युवा भारत के निर्माण के लिए युवाओं को साहसिक कदम उठाने होंगे। एक नजर आँकड़ों पर डालें तो सांख्यिकी का यह जाना-माना तथ्य है कि भारत अभी भी युवा देश है। इसकी आधी जनसंख्या २५ साल से कम उम्र वालों की है। १९९१ ई. की जनगणना के अनुसार देश में लगभग ३४ करोड़ युवा थे, जिनकी २०१६ तक बढ़कर ५१ करोड़ हो जाने का अनुमान है। वर्ष २००३ की राष्ट्रीय युवानीति के तहत १३ से ३५ वर्ष के लोगों को युवा माना गया है। आज लगभग ४० प्रतिशत आबादी ऐसे युवाओं की है। इनमें से लगभग ७० प्रतिशत आबदी ३५ साल से कम उम्र वालों की है। ७५ करोड़ वयस्कों में लगभग आधे २५ साल के आसपास हैं। गणना कहती है कि १९८० के बाद पैदा हुए लगभग ६० करोड़ भारतीय हैं। इनमें से भी ग्रामीण युवा कुल युवा आबादी का लगभग ७० प्रतिशत है।
सांख्यिकी गणना की ये बातें देश के युवा होने का गणितीय सच है। लेकिन राष्ट्रीय जीवन में वास्तविक यौवन आज भाव भरी उमंगों, कुछ कर गुजरने के लिए मचलते प्राणों का सच है। यौवन वह है जहाँ क्रिया, भावना एवं विचारों में हर क्षण, हर पल ऊर्जा मचलती रहती है। यौवन वहाँ होता है, जहाँ कौशल, संवेदना एवं ज्ञान के नये-नये आयाम प्रकट होते हैं। यौवन अपना परिचय साहस भरे बलिदानों की परम्परा के रूप में देता है। जिसमें थोड़ा सा भी डर है, वह कभी युवा नहीं हो सकता, फिर भले ही उसकी आयु कुछ भी क्यों न हो। डरना तो बचपन या बुढ़ापे का काम है। ये दोनों सुरक्षा माँगते हैं, जबकि यौवन सुरक्षा देता है।
यदि हमारे देश का नेतृत्व किसी महाशक्ति की घुड़कियों के कारण अग्नि-३ के परीक्षण में बहाने बनाता है और बाद में उसकी मिन्नतें करके अनुमति मिलने के बाद परीक्षण की बात करता है तो कहना यही होगा कि अभी देश के युवा होने में कुछ कसर है। यदि देश की ललनाओं की लाज लूटी जाती रहे और इन लुटेरों की बाँह मरोड़ने का साहस किसी में न हो तो कहना यही होगा कि देश के युवा होने में कुछ कसर है। आतंकी हमारे मंदिरों पर घात लगाते रहें और हमारे अन्दर उन्हें नेस्ताबूद करने की हिम्मत न जागे तो अभी देश के यौवन में कुछ खोट है। कश्मीर में किये जा रहे पड़ोसी देश के कुत्सित प्रयासों के बावजूद हम उससे मित्रता की याचना करें तो यही कहना होगा कि देश के युवा होने में अभी कुछ बाकी है।
अपना भारत देश युवा हो चला इसकी पहचान तो यह है कि भारत के ज्ञान से विश्व की आँखें चौंधिया जायें। भारत देश की शक्