देवसंस्कृति विश्वविद्यालय युवाओं को गढ़ने की कार्यशाला है। विश्वविद्यालय और इसके समकक्ष संस्थान कई हैं। इनमें से हर एक की अपनी-अपनी विशेषताएँ हैं। कई संस्थान पढ़ाई के साथ खेलकूद एवं भवन-भोजन की खासियत के लिए जाने जाते हैं। कइयों की विशेषता उच्च व्यावसायिक उपाधियों के साथ उच्च नौकरियाँ हैं। लेकिन जिन्दगी को गढ़ने, व्यक्तित्व की उलझी गुत्थियों को सुलझाने की बात कोई नहीं करता। जीवन जीने की कला, व्यवहार की कुशलता, व्यक्तित्व की अंतॢनहित शक्तियों का जागरण और उनका प्रबन्धन कोई नहीं सिखाता। यहाँ तक कि वहाँ जिन्दगी से जुड़े हुए मसलों पर चर्चा भी नहीं होती। बस केवल बुद्धि एवं स्मृति के दायरे में ही युवा चेतना कैद रहती है। विभिन्न विषयों से जुड़ी हुई बातें तो बहुत होती हैं, लेकिन उनकी खुद की जिन्दगी अनछुई-अछूत बनकर रह जाती हैं।
युवा मसलों से जुड़े हुए विशेषज्ञों ने इस बारे में कई तरह के शोध-अनुसंधान किये हैं और इन सभी ने वर्तमान शिक्षा व्यवस्था पर प्रश्न चिह्न लगाया है। इनमें कइयों का तो यह मानना है कि ज्यादातर युवा अपनी विश्वविद्यालय शिक्षा के दौरान बहकते-भटकते हैं। आखिर ऐसा क्यों है? कई शोध पत्र यह हैरत भरी जानकारी देते हैं कि उच्च व्यावसायिक संस्थानों में शिक्षा पाये हुए प्रबन्धन गुरु अपने जीवन का प्रबन्धन नहीं कर पा रहे। जिन कम्पनियों का दायित्व उन्होंने सम्हाला है, वे निरन्तर फायदे-मुनाफे की ओर बढ़ रही है। लेकिन लाखों की कमाई के बावजूद इन प्रबन्धन विशेषज्ञों का जीवन घाटे में जा रहा है। देह रोगों की चपेट में, परिवार कलह की लपेट में और बच्चे कुसंस्कारों के घेरे में। प्रबन्धन के महारथियों के निजी जीवन में प्रबन्धन का अभाव हैरानी में डालने वाला है। कमोवेश यही स्थिति तकनीकी विशेषज्ञों की निजी जिन्दगी की है। कारण साफ है कि उन्होंने अपने शिक्षा संस्थानों में विषय की समझ तो पायी है, लेकिन जिन्दगी की समझ से वंचित हैं।
युवाओं की वंचना यही है कि वे अपनी जिन्दगी से वंचित हैं। देवसंस्कृति विश्वविद्यालय ने दूसरे विश्वविद्यालयों से अलग हटकर युवाओं के सम्पूर्ण व्यक्तित्व को गढ़ने का संकल्प लिया है। यहाँ के संचालकों, विशेषज्ञों एवं आचार्यों ने ऐसी विधि-व्यवस्था बनायी है, जिसमें ऐसी शिक्षण प्रक्रिया अपनायी गयी है, जिसका ताना-बाना रोजगार के साथ युवाओं की निजी जिन्दगी और सामाजिक दायित्वों से जुड़ा हुआ है। यही वजह है कि जहाँ अन्य जगहों पर शिक्षा पाने वाले युवा केवल अपनी आर्थिक-सामाजिक उन्नति के लिए सोचते हैं, वहीं यहाँ अध्ययन करने वाले युवक-युवतियाँ जीवन के आध्यात्मिक विकास के साथ देश और समाज के लिए कुछ कर गुजरने की योजनाएँ बनाते हैं और इन योजनाओं को पूरा करने में संलग्न भी होते हैं।देवसंस्कृति विश्वविद्यालय का सारा जोर युवकों की जिन्दगी गढ़ने पर है। इसके लिए शिक्षण एवं प्रशिक्षण की जो सैद्धान्तिक एवं प्रायोगिक विधियाँ अपनायी गई हैं, वे विशेष हैं। यहाँ का प्रत्येक पाठ्यक्रम विशेष है। यहाँ की प्रत्येक संरचना के पीछे एक सुनिश्चित सोच है। जिसके तहत युवा विद्यार्थियों के अंतःकरण में कुछ नया अंकुरित करना है।
वे जो भी विषय यहाँ पढ़ते हैं, उनमें उन्हें यह अनुभूति करायी जाती है कि इसका उनकी अपनी निजी जिन्दगी और व्यापक सामाजिक जीवन में क्या महत्त्व है। यहाँ जो अध्ययन-अध्यापन की तकनीकें अपनायी गयी हैं, वे रटने की बजाय गहरी समझ को विकसित करती हैं। विद्याॢथयों की मौलिकता के विकास के लिए शोध-अनुसंधान, रचनात्मक लेखन जैसी कई प्रक्रियाएँ अध्ययन के साथ अंतरंगता से जुड़ी हुई हैं।
