सिद्धि तुम्हारी जेब में है।

January 1945

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(डॉक्टर दुर्गाशंकर जी नागर सम्पादक- ‘कल्पवृक्ष’)

प्रत्येक मनुष्य यह जानता है कि इस जगत में बिना हाथ हिलाये कुछ नहीं होता। एक तिनके के भी दो टुकड़े नहीं हो सकते। बहुत कम लोग ऐसे मिलेंगे जो स्वयं विचार करना जानते हों। वे दूसरों के विचारों के दास हैं। हमेशा दूसरों की सम्मति पर ही वे अपना जीवन व्यवहार चलाते हैं। उनको अपने ऊपर विश्वास नहीं। ऐसे लोग दुःख और विपत्ति के समय दूसरों की सहानुभूति, दया और करुणा की मार्ग प्रतीक्षा करते हैं। वे अपनी बुद्धि को और अपनी निजता को खो बैठे हैं। इस प्रकार के मनुष्य हमेशा अपने विचारों को बदलते रहते हैं और दुर्भाग्य का रोना रोते रहते हैं।

ऐसे मनुष्य सदा अपने भाग्य को दोष देते रहते हैं। उनके जीवन का उद्देश्य कभी पूरा नहीं हो सकता। जो दूसरों के सहारे पर निर्भर रहते हैं वे किसी बात का निश्चय नहीं कर सकते और कठिनता से किसी बात पर स्थिर रहते हैं, क्योंकि हमेशा दूसरों के विचारों के अनुसार ही कार्य करते हैं।

जब तक मनुष्य अपना स्वामी आप नहीं हो जाता तब तक उसके जीवन का संपूर्ण विकास नहीं हो सकता।

जीवन में उन्नति करने के लिए सबसे पहले इस बात को समझने की आवश्यकता है कि जीवन संग्राम में जो रुकावटें आती हैं उनको दूर हटा दें। संसार में ऐसे मनुष्यों की कमी नहीं जो दूसरों के विचारों के अनुसार काम करते हैं, जो दूसरों की आज्ञा का पालन करते हैं। इस प्रकार दूसरों का अनुकरण करने से मनुष्य अपनी मौलिकता से हाथ धो बैठते हैं। मनुष्य की उन्नति अपनी शक्तियों के विकास से होती है, न कि अंधानुकरण से।

स्वयं विचार करने से ही मनुष्य में नए-नए विचार पैदा होते हैं और उसकी मानसिक शक्तियों का विकास भी होता है। ऐसे मनुष्य के द्वारा ही समाज का कल्याण हो सकता है।

तुम अपने भावी के सृष्टा हो। तुम अपने जीवन को उन्नत और पूर्ण बना सकते हो। दूसरे किसी की सत्ता तुम पर चल नहीं सकती। ब्रह्माण्ड में कोई ऐसी शक्ति नहीं जो तुम पर अधिकार कर सके।

तुम्हारे भीतर ऐसी महान शक्ति छिपी हुई है कि इसका ज्ञान होने पर तुम दूसरों के आश्रित नहीं रह सकते। तुमको यह प्रतीत हो जाना चाहिए कि भाग्य तुम्हारे आधीन है और पुरुषार्थ से तुम अपने जीवन को श्रेष्ठतम बना सकते हो।

इस निश्चय को अधिक-अधिक पुष्ट करो और फिर इस निश्चय के अनुसार अपने जीवन को उच्च बनाने के लिए जीवन-संग्राम में कूद पड़ो। अपने जीवन रथ की बागडोर अपने हाथ में लेकर श्रद्धा से उत्साह से अपने उच्च उद्देश्य को लक्ष्य में रख कर अपने रथ को आगे बढ़ाते चलो और तुम अपनी परिस्थितियों पर अधिकार कर सकोगे।


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