विजयी ही पूजे जाते हैं।

January 1945

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(विद्या भूषण पं. मोहन शर्मा विशारद पू. सम्पादक मोहिनी)

सिद्ध पुरुष का- सफलता प्राप्त मनुष्य का जीवन आदर्श जीवन माना जाता है। जो असफल हुआ, अपने निर्दिष्ट स्थान तक न पहुँच सका उसे उपहास और पश्चाताप का भागी बनना पड़ता है। इस दुनिया में उसी की वन्दना होती है, जिसने सफलता प्राप्त की है। लोग उसकी प्रशंसा करते-करते नहीं थकते। कारण यह है कि जिसने स्वयं सफलता प्राप्त की है लोग उसी से ऐसी आशा करते हैं कि यह हमें भी सफलता के मार्ग पर अग्रसर कर सकेगा। जो स्वयं परास्त हुआ है, हार गया है, असफल रहा है उसके निकट संपर्क में आते हुए लोग डरते हैं, वे सोचते हैं कि कहीं ऐसा न हो कि इस व्यक्ति के संसर्ग के कारण हमें भी असफलता, पराजय प्राप्त हो।

संसार में जितने भी महापुरुष और प्रसिद्ध व्यक्ति हुए हैं, उनके जीवन पर जरा गहरी दृष्टि डालिये। आप देखेंगे कि उनकी सफलताएं ही उन्हें इतना ऊँचा उठाने में, प्रख्यात बनाने में प्रधान रूप से सहायक हुई। एक छोटे से काम में छोटी सी सफलता प्राप्त कर लेने पर भी आदमी का हौसला बढ़ता है, उसकी हिम्मत चौगुनी हो जाती है। लोगों का ध्यान उस सफलता की ओर खिंचता है, वे उसके प्रशंसक सहायक और मित्र बन जाते हैं। विजयी मनुष्य को दूसरों का अयाचित और आशातीत सहयोग मिलता है, फलस्वरूप वह द्रुतगति से सफलता के पथ पर बढ़ता जाता है। मोर्चे पर मोर्चा फतह करता जाता है और अन्त में महापुरुष मनुष्य कहलाता है। इसके विपरीत पराजित, असफल मनुष्य के मित्र भी साथ छोड़ जाते हैं, हौसला परस्त हो जाने के कारण हाथ पैर फूल जाते हैं और क्रमशः अवनति की ओर बढ़ता हुआ अन्त में वह अंधकार के गर्त में गिर पड़ता है।


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