युवाओं को राष्ट्रीय कर्त्तव्य निभाने के लिए आगे आना चाहिए। युवा शौर्य एवं तेज ही राष्ट्र की एकता, अखण्डता व सुरक्षा का आधार है। इसके लिए केवल वे ही युवा जिम्मेदार नहीं, जो राष्ट्रीय सेवाओं में कार्यरत हैं, बल्कि वे भी हैं जो देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग कामों में संलग्न हैं। जो जहाँ है वहीं उसकी अपनी विशेष भूमिका है। अपने काम को ईमानदारी से करते हुए वह जन सेवा, राष्ट्रीय सौहार्द्र, भ्रष्टाचार से संघर्ष जैसे कितने ही महत्त्वपूर्ण काम कर सकता है। प्राकृतिक आपदाओं व राष्ट्रीय विपत्ति में जाँबाज सैनिक की भूमिका निभा सकता है। सैनिक केवल उतने ही नहीं हैं, जिन्होंने वर्दी पहन रखी है। वे भी सैनिक हैं जो राष्ट्रीय कर्त्तव्य निभाने के लिए प्राण-पण से संघर्ष कर रहे हैं।
आज का जग-जाहिर सच है कि स्वार्थ और सत्ता के लिए मारा-मारी मची हुई है। इसके लिए कितनी ही तिकड़में, कुचक्र व षड्यंत्र रचाये जाते हैं। इन षड्यंत्रकारियों को केवल अपने हितों की ङ्क्षचता है, फिर इसके लिए कितनी जानें क्यों न चली जायें, कितने ही घर क्यों न बर्बाद हो जायें? राष्ट्र की नींव कितनी ही क्यों न खोखली होती जाय? हर कीमत पर ये खास बने रहना चाहते हैं। ऐसे खास लोगों को आम लोगों की कोई ङ्क्षचता नहीं है। ये तो बस धर्म और जाति के नाम बँटवारे करना चाहते हैं। भरपूर भ्रष्टाचार करके तिजोरी भरने की ख्वाहिश इन्हें व्याकुल किये रहती है। ऐसे खास लोगों के कौरवी कुचक्र को ध्वस्त करना केवल युवा पराक्रम का कार्य है। युवा ही समय-सर्प की गति को मनचाहा मोड़ देकर उसे विषहीन कर सकते हैं।
कई युवाओं ने ऐसा किया भी है। ऐसा ही एक युवा नाम षणमुखम् मंजूनाथन का है। आई.आई.एम. के छात्र रहे २७ वर्षीय मंजूनाथन इण्डियन ऑयल कारपोरेशन में मैनेजर थे। उनकी नियुक्ति उत्तरप्रदेश के लखीमपुर खीरी में थी। युवा मंजूनाथन ने अपनी शहादत से पहले उन तेल माफियाओं के खिलाफ अभियान छेड़ रखा था, जो तेल में मिलावट का गैर कानूनी कारोबार सालों से बेरोक चला रहे थे। मारे जाने से पहले उन्हें कई धमकियाँ मिली थीं, उन्हें अनेकों प्रलोभन दिये जाने के भी प्रस्ताव थे। पर युवा मंजूनाथन की ईमानदारी इन सबके सामने डिगी नहीं। कायर अपराधियों ने एक दिन उन्हें धोखे से मार दिया। मारे जाने से कुछ दिन पहले मंजूनाथन ने अपने साथियों से कहा था कि मेरे शरीर पर हरी या खाकी वर्दी तो नहीं है, पर मैं देश का सच्चा सिपाही हूँ। मुझे जो जिम्मेदारी मिली है उसे मैं पूरी निडरता से निभाऊँगा। उनकी दुःखद मृत्यु ने जहाँ सरकार व प्रशासन को शर्मसार किया, वहीं रचना और निर्माण में लगे कई संकल्पों, संगठनों विशेषतौर पर युवाओं ने इस शहादत को अपनी ताकत बनाया। भ्रष्टाचार के खिलाफ हमला बोलने और उसे बेनकाब करने की मुहिम को न केवल इससे गति मिली, बल्कि देश को अपने बेहतर भविष्य के लिए भरोसा जागा।
अपने साथ कई युवा लड़के-लड़कियों को लेकर राष्ट्रीय सौहार्द्र के लिए काम कर रही सुशोभा बर्वे के अनुभव भी प्रेरक हैं। अपनी व्यावसायिक एवं फिल्मी चमक के लिए पहचानी जाने वाली मुम्बई कई दुःखद दंगों के दागों के लिए भी जानी जाती है। सुशोभा बर्वे ने युवाओं के साथ मिलकर यहाँ दंगों के दागों को मिटाने और दोस्ती का दौर कायम करने का काम किया। मुम्बई के भिण्डी बाजार इलाके में रहने वाले हिन्दू-मुसलमान कभी आपसी भाईचारे की मिसाल हुआ करते थे, परन्तु १९९२ के दंगों के बाद यह भाईचारा कायम न रहा। इसे कायम करने के फेर में सुशोभा को कई नाकामियाँ हाथ लगीं, परन्तु अपने हिन्दू-मुसलमान युवा सहयोगियों के साथ वे डटी रहीं।