बलवर्धक सिद्धपाक

January 1945

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(बा. गुरुदयाल वैद्य अलीगढ़)

शीतकाल के दिनों में शरीर से कार्बोनिक ऐसिड गैस (Carbonic acid gas) अधिक निकलने के कारण पाचन शक्ति बलवती रहती है, जो पाया जाता है सम्यक् तथा शीघ्र पच जाता है। यथेष्ट रस बनता है। यही कारण है कि प्रायः लोग जाड़ों में हलुवा निशास्ता मोदक पाक आदि सेवन करते है। अतः हम भी इस पत्र के वाचक वृन्दों के निमित्त शरद ऋतु में सेवन करने योग्य अति लाभप्रद एवं उपयोगी पाक का प्रयोग (नुस्खा) भेंट करते हैं। उसके गुण आयुर्वेद ग्रंथों में इस प्रकार हैं- दृष्टि को प्रदीप्त करता है, बल को बढ़ाता हैं। दाँतों के विशीर्ण होने को शमन करता है। बुद्धि को बढ़ाने वाला और पुष्ट करने वाला है। जो स्त्री प्रसंग से क्षीण हो गये हों अथवा जिनको वीर्य रोग हो उनके सब विकार शाँत हो जाते हैं। मनुष्य का रहित हो जाते हैं। साराँश यह कि शारीरिक, मानसिक, दुर्बलता, धातु विकार, स्वप्नदोष, प्रमेह, शीघ्र पतन, प्रदर आदि रोगों में विशेष लाभप्रद है। बाल से वृद्ध पर्यन्त प्रत्येक स्त्री पुरुष इस अवस्था में जाड़े के मौसम में सेवन कर सकता है। प्रयोग इस प्रकार है।

1. मूसली सफेद, सालिव मिश्री, तालमखाना, सोंठ वहमन लाल, वहमन सफेद, तोदरी लाल, शुद्ध मिलावा, तुदरी सफेद, कौंच के बीज, बड़ा गोखरु, छोटी पीपल प्रत्येक एक-एक तोला। साफ कर धूप दिखा कूटकर वस्त्र से छान लीजिये।

2. जायफल, जावित्री, छोटी इलायची, अकरकरा, लौंग प्रत्येक नौ-नौ माशे, वंगभस्म, अभ्रक भस्म, प्रवाल भस्म, लोह भस्म, हरिताल भस्म, प्रत्येक तीन-तीन माशे कस्तूरी 4 रत्ती केशर 3 माशे, सोने के वर्क 15 नग चाँदी के वर्क 45 नग, गो घृते 5। :, गाय के दूध का खोवा 5। :, केवड़ा 10 कि.ग्रा. जायफल से लौंग तक सब दवाओं को बारीक कूट पीसकर रख लीजिये।

3. बादाम की मींग 5-, चिलगोजे की मींग 5-, पिस्ता 5-, अखरोट की मीग 5-, चिरौंजी 5-, फिनूक की मींग 5-, काजू की मींग 5-।

विधि- वर्ग 3 में लिखी बादाम की मींग को प्रथम पानी में गलाने डाल दीजिये, फिर इसी वर्ग में लिखी चिलगाजे आदि अन्य मेवाओं को गाय के कच्चे दूध के साथ सिल कर एक-एक करके पिठी की तरह बारीक पीस लीजिये, अन्त में बादाम की मींग को छीलकर उसे भी सिल पर कच्चे दूध के साथ पीस लीजिये पुनः सब को थोड़ा सा घी डाल कर कड़ाही में भून लीजिये, वर्ग नम्बर दो में लिखे 5। : खोवे को भी घी डाल खूब भून लीजिये अब भुनी हुई मेवाओं की पिठी तथा भुने हुए खोवे को एकत्र कर खूब मिला लीजिये अब 52 मिश्री की जमने योग्य कड़ी चाशनी बनाइये जब चाशनी पक जावे तो उसमें ओसे लगाइये। (चाशनी को कढ़ाई में से ढ़ोई में भरकर ऊपर से पुनः कढ़ाई में डालिये, इस क्रिया को हलवाइयों की परिभाषा में ओसा देना कहते हैं)। इसके बाद घृत में भुना खोवा मेवा पिठा आदि सब चाशनी डालकर मिला लीजिये, वर्ग 1 की दवा भी मिला लीजिये। वर्ग 2 में कहीं भस्में मिलाकर अन्य दवा भी मिला दीजिये। एक-एक कर चाँदी के वर्क भी मिला लीजिये। अन्त में केशर कस्तूरी केवड़े को 1 तोले दूध में घोट मिला दीजिये फिर एक परात में घी चुपड़कर कतरी जमा दीजिए कुछ ठण्डा होने पर सोने के वर्क लगा दीजिये जमने तथा ठण्डा होने पर 2।। तोले की कतरी काट लीजिये, बस पाक तैयार है। मात्रा 2।। तोले प्रातः सायं गो-दूध के साथ।

विशेष- जिनको अच्छी भस्में न मिल सकें या न डालना चाहें तो वह न डाले, कस्तूरी तथा सोने के वर्क न डालें बिना इनके ही बनावें।


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