऊपर ही ऊपर रखें, बहुत से नेत्र विकार पलक को ठीक तौर पर झपकाने से ही दूर हो जाते हैं।

(7) रोज सुबह को दस मिनट तक सूर्य की ओर नेत्र बन्द करके बैठना चाहिए और अपने सिर को साँप के फन की तरह धीरे-धीरे हिलाना चाहिये। फिर छाया में आकर ठंडे पानी से नेत्रों को धोना चाहिए। इस प्रकार नित्य सूर्य व्यायाम करने से नेत्र स्वस्थ बने रहते हैं, दृष्टि तेज होने लगती है।

(8) आमतौर पर लोग यह समझते हैं कि बारीक अक्षर पढ़ने से नेत्र कमजोर हो जाते हैं। यह विचार गलत है। बारीक अक्षरों को नित्य पढ़ने से दृष्टि ठीक बनी रहती है और नेत्र की पीड़ा भी जाती रहती है।

(9) अच्छी आँखों में यह विशेषता देखी जाती है कि पढ़ने वाले को पुस्तक के वे अक्षर जिन्हें वह पढ़ता हो औरों की अपेक्षा अधिक काले प्रतीत होते है। इसका यह अर्थ है कि उनकी आँखों में त्राटक का तेज मौजूद है। जिन लोगों को किताब के अक्षर अधिक काले नहीं मालूम होते, उनके बारे में यह समझना चाहिए कि उनमें त्राटक के तेज की कमी है। इस कमी के कारण ही नेत्र पढ़ते समय थक जाते हैं। इस तेज को उन्हें बढ़ाना चाहिए।

(10) सूर्य चक्षु व्यायाम के बाद आँखों को हाथ से ढंके, नेत्रों को इस प्रकार से बन्द करें कि हाथ का दबाव आँख पर न पड़े। पाँच मिनट तक आँखों को ढंके रहें और किसी काली वस्तु का ध्यान करें। इस क्रिया को पामिंग (palming) कहते हैं। फिर हाथ हटा कर धीरे से नेत्रों को खोलें और हौले-हौले पलकों को झपकें, सिर को दाँये बांये हिलाएं और अपनी दृष्टि पुस्तक की सफेद पंक्तियों पर घुमायें। इस तरह पढ़ने की चेष्टा किये बिना ही आठ-दस पृष्ठ शेष कर दें। किताब को उल्टी रखने से यह क्रिया सुगमता से होती है, क्योंकि इससे पढ़ने की चेष्टा में कमी हो जाती है। दो-तीन दिन के बाद ऐसा महसूस करें कि सफेद पंक्तियों पर दृष्टि घुमाते समय ऊपर के अक्षर और शब्द अधिक काले प्रतीत होते हैं।

(11) सूर्य व्यायाम और पामिंग करके पलक झपकाना, सिर को जरा-जरा हिलाना और टेस्ट टाइप (Test type) पढ़ना। टेस्ट टाइप (बारीक अक्षरों की पुस्तक) को इतनी दूरी पर रखना चाहिये जहाँ से आपको साफ दिखाई दे। फिर फासला धीरे-धीरे कम करते जाना चाहिए।

इन अभ्यासों के करने से अनेक रोगियों की दृष्टि बढ़ गई है और चश्मा लगाने से उनका पिंड छूट गया है। एक साठ साल के बुड्ढ़े की दृष्टि तीन दिन के अभ्यास में बारीक अक्षर पढ़ने के योग्य हो गई थी। इन्हीं उपायों के द्वारा बहुतों ने अपनी दृष्टि स्वस्थ और उत्तम बनाई है। इन विधियों के अभ्यास से, कौड़ी खर्च किए बिना ही, हर कोई लाभ उठा सकता है।


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