युवा विद्यार्थी एवं आचार्य, कर्म और ङ्क्षचतन की तरह एक-दूसरे से जुड़े हैं। कर्म का अच्छा-बुरा होना चिंतन के स्वरूप पर निर्भर है। चिंतन में पवित्रता हो तो कर्म में स्वयं ही प्रखरता आ जाती है। इसे यूँ भी कहा जा सकता है कि यदि युवा विद्यार्थी प्रज्वलित अग्नि है तो आचार्य उसे दिशा देने वाली हवा। हवा का बहाव जिधर हो अग्नि की ऊर्जा उधर ही मुड़ जाती है। आज यदि युवा विद्यार्थी में कहीं खोट दिखती है तो इसका एक कारण यह भी है कि आचार्य के दायित्व निर्वहन में कहीं कोई कमी आयी है। इसका एक पहलू यह भी है कि युवा विद्यार्थी आज आचार्य की गरिमा को स्वीकारने के लिए तैयार नहीं है। स्थिति को सँवारने के लिए परिवर्तन दोनों में ही वाँछित है। ये जितनी जल्दी हो, उतना ही राष्ट्र के लिए शुभ है।
राष्ट्र में युवाशक्ति का स्वॢणम काल जब भी आया है, उसे लाने में आचार्यों की मुख्य भूमिका रही है। इसी तरह युवा विद्यार्थियों ने अपने आचार्य की गरिमा को जब भी सम्मानित किया है, उन्हें विशेष अनुदान मिले हैं। विपुल साहित्य के रचनाकार, भारतीय विद्या भवन के संस्थापक, राष्ट्रसेवी राजनेता कन्हैयालाल माणिक लाल मुंशी जीवन के अंत तक अपने विद्यार्थी जीवन की स्मृतियों को सँजो कर रखे रहे। वह बार-बार इस सत्य का उल्लेख करना नहीं भूलते थे कि उनके युवा जीवन को सँवारने में उनके आचार्यों की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। जिस आचार्य का आचार्यत्व उन्हें पुलकित, गदगद, संवेदित व स्फुरित करता था, वे थे श्री अरविन्द।
श्री अरविन्द महाराजा गायकवाड़ के कॉलेज में प्रोफेसर थे, उस समय के. एम. मुंशी उनके विद्यार्थी थे। के. एम. मुंशी लिखते हैं-श्री अरविन्द की जीवनशैली, उनका सहज तपस्वी-विरागी भाव, उनकी अगाध समुद्र के समान विद्वत्ता और सबसे बढ़कर उनका राष्ट्रप्रेम हम सब विद्याॢथयों को प्रेरित और उद्वेलित करता था। हम सभी विद्यार्थी तृषित चातकों की तरह उनके वचनों की स्वाति-वर्षा का इंतजार करते थे। वे जो भी कहते, हम सभी उसे श्रद्धा से शिरोधार्य करते थे। हम सब इंतजार करते थे कि वे हमसे कुछ कहें, हमें कोई आदेश दें। उनके सान्निध्य में हम सभी का विद्यार्थी जीवन धन्य हो रहा था। उन परम वीतराग महायोगी के चरणों में बैठना हममें से हर एक के लिए ऐसा अनुभव था, जिसे हम कभी भूल नहीं सकते।
श्री अरविन्द की प्रेरणा से के.एम. मुंशी राष्ट्रीय स्वाधीनता के लिए सक्रिय हुए। बाद में देश स्वतंत्र हो जाने के बाद वे पं. जवाहर लाल नेहरू के मंत्रिमंडल में खाद्यमंत्री हुए। स्वाधीनता के बाद उनकी सबसे बड़ी साध थी-अपने आचार्य के एक बार पुनः दर्शन की। श्री अरविन्द उन दिनों पाण्डिचेरी में एकान्तवास कर रहे थे। उनका प्रायः किसी से मिलना नहीं होता था; लेकिन के.एम. मुंशी के आगमन की सूचना उन्हें दी गयी। वे भारत सरकार के विशेष प्रतिनिधि होकर गये थे। कहने वाले ने उन्हें यही सूचना दी कि भारत गणराज्य के खाद्यमंत्री और भारत सरकार के विशेष प्रतिनिधि आपसे मिलना चाहते हैं। श्री अरविन्द ने सपाट ढंग से मिलने से इंकार कर दिया। इस इंकार पर के.एम. मुंशी अतिदुखी हुए। उन्होंने सूचना देने वाले से पूछा-किस रूप में मेरे आने की खबर उन्हें दी गयी। जब उन्हें पता चला, तो उन्होंने कहा-एक बार फिर से अरविन्द सर से कहो कि उनके बड़ौदा कॉलेज का एक स्टूडेण्ट उनसे मिलने आया है।