अपनी जिस विशेषता को लेकर यह विश्वविद्यालय दिनों-दिन विख्यात हो रहा है, वह है-यहाँ के युवा विद्याॢथयों, उनके व्यक्तित्व की आंतरिक शक्तियों का ज्ञान एवं उनका उपयोग करने की व्यावहारिक व प्रायोगिक प्रक्रिया। अभी पिछले दिनों यहाँ बड़े व्यावसायिक संस्थान के प्रोफेसर अपने युवा विद्याॢथयों के साथ आये हुए थे। साँझ का समय था। यहाँ के विद्यार्थी भोजन के लिए मेस में जा रहे थे। भोजन करके थोड़ी देर टहलने के बाद यहाँ के छात्र-छात्राएँ अचानक एक बड़े हाल में जाने लगे। उन्होंने जिज्ञासा वश पूछा-क्या यहाँ रात्रिकालीन कक्षाएँ भी लगती हैं? उन्हें उत्तर देने वाले छात्र ने कहा-नहीं कक्षाएँ तो हमारी दिन में ही चलती हैं। यह तो हमारी ध्यान की कक्षा है। जवाब सुनकर वे थोड़ा हैरान हुए। विश्वविद्यालय में ध्यान की कक्षा उन्होंने फिर जानना चाहा-क्या कोई बाहर से महात्मा आये हुए हैं? इस प्रश्न के जवाब ने उन्हें फिर हैरानी में डाला, क्योंकि उन्हें छात्र ने बताया कि हमारे चांसलर सर सप्ताह में दो दिन ध्यान और गीता की कक्षा लेते हैं।
अच्छा यहाँ चांसलर भी कक्षा लेते हैं। ध्यान भी कराते हैं और गीता भी पढ़ाते हैं। कुछ देर तो खड़े रहे, फिर मन ही मन कुछ सोचते हुए ध्यान की कक्षा में चले गये। उनके साथ उनके विद्यार्थी भी कक्षा में पहुँचे। लगभग डेढ़ घण्टे बाद जब वह बाहर निकले, तो बहुत भावमग्न थे। काफी देर तक यहाँ महाकाल के मंदिर के पास बैठे रहे, फिर उठकर टहलने लगे। टहलते-टहलते उन्होंने अपने विद्याॢथयों से कहा कि मैंने काफी जगह पढ़ा था कि भारत का भविष्य उज्ज्वल होगा, परन्तु कैसे होगा? यह किसी ने नहीं लिखा। यहाँ आकर मुझे पता चला कि भारत का भविष्य किस तरह उज्ज्वल होगा। यहाँ युवाओं को संस्कार दिये जा रहे हैं। उन्हें देशप्रेम और समाज की बातें सिखायी जा रही हैं और सबसे बढ़कर यहाँ वे अपने व्यक्तित्व को गहराई से समझ रहे हैं। ध्यान के माध्यम से स्वयं की आंतरिक आध्यात्मिक ऊर्जा जगा रहे हैं।
इन प्रोफेसर ने अपने विद्यार्थियों से कहा कि मैंने कुछ ही दिन पहले राष्ट्रपति ए.पी.जे. कलाम की जीवन कथा ‘Wings of Fire’ पढ़ी है। इसमें मैंने एक जगह पढ़ा कि स्वामी शिवानन्द ने उनसे कहा- ‘इच्छा जो तुम्हारे हृदय और अंतरात्मा में उत्पन्न होती है, जो शुद्ध मन से की गयी हो, एक विस्मित कर देने वाली विद्युत् चुम्बकीय ऊर्जा लिए होती है। यह ऊर्जा हर रात को जब मस्तिष्क सुषुप्त अवस्था में होता है, आकाश में चली जाती है। हर सुबह यह ऊर्जा ब्रह्माण्डीय चेतना लिए वापस शरीर में प्रवेश करती है। जिसकी परिकल्पना की गई है, वह निश्चित रूप से प्रकट होता नजर आयेगा। नौजवान, तुम इस तथ्य पर ठीक उसी तरह अनन्त काल तक भरोसा कर सकते हो, जैसे तुम सूर्योदय के अकाट्य सत्य पर भरोसा करते हो।’ ‘Wings of Fire ’ के इस अंश का उल्लेख करते हुए उनने कहा-जिस विश्वविद्यालय के विद्यार्थी साँझ को ध्यान करके मन को निर्मल बनाते हों, जिन्हें उच्च कल्पनाएँ करना, श्रेष्ठ विचारों में निमग्न होना सिखाया जाता हो, भला उनके जीवन की उत्कृष्टता को कौन बाधित करेगा।
ये प्रोफेसर महोदय तो अपने सुखद अनुभव के साथ वापस लौट गये, लेकिन वापस लौटते हुए वह यह कहते गये-काश! यहाँ की शिक्षण प्रणाली को सम्पूर्ण देश अपना सकता। युवाओं की इतनी गहरी रुचि, इतनी सम्पूर्ण संवेदना अन्य कहीं देखने को नहीं मिलती। यह विश्वविद्यालय यदि अपनी इसी राह पर चलता रहा, तो एक दिन यहाँ से शिक्षित-प्रशिक्षित युवा देश में सम्पूर्ण क्रान्ति लाने में समर्थ होंगे।