(श्री महेश वर्मा, हर्बर्ट, कोटा)
अनेक साधक सिद्धि जैसे गुरुतर कार्य के साधारण जान साधन-पथ पर अग्रसर होते हैं, किन्तु शिथिलता और चंचलता के कारण मनःशक्ति का पूर्ण विकास नहीं कर पाते। अनेक मुमुक्ष आरोग्य-रहित शरीर तथा अशुद्ध एवं अस्थिर मन से ही आध्यात्मिक साधनों के अनुष्ठान में प्रवृत्त होते हैं, परन्तु सफलता उन्हें भी प्राप्त नहीं होती। आध्यात्म विद्या का यह एक अनुभूत तत्व है कि इच्छित वस्तु या इष्ट परिस्थिति प्राप्त करने के लिए मानसिक चित्र कल्पना के समान अमोघ एवं सरल अन्य साधन नहीं है। किसी विशिष्ट दिशा में उन्मुख होने के निमित्त उसके साधन निर्दोष होने की अत्यंत आवश्यकता रहती है। बिना दृढ़ता के आत्मा अनन्त शक्तिमान होने पर भी अपनी कुछ भी शक्ति प्रकट नहीं कर सकता।
सिद्धि के हेतु सदा सर्वदा अपनी इच्छित वस्तु का गहन चिन्तन कीजिए क्योंकि जिस प्रकार बीज में सम्पूर्ण वृक्ष सूक्ष्म रूप से रहता है, वैसे ही अन्तर जगत में यह सम्पूर्ण स्थूल जगत सूक्ष्म बीज रूप से रहा हुआ है और जब अन्तर जगत में उपस्थित किसी वस्तु के सूक्ष्म रूप संस्कारों का दृढ़ भावना से पोषण किया जाता है तब वह वस्तु बाह्य जगत में स्थूल रूप धारण किये बिना कभी नहीं रह सकती- यह आध्यात्म शास्त्र का अबाधित सिद्धाँत है।