अपने विद्यार्थियों के लिए करुणा एवं प्रेरणा से ओतप्रोत मेरे अरविन्द सर कभी भी इतने कठोर नहीं हो सकते। मुझे विश्वास है कि वे मुझसे अवश्य मिलेंगे। के.एम. मुंशी का विश्वास सही साबित हुआ। श्री अरविन्द ने उन्हें बुला लिया और उनसे राष्ट्रीय कल्याण की कई योजनाओं पर चर्चा की।युवा विद्यार्थियों को प्रेरणा देने वाले आचार्य के रूप में परमहंस श्री रामकृष्ण देव के शिष्य महेन्द्रनाथ का नाम स्मरणीय है। महेन्द्रनाथ गुप्त शिक्षक होने के कारण श्री रामकृष्ण के भक्तों में मास्टर महाशय के नाम से विख्यात थे। आज भी उन्हें इसी रूप में याद किया जाता है। इन मास्टर महाशय के विद्यालय में उस समय ऐसे कई युवा विद्यार्थी पढ़ते थे, जो बाद में श्री रामकृष्ण परमहंस के संन्यासी शिष्य बने। श्री रामकृष्ण मठ मिशन के प्रथम अध्यक्ष स्वामी ब्रह्मानन्द भी इन्हीं में से एक थे। मास्टर महाशय अपने विद्यार्थियों की प्रतिभा सँवारने के अतिरिक्त उनके आध्यात्मिक विकास का भरपूर ध्यान रखते थे। इसी के चलते वे स्वयं इन युवाओं को श्री रामकृष्ण से मिलाते रहते थे। मास्टर महाशय का कहना था कि अच्छे शिक्षक को अपने विद्यार्थी के समग्र विकास का ध्यान रखना चाहिए। युवा विद्याॢथयों के जीवन को सँवारने के लिए प्रसिद्ध रसायनशास्त्री प्रो. प्रफुल्ल चन्द्र राय का नाम भी उल्लेखनीय है। पी.सी. राय के नाम से सुपरिचित प्रो. राय अपने विद्यार्थियों को रसायन शास्त्र पढ़ाने के साथ देशभक्ति का पाठ भी पढ़ाते थे।
पूरे दिन रसायन विज्ञान की कक्षा एवं प्रयोगशाला में काम करने के बाद शाम के समय प्रो. राय अपने युवा विद्यार्थियों के साथ खादी की धकेल गाड़ी और राष्ट्रभक्ति की पुस्तकें लेकर निकल जाते थे। तिरंगा झण्डा थामे, राष्ट्रभक्ति के गीत गाते खादी बेचते हुए इन महान आचार्य एवं उनके युवा शिष्यों को देखकर लोग अचरज करते थे। वे सोच ही नहीं पाते थे कि ये दो सौ से अधिक रासायनिक यौगिकों का आविष्कार करने वाले बंगाल केमिकल एवं फार्मास्युटिकल के संस्थापक, विश्वप्रसिद्ध रसायनशास्त्री और उनके रसायन वैज्ञानिकों की टीम है। प्रो. राय का अपने विद्यार्थियों से बेहद अनुराग था। युवा विद्यार्थी भी उन्हें अपने जीवन का सर्वोच्च आदर्श मानते थे।
युवा विद्यार्थियों को गढ़ने-तराशने के लिए प्रो. रामचन्द्र दत्तात्रेय रानाडे ने भी जीवट भरी भूमिका निभाई। प्रो. रानाडे की गिनती दर्शनशास्त्र एवं अध्यात्म की विरल प्रतिभा के रूप में की जाती है। रहस्यवादी दर्शन के वे प्रणेता माने-जाते हैं। प्रो. रानाडे ने अपने विद्याॢथयों में दार्शनिक-आध्यात्मिक प्रतिभा के साथ राष्ट्रभक्ति के बीज भी बोये। उनके विद्यार्थी इनकी गरिमापूर्ण उपस्थिति से कृतार्थ अनुभव करते थे। इनके अनेक विद्यार्थियों ने राष्ट्रीय स्वाधीनता में अग्रणी भूमिका निभाई। कइयों ने भारतीय ज्ञान को विश्व पटल पर प्रतिष्ठित करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
अपने विद्यार्थियों में अपनी प्रतिभा एवं कौशल को न्यौछावर करने वाले आज भी कहीं-कहीं अपनी चमक बनाये हुए हैं। कर्नाटक के छोटे से गाँव में शिक्षण करने वाले बी. राजमणि युवाओं को निखारने के लिए दिन-रात एक किये रहते हैं। कॉलेज में अध्यापन के अलावा वे अपने विद्यार्थियों को लोकसेवा के लिए भी प्रेरित करते हैं। अध्यापन के बाद बचे हुए समय में ये विद्यार्थियों के साथ मिलकर पर्यावरण संरक्षण, प्रौढ़शिक्षा, बाल शिक्षा, कुरीति उन्मूलन, ग्रामोत्थान जैसे कई मुद्दों पर कार्य करते हैं। प्रौढ़ शिक्षक एवं युवा विद्याॢथयों के दल को वृक्षारोपण करते, गरीब बच्चों को शिक्षा देते और ऐसे ही अनेक लोकोपयोगी काम करते हुए देखकर वहाँ के स्थानीय निवासी कहते हैं कि लगता है कि कि अब भी धरती पर सतयुग है। युवा विद्यार्थी भी अपने राजमणि सर की हर बात मानते हैं।
इस परम्परा एवं प्रक्रिया के कई अभिनव प्रयोग देवसंस्कृति विश्वविद्यालय में भी हो रहे हैं। यहाँ भी युवा विद्यार्थी एवं आचार्य के समन्वय की शक्ति क्रियाशील हो रही है। यहाँ के युवा विद्यार्थी एवं आचार्यों ने अध्ययन एवं जीवन दोनों को ही सँवारने का संकल्प किया है। इनका कहना है कि अध्ययन के बिना यदि जीवन सूना है तो जीवन का तिरस्कार करने पर अध्ययन अर्थहीन हो जाता है। युवा विद्यार्थी एवं आचार्य इन दोनों को साथ-साथ सँवारें तो युवा चेतना में कई चमत्कार सम्भव हैं। वे जीवन के हर क्षेत्र में फिर भले ही यह व्यवसाय ही क्यों न हो युवा प्रतिभा को प्रतिष्ठित कर सकते हैं।