सिद्धि रूपी संपदा-साधकों को ही मिलती है?

January 1945

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संसार में अनेक प्रकार के सुख हैं पर सफलता की विजय का सुख सबसे बड़ा है। इससे बढ़कर और कोई सुख नहीं। एक मनुष्य जब अपनी चिर संचित इच्छा और आकाँक्षाओं को पूरा हुआ देखता है तो उसे एक आन्तरिक सन्तोष मिलता है। यह सन्तोष एक प्रकार की आध्यात्मिक खुराक है, जिसके मिलने से आत्मबल में असाधारण वृद्धि होती है।

विजय अकेली नहीं आती वह अपने साथ अनेक सम्पत्तियाँ लाती है, जिनके वैभव से मनुष्य का मन, शरीर और घर जगमगाने लगता है। जिसने सफलता प्राप्त की, उसके गले में लक्ष्मी की वरमाला पड़ती है, संसार उसके आगे मस्तक झुका देता है। उसके दोष भी गुण बन जाते हैं। यह दुनिया सदा से ही विजयी वीरों की पूजा करती आ रही है। जिसने अपना पराक्रम प्रकट किया है, उसी की महानता स्वीकार की गई है। जिसने चमत्कार कर दिखाया उसे नमस्कार किया गया है।

इसलिए मनुष्य जीवन में प्राप्त हो सकने वाली सम्पदाओं में सफलता को, सिद्धि को सर्वोपरी सम्मान दिया गया है। इस महान सम्पदा को हर कोई चाहता है, प्रत्येक व्यक्ति इच्छा करता है कि अमुक काम में सफलता प्राप्त करूं परन्तु इन चाहने वालों में से बहुत कम लोग सफल मनोरथ हो पाते हैं। कारण यह है कि जो वस्तु जितनी ही उत्तम है वह उतने ही कठिन प्रयास से मिलती है। जिनमें दृढ़ता, साहस, पौरुष, पराक्रम लगन की परिश्रम शीलता है वे ही इस सम्पदा के अधिकारी होते हैं। साधना से सिद्धि मिलती है। जो लोग एकाग्रता पूर्वक अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर रहते हैं वे ही विजयीश्री को प्राप्त करते हैं।


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