एक ऊंट बड़ा आलसी था। चरने के लिए जंगलों में जाना और परिश्रम करना उसे बहुत बुरा लगता था। उसकी इच्छा थी कि कोई ऐसी तरकीब निकले कि घर बैठे ही मनचाहा भोजन मिल जाया करे।
एक दिन उधर में महादेव पार्वती जा रहे थे। ऊंट ने उन्हें देखा और अपनी इच्छा पूर्ति का अच्छा अवसर देख कर उनके सामने गर्दन झुका कर जा खड़ा हुआ।
इस प्रकार रास्ता खड़े ऊंट को देखकर महादेव जी ने उससे पूछा- कहो भाई क्या बात है? ऊंट बोला- हे त्रिभुवन के स्वामी! आप अनाथ के नाथ हैं, दिनों का दुख हरने वाले हैं, भक्तों की इच्छा पूरी करने वाले हैं सो हे औघड़ दानी! मेरी भी इच्छा पूरी कीजिए।
शंकर जी ने कहा- जल्दी कहो, क्या चाहते हो?
ऊँट बोला- भगवन्! यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो ऐसा वरदान दीजिए कि मेरी गर्दन एक योजन लम्बी हो, जिससे मैं एक ही स्थान पर बैठा-बैठा दूर-दूर तक के वृक्षों को चर लिया करूं, इधर-उधर भागने का कष्ट न उठाना पड़े।
महादेव जी ऊँट पर बहुत झल्लाये- उन्होंने कहा-दुष्ट! आलस्य का पोषण करने वाला वरदान माँगता है यह तो तेरे नाश का कारण बन जायेगा। उचित परिश्रम करके कमाई हुई वस्तुएं ही सुखदायक होती है। शिवजी ने बहुत देर समझाया कि ऐसी चीज नहीं माँगनी चाहिए। जिससे अपनी श्रम शक्ति कुँठित होती हो। परन्तु ऊंट की समझ में एक न आई। वह उसी प्रकार गर्दन झुकाये, नेत्र मूंदे, दाँत निकाले, एक पाँव से महादेव जी के सामने खड़ा रहा। ऊंट की यह दशा देखकर पार्वती जी को बड़ी दया आई, उन्होंने अपने पति देवता से कहा- भगवन् आपकी क्या हानि है। हजारों प्राणियों को आप नित्य ही वरदान देते हैं, एक इसे भी दे दीजिए। आपका क्या बिगड़ जायेगा?
झमेला अधिक बढ़ते देखकर महादेव जी ने ‘तथास्तु’ कह दिया और आगे चल दिये, ऊँट की छोटी सी गरदन एक योजन लम्बी हो गई।
अब तो चैन की कटने लगी। ऊँट महाशय अपने चबूतरे पर बैठे रहते। जहाँ कहीं हरी-भरी कोमल सुस्वादिष्ट पत्तियाँ दिखाई पड़ती, वहीं गरदन लम्बी कर देते। एक योजन लम्बाई चौड़ाई में से बीन-बीन कर उत्तमोत्तम चारा वे खाने लगे। प्रसन्नता के मारे वे फूल कर कुप्पा हो रहे थे।
समय जाते देर नहीं लगती। दिन पर दिन बीतने लगे। मौसम बदला, वर्षा आई। पानी बरसने लगा और बिजली चमकने लगी। ऐसे समय में एक योजन लम्बी गरदन को वर्षा में पड़ी रहने देना बड़ा कष्ट कर मालूम होने लगा। ऊँट ने एक लम्बी गुफा में ज्यों-त्यों करके उसे घुसेड़ा और एक संतोष की ठंडी साँस ली।
कुछ ही घड़ियाँ व्यतीत हुई थीं कि भीगता भागता एक शृंगाल भी उसी गुफा में आ घुसा, वर्षा में भीगता हुआ वह भी भूखा प्यासा आया था। माँस का इतना बड़ा लट्ठा अरक्षित पड़ा देखकर उसे बहुत प्रसन्नता हुई। शृंगाल महोदय निर्भयतापूर्वक उसे खाने लगे।
ऊँट के लिए यह सरल न था कि इतनी लम्बी गर्दन को गुफा में से जल्दी से वापिस निकाल लेता। जब तक उसने निकालने की कोशिश की तब तक सियार ने उस पतली गर्दन को फाड़ डाला और काट कर दो टुकड़े कर दिये। ऊँट मर गया। सियार को अनायास बहुत दिनों का भोजन मिल गया।
आलसी और अकर्मण्य पुरुष बिना परिश्रम किए बड़ी संपदाएं चाहते हैं, यदि किसी प्रकार वे उन्हें मिल भी जायं तो अन्त में दुःखदायक ही होती हैं।