युवा क्रांति पथ

सोच में आ रहा आध्यात्मिक परिवर्तन

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युवा प्रतिभाएँ स्वार्थी न बनें। वे यह सोचें कि धन के अलावा जीवन में और भी कुछ है। पारिवारिक सौहार्द्र एवं संस्कार, राष्ट्रीय- सामाजिक सरोकार, स्वयं की आंतरिक- आध्यात्मिक संतुष्टि- यह भी जिन्दगी की अहम बातें हैं। धन कुछ है, बहुत कुछ है, पर इसे सब कुछ नहीं समझा जाना चाहिए। देखा यह जाता है कि आज के दौर में युवा प्रतिभाएँ धन के पीछे तेजी से भाग रही हैं, फिर भले ही इसके लिए उन्हें स्वास्थ्य एवं मानसिक सुकून से क्यों न वंचित रहना पड़े। विश्लेषकों का मानना है कि आज प्रतिभाशाली युवा अपने लिए सूचना प्रौद्योगिकी एवं प्रबन्धन का क्षेत्र चुनते हैं। मेडिकल एवं इंजीनियरिंग अब उनके लिए दुय्यमदर्जे की बातें हैं। प्रशासनिक सेवाओं में जाने के लिए उनका जज्बा घटा है। बदलाव तो यहाँ तक आया है कि जो प्रशासनिक सेवाओं के लिए चयनित हो भी जाते हैं, वे भी कुछ सालों बाद किसी बहुराष्ट्रीय कम्पनी में नौकरी करना ज्यादा पसन्द करते हैं। सेना की नौकरियाँ भी उनके लिए अनाकर्षक हो रही हैं।

‘नौकरी वहीं जहाँ धन हो फिर यह देश में मिले या विदेश में।’ ज्यादातर युवा इसी सूत्र में अपने जीवन को गूँथे हुए हैं। अधिक धन से अधिकतम धन की प्राप्ति उनकी जिन्दगी का मकसद बना हुआ है। इसके लिए वे कुछ भी करने के लिए उतारू हैं। कुछ दशक पहले धन की ख्वाहिश में ज्यादातर प्रतिभाएँ विदेशों में पलायन कर जाती थीं। अमेरिका उनके लिए स्वर्गलोक था। उन दिनों प्रत्येक युवा का सपना होता था कि जिस किसी तरह से अमेरिका का ग्रीन कार्ड हासिल करें और हरे रंग वाले डालरों की रिमझिम बरसात में नहाएँ। पर इधर के सालों में युवा प्रतिभाओं के मन में अमेरिका की आभा कम हुई है। जार्ज टाउन यूनीवर्सिटी के प्रोफेसर डी.सी. स्टेनली की रिपोर्ट के मुताबिक स्थिति पहले से उलट हो रही है। अब अमेरिकन वी- स्कूल विद्यार्थियों द्वारा गुड़गाँव एवं बेंगलोर पसन्द किये जा रहे हैं। आज उनकी नजर में भारत का अर्थ है विश्व की सर्वश्रेष्ठ सॉफ्टवेयर सर्विस और इस ओर युवाओं का रुझान बढ़ा है।

युवाओं का प्रतिभा पलायन आज उतनी गम्भीर समस्या नहीं रही। युवा विद्यार्थियों द्वारा अब अध्ययन के लिए लन्दन, शिकागो या फिर वाशिंगटन के सपने नहीं देखे जाते हैं। हालाँकि विदेशी विश्वविद्यालय भारतीय युवा विद्यार्थियों को लुभाने के लिए कई हथकण्डे अपना रहे हैं। इसमें अमेरिका के अलावा आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड, जर्मनी, कनाडा एवं आयरलैण्ड शामिल हैं।

यहाँ तक कि गैर अंग्रेजी भाषी देश भी जो अंग्रेजी में कोर्स चलाते हैं, वे भी भारतीय छात्रों को लुभाने की कोशिश में हैं। स्विजरलैंड के शीर्ष मैनेजमेण्ट स्कूल, फ्रांस, हालैण्ड और जापान के शीर्ष व्यवसाय स्कूल, चीन, रूस एवं पूर्वी यूरोप के मेडिकल कॉलेज इनमें शुमार हैं। इण्डोहॉरिजन एजुकेशन सर्विस के कुलदीप सिंह गुजराल के अनुसार स्वीडन, कोरिया, साइप्रस, दक्षिण अफ्रीका और मलेशिया जैसे देश भी इस दौड़ में शामिल हो गये हैं। ये विश्वविद्यालय क्षेत्रीय छात्रों की तुलना में विदेशी छात्रों से - गुना ज्यादा फीस लेते हैं। अतः उनके लिए यह बड़ा ही लाभप्रद व्यवसाय है। प्रतिभा पलायन अब उतनी बड़ी समस्या न हो तो भी युवा प्रतिभाओं में राष्ट्रीय व सामाजिक सरोकार की कमी से तो देश जूझ ही रहा है। युवाओं के अनुसार इस उत्साह की कमी का कारण सरकारी नीतियाँ और राजनीतिक दल हैं, जो जाति- पाँति की विभाजनकारी रेखाएँ खींचकर देश और समाज को बाँटने का काम कर रहे हैं, परन्तु युवाओं को यह भी सोचना होगा कि आने- जाने वाली सरकारें या फिर अपनी ही टूटन से परेशान राजनैतिक दल इस देश और धरती का पर्याय नहीं हैं। भारत माता हम सबकी माँ है। उस पर किसी राजनैतिक दल विशेष का एकाधिकार नहीं है। राष्ट्रीय गौरव की रक्षा के लिए, सामाजिक समरसता के लिए युवा प्रतिभाओं को ही आगे आना है।