अंत में उन्हें धीरे-धीरे सफलता मिलने लगी। पिछले साल वहाँ एक मौलवी साहब नमाज के लिए जा रहे थे, तभी किसी शरारती ने उनके ऊपर मछली का शोरबा गिरा दिया। वे सिर से पाँव तक भीग गये। उनके कपड़े खराब हो गये। ऐसा लगा कि फिर से एक दंगा हो जायेगा। लेकिन तभी कुछ हिन्दू युवाओं ने समझदारी दिखाई। वे बड़े आदर से मौलवी साहब को अपने घर ले गये। वहाँ उनके कपड़े बदलवाये। हिन्दू लड़कियों ने उनके कपड़े धोकर साफ किये। जिस किसी ने यह शरारत की थी, सबने उसे मिलकर डाँटा। यह सब बीस-पच्चीस मिनट में समाप्त हो गया। मौलवी साहब अपनी नमाज पढ़ने चले गये। आधे घण्टे बाद जब पुलिस आयी तब वहाँ शान्ति थी। दोस्ती का दौर फिर से कायम हो रहा था। यह सब किया वहाँ के युवाओं ने, अपने राष्ट्रीय कर्त्तव्य को पूरा करने के लिए।
पैंतीस वर्षीय युवा बस चालक कुलदीप ङ्क्षसह की कथा भी राष्ट्रीय कर्त्तव्य की प्रेरणा है। दीवाली आने वाली थी और दिल्ली के लोग खरीददारी के लिए उमड़े पड़ रहे थे। तभी बम विस्फोटों की एक शृंखला ने उनकी खुशियाँ छीन ली, लेकिन गोविन्दपुरी के निवासी इस बहादुर युवा बस चालक के कारण प्रसन्न थे, क्योंकि उसने अपने साहस से कई जानें बचा ली थी। हत्यारे आतंकियों ने दिल्ली परिवहन निगम की एक बस में बम रख दिया था। लेकिन वह कुलदीप की होशियारी के कारण लोगों की जानें नहीं ले पाया। हालाँकि कुलदीप को इसमें अपना दाहिना हाथ खोना पड़ा। आँखों की दृष्टि वापस पाने के लिए वह अभी तक संघर्ष कर रहा है।
इस घटना की याद करते हुए कुलदीप ङ्क्षसह का कहना है कि बस की एक सीट पर बैग में बम रखा था। उस बम में तीन तारें थीं। चकराये कुलदीप ने उसमें से किसी तार को नहीं खींचा। उसने बैग उठाया और तेजी से बस से दूर दौड़ पड़ा। उसने यह बम वाला बैग एक पेड़ के पास रखा और जैसे ही वापस दौड़ने के लिए मुड़ा, बम में विस्फोट हो गया। हालाँकि इसमें उनको दाहिना हाथा गँवाना पड़ा, आँखों की रोशनी मद्धिम हो गयी, कानों ने सुनना कम कर दिया। इस सबके बावजूद उसका यही कहना कि मैं अपने देश के कुछ काम तो आया। फौजी भाई लड़ाई के समय तो जानें तक गँवाते हैं, मैंने तो कुछ खास नहीं गँवाया।
सुनामी के दौरान उसके बाद भी नागपट्टनम में समाज एवं सरकार से ठुकराये गये खानाबदोश जिन्दगी जी रहे आदियान और नरिकोरवार्स समुदायों के बच्चों की शिक्षा के लिए लगातार जुटी फिल्मी निर्माता रेवती राधाकृष्णन भी अपने राष्ट्रीय कर्त्तव्य की भावना से ओतप्रोत हैं। इस कार्य में उनकी सहयोगी बनी है समुदाय की २७ वर्षीय जीवा, जिन्हें अपने भारतवासी होने पर गर्व है। रेवती एवं उनके युवा साथियों के प्रयास से स्थापित वनाविल ट्रस्ट इन दोनों समुदाय के ७० बच्चों की शिक्षा का बीड़ा उठाये हैं। इस समुदाय के युवाओं के लिए रेवती प्रेरणा पुञ्ज बनी हुई हैं।
ऐसे ही राष्ट्रीय कर्त्तव्य की भावना से लबरेज हैं कश्मीरी युवा मुश्ताक अहमद जरगर, जिन्होंने अपने दो सहयोगियों रियाज अहमद और सैय्यद एजाज के साथ मिलकर कश्मीर के भूकम्प पीड़ितों के लिए प्राण-पण से काम किया। मुश्ताक को अपने कश्मीरवासी और भारतवासी होने पर गर्व है। वे कहते हैं कि भारत देश के झण्डे में तीन रंग हैं-केसरिया, सफेद और हरा। ये क्रमशः बलिदान, शान्ति एवं समृद्धि के प्रतीक हैं। राष्ट्रीय कर्त्तव्य को पूरा करने के लिए आज के युवाओं की भावनाओं को भी इन तीन रंगों में रँगा होना चाहिए। युवाओं की बलिदानी भावना से ही राष्ट्र में शान्ति स्थापित होगी और तभी देश समृद्ध होगा। प्रत्येक युवा को अपने राष्ट्रीय कर्त्तव्य के लिए स्वयं प्रेरित होकर दूसरों को भी प्रेरित करना चाहिए। साथ ही उन्हें अपनी संस्कृति को समझने एवं संस्कारवान् बनने के लिए कदम बढ़ाना चाहिए।