स्वयं को गढ़ना और दूसरों को गढ़ने में सहयोग करना यदि युवाओं की जीवन नीति बन जाय तो देश के यौवन में नये प्राण फूँके जा सकते हैं। युवा गुमराह होते ही इस कारण हैं, क्योंकि प्रतिभाशाली एवं सफल युवक-युवतियों को इन्हें निहारने एवं गढ़ने-तराशने की फुरसत नहीं होती। ये तो सफलता के नये-नये शिखरों पर चढ़ने में इस कदर खो जाते हैं कि इन्हें गिरे हुओं को उठाने का होश ही नहीं रहता। युवा जीवन के पुरोधा युगाचार्य स्वामी विवेकानन्द ने राष्ट्र के युवाओं से बीते युग में कहा था- ‘Be & Make’ अर्थात् ‘‘बनो और बनाओ।’’ स्वामी जी का यह वचन आज भी महामंत्र की तरह है। इसका अनुष्ठान करके राष्ट्र के युवा समस्याओं के कारण नहीं, बल्कि उनके निवारण व निराकरण के साधन बन सकते हैं।
एक युग में स्वामी विवेकानन्द के दक्षिण भारतीय युवा शिष्य आलाङ्क्षसगा तथा विजय कृष्ण गोस्वामी के शिष्य व डॉन पत्रिका के तत्कालीन सम्पादक सतीश चन्द्र मुखोपाध्याय ने इसे एक अभियान का रूप दिया था। उन्होंने राष्ट्र के प्रतिभाशाली युवाओं का आह्वान करते हुए कहा था कि वे अपनी विशिष्ट प्रतिभा, समय व साधन के बड़े हिस्सों को अन्य युवाओं के प्रतिभा परिष्कार व उनके व्यक्तित्व निर्माण में लगाएँ। उनके इस भावपूर्ण आह्वान को उस युग के युवाओं ने सुना था और वे इस महत्कार्य में संलग्न हुए थे। यही वजह थी कि स्वाधीनता के महासमर में दृढ़ चरित्र एवं दृढ़ प्रतिज्ञ बलिदानी युवाओं की कमी कभी आड़े नहीं आयी। एक शहीद हुआ, तो दूसरे ने क्रान्ति की मशाल थाम ली। सिलसिला चला और चलता गया। आज यदि युवाओं को समस्याएँ घेरे हैं, उनकी प्रतिभा का उफान थमा है, तो इसके पीछे प्रतिभाशाली एवं व्यक्तित्ववान् युवाओं का दूसरों का सहयोग न करना है।
सहयोग की प्रक्रिया चल पड़े तो एक के बाद एक नये प्रतिभाशाली एवं व्यक्तित्ववान् युवा राष्ट्र व समाज को मिलते रहेंगे। आज के माहौल में नकारात्मक एवं स्वार्थी वृत्तियाँ बढ़ी जरूर हैं, फिर भी ऐसे लोग हैं, जो अपने प्रेरक कार्यों से प्रकाश दीप बने हुए हैं। रामानुजम स्कूल एवं सुपर-३० गु्रप का संचालन करने वाले गणित विशेषज्ञ आनन्द कुमार इन्हीं में एक हैं। आनन्द कुमार बिहार प्रान्त के पटना शहर में कुम्हारा क्षेत्र के रहने वाले हैं। गरीबी की टीस को इन्होंने अपने अध्ययन काल में अनुभव किया था। यह दर्द ही इनकी प्रेरणा बन गया और इन्होंने निश्चय किया कि गरीब युवा छात्र-छात्राओं की प्रतिभा निखारने में कोई कोर-कसर न रखेंगे। इसी संकल्प के साथ इन्होंने रामानुजम स्कूल एवं सुपर-३० गु्रप की स्थापना की।
उनका यह रामानुजम स्कूल बारहवीं कक्षा तक के विद्यार्थियों के लिए है। इसमें विद्यार्थियों से सामान्य शुल्क लिया जाता है। इस शुल्क से जो धन जुटता है, उससे सुपर-३० योजना चलायी जाती है। इस सुपर-३० के लिए हर वर्ष तीस निर्धन प्रतिभाशाली छात्र-छात्राओं का चयन किया जाता है। ये निर्धन प्रतिभाएँ समाज के हर वर्ग से होती हैं। इनमें अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़े वर्ग और सवर्ण सभी जातियों के नवयुवा होते हैं। जाति-वंश एवं मानव मात्र की समानता आनन्द कुमार का प्रथम गणितीय सूत्र है। सुपर-३० के लिए प्रतिभाशाली और निर्धन होना ही योग्यता की कसौटी है। आनन्द कुमार का कहना है कि अमीरों के लिए बहुत से कोचिंग संस्थान (Coaching Institute) हैं, पर गरीब प्रतिभाएँ तो यूँ ही विनष्ट हो जाती हैं। हमें इन्हें किसी भी कीमत में बचाना है।आरक्षण के इस दौर में जब जातीयता के भेद-भाव की दीवारें समाज को बाँट रही हैं, ऐसे में आनन्द कुमार के प्रयत्न प्रेरक हैं। आनन्द कुमार के इस कार्य में बिहार पुलिस बल के अतिरिक्त महानिदेशक श्री अभयानन्द वरिष्ठ सहयोगी की भूमिका निभा रहे हैं।
भारतीय पुलिस सेवा (आई.पी.एस.) के वरिष्ठ अधिकारी अभयानन्द विलक्षण लोकसेवी हैं। ये अपनी व्यस्त दिनचर्या में से समय निकालकर सुपर-३० के छात्रों को भौतिक विज्ञान का शिक्षण करते हैं। आनन्द कुमार इन्हें गणित का शिक्षण देते हैं। सुविधाओं से रहित इस पाठशाला के विद्यार्थी एवं शिक्षकों दोनों को अपने श्रम-पुरुषार्थ एवं ईश्वर की कृपा पर सम्पूर्ण विश्वास है। इन सबके पुरुषार्थ एवं ईश्वरनिष्ठा के समन्वय का ही सुफल है कि सुपर-३० शुरू होने के साल ही ३० छात्रों में १८ का चयन आई.आई.टी. के लिए हुआ। एक साल बाद यह संख्या ३० में से २६ पहुँच गयी। इस साल यह बढ़कर ३० में से २८ हो गयी है। इसमें आधे से अधिक छात्र अन्य पिछड़े वर्ग एवं अनुसूचित जाति के हैं। इन सफल छात्रों में एक दिव्यांशु ने सी.बी.एस.ई की १२वीं परीक्षा ९१ प्रतिशत अंकों में उत्तीर्ण करने के साथ आई.आई.टी की प्रवेश परीक्षा में १०वाँ स्थान प्राप्त किया है।
आनन्द कुमार एवं अभयानन्द के प्रयोग को प्रायः सभी समाचार माध्यमों ने प्रमुखता से प्रकाशित किया है। जापान के राष्ट्रीय टी.वी. ने तो इस पर डाक्यूमेंट्री फिल्म बनाने की प्रक्रिया भी प्रारम्भ कर दी है। इस प्रक्रिया के तहत जापान प्रसारण नेटवर्क के निदेशक, सुजुकी और सुमोतोमो ट्रस्ट बैंक research institute (अनुसंधान संस्थान) टोकियो के मुख्य अर्थशास्त्री योचोहितो पहुँचे थे। यहाँ उन्होंने देखा कि पाँच-पाँच छात्रों की टीम किसी तरह एक टीन की छत के नीचे अपनी प्रतिभा को निखार रही है। यहाँ के पत्रकारों के दल से बातचीत में उन्होंने यह बताया कि आनन्द कुमार एवं अभयानन्द द्वारा किये जा रहे इस कार्य की पहली जानकारी उन्हें एक जापानी पत्रिका से प्राप्त हुई थी। इस पत्रिका ने इसका ब्यौरा बड़ी प्रमुखता से प्रकाशित किया था। यहाँ आकर वे आश्चर्यचकित हैं कि भारत देश का भावी इंजीनियर कितने कठिन संघर्ष से तैयार हो रहा है। उसकी इस कठिन साधना का ही सत्परिणाम है कि भारतीय इंजीनियर विश्व के हर कोने में अपनी सर्वोत्कृष्टता साबित कर रहे हैं।
जापानी टीम के दोनों प्रमुख सदस्य इस बात से भी भाव-विह्वल थे कि अपनी कठिन आॢथक स्थिति के बावजूद आनन्द कुमार ने सुपर-३० समूह की पढ़ाई, रहना, खाना, निःशुल्क कर रखा है। वह अपने तन-मन-धन सभी का नियोजन करके युवा पीढ़ी को निखारने-तराशने में जुटे हैं। योचोहितो का मानना है कि इस तरह यह न केवल भारत देश के लिए, बल्कि विश्व के सभी देशों के लिए महत्त्वपूर्ण है। दुनिया के हर देश में युवा पीढ़ी को गढ़ने के लिए इसी तरह के प्रयोग किये जाने चाहिए और आनन्दकुमार की ही तरह और भी प्रतिभाशाली युवाओं को आगे आना चाहिए। सहयोग का यह सिलसिला चल पड़े, तो कारवाँ बढ़ता जायेगा और राह-ए-मंजिल आसान हो जायेगी।
युवा पीढ़ी को किसी एक क्षेत्र में नहीं, बल्कि उन्हें जीवन के सभी क्षेत्रों में आगे बढ़ना है। हर क्षेत्र में उन्हें अपनी प्रतिभा और व्यक्तित्व की यशस्वी छाप छोड़नी है। इस महत् कार्य के लिए उनके जीवन को सँवारने-निखारने की प्रक्रिया तेज होनी चाहिए। प्रतिभाशाली युवा व्यक्तित्व इस कार्य के लिए समय एवं धन का नियोजन करने में पीछे न रहें। दीप से दीप जलाने की यह प्रक्रिया यदि चल पड़ी, तो पूरा देश जगमग हुए बिना न रहेगा। युवाओं को इसे राष्ट्र कर्त्तव्य के रूप स्वीकार करना चाहिए।