इसके लिए उन्हें यह सोचना होगा कि धन कमाने के अलावा भी जिन्दगी के कुछ मकसद हैं। इसके लिए उन्हें स्वार्थ की संकीर्ण सीमाएँ तोड़नी होंगी। हालाँकि देश के कुछ युवा ऐसा कर भी रहे हैं। उन्हें अपनी प्रतिभा के राष्ट्रीय सम्पत्ति होने का अहसास हो रहा है। यह सुखद परिवर्तन २००६ ई. की बात है। इस पलटती बाजी का आलम यह है कि देश के शीर्ष मैनेजमेण्ट स्कूल इण्डियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेण्ट अहमदाबाद के छात्रों द्वारा विदेश के बेहतरीन ऑफर ठुकराये जाने के मामले इस वर्ष बढ़कर १८ तक पहुँच गये। छः छात्रों ने तो इस प्रक्रिया में ही भाग नहीं लिया, क्योंकि उनकी नजर में धन कमाना ही सब कुछ नहीं है, बल्कि देश व समाज की सेवा भी एक मकसद है। बरसों तक पास होने वाले छात्रों को विदेश की दौड़ लगाते देखने वाले नेशनल स्कूल ऑफ डिजाइन (एन.एस.आई.डी.) से निकले डिजाइनर्स भी अब भारतीय कम्पनियों में काम तलाश रहे हैं। डेवलपमेण्ट सेक्टर में भी ऐसा ही माहौल देखने को मिल रहा है।

प्रभजीत सिंह, निखिल वासवानी, विनीत लाड़िया और श्रद्धा वैद्य जैसे विदेशी ऑफर ठुकराने वाले छात्रों को यकीन है कि भारत की ताजा तरक्की किसी बुलबुले की तरह अस्थायी नहीं है। इन युवा प्रतिभाओं की यही धारणा है कि भारत तरक्की की इस लम्बी दौड़ में अमेरिका और यूरोप तक को परेशानी में डाल देगा। हो सकता है कि इस वक्त हमें विदेश में बेहतर पैकेज मिले, लेकिन दो वर्ष के भीतर आप पूरी दुनिया को बेहतर रोजगार की तलाश में भारत की ओर कूच करते देखेंगे।

देश के प्रति जज्बा रखने वाली इन युवा प्रतिभाओं का अपने पर विश्वास ही कहा जायेगा कि इन्होंने यहाँ मिल रहे वेतन के पाँच गुना वेतन के विदेशी ऑफर को ठुकरा दिया है। ऐसा लगता है कि ‘मा गृधः कस्यस्विद् धनम्’ की ईशावास्य श्रुति वाली अपनी भारतीय संस्कृति को इन्होंने समझ लिया है। उनकी इस बदली सोच से उनके विदेशी रोजगारदाताओं को करारा झटका लगा है। इनमें डॉश्च बैंक, गोल्डमैन लेहमैन ब्रदर्स, मेरिल ङ्क्षलच, मोगी स्टेनले जैसे विश्व के बड़े माने- जाने वाले व्यावसायिक प्रतिष्ठान हैं। इसमें जो देश की अन्य युवा प्रतिभाओं को सीख देने वाली चौंकाऊ बात है; वह यह है कि इनके विदेश जाने में इनकी देशभक्ति की भावना भी रोड़ा बन रही है। यह युवा पीढ़ी देश के प्रति अपने कर्त्तव्य को समझ रही है। उन्हें न केवल इस बात का अहसास है कि वे यहाँ तरक्की कर सकते हैं, बल्कि उनमें यह सोच भी पनप रही है कि उन्होंने इस देश से लिया काफी कुछ है, अब उन्हें अपने देश की माटी का कर्ज चुकाना है।

आई.आई.एम. अहमदाबाद के २००६ बैच के दो छात्रों का कहना है कि हम जैसे पढ़े- लिखे लोग इस वक्त देश को चाहिए, क्योंकि यह तरक्की की जोरदार छलाँग लगाने जा रहा है। इन दोनों ने एक नहीं दो- दो काफी अच्छे विदेशी ऑफर ठुकराये हैं। उनका कहना है कि वे अपने देश में रहकर यहाँ की अन्य युवा प्रतिभाओं को तरक्की की जोरदार छलाँग के लिए तैयार करना चाहते हैं। एक सवाल यह भी उठ रहा है कि भारत तो कई सालों से तरक्की की राह पर है, फिर अचानक क्या हुआ। युवा प्रतिभाओं की सोच अचानक कैसे बदली? इसके उत्तर में निशीथ का कहना है कि यह युवाओं की सोच में आने वाला एक आध्यात्मिक परिवर्तन है जो कि उन्हें न केवल व्यावसायिक प्रबन्धन में कुशल बना रहा है, बल्कि जीवन के आध्यात्मिक प्रबन्धन की ओर प्रेरित कर रहा है। इस प्रेरणा से अन्य युवा प्रतिभाओं को भी प्रेरित होना चाहिए और उन्हें स्वार्थ के अँधेरों को भेदते हुए सार्थक जीवन लक्ष्य की खोज में आगे बढ़ना चाहिए।
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