जीवन संदेश

February 1949

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ले.- पं. शिवशंकर लाल जी त्रिपाठी, हसवा (फतेहपुर)

नाशकारी कण्टकों में, पुष्प बनकर मुस्कराना।

रूप रस नव गन्ध दे, उपवन सदा सुरभित बनाना॥

(1)

तोड़ता है कौन तुझको, गूँथता है कौन तुझको?

फेंकता है, कुचता है, यह कभी परवाह मतकर-

चाह ले मत झूमना तू, आह सहकर मुस्कराना।

नाशकारी कण्टकों में, पुष्प बनकर मुस्कराना॥

(2)

भूलना उसको नहीं, जिसने तुझे ऐसा बनाया।

फूलना मन में नहीं, परहित सदा जीवन लगाया॥

कीर्ति यश की कामना तू, भूलकर मन में न लाना।

नाशकारी कण्टकों में, पुष्प बनकर मुस्कराना॥

(3)

यह उसी का विश्व सारा, है तुझे जिसने बनाया।

कौन सा उपकार है, यदि तू उसी के काम आया॥

ध्यान रख कर्त्तव्य पथ, मन को कभी भी मत डिगाना।

नाशकारी कण्टकों में, पुष्प बनकर मुस्कराना॥

(4)

फूल ते ऐ फूल! सारे विश्व को सुरभित बना दे।

आज भूले विश्व को नव मार्ग का दर्शन करा दे॥

यह अमर संदेश अपने प्राण बन में गुनगुनाना।

नाशकारी कण्टकों में, पुष्प बनकर मुस्कराना॥

*समाप्त*


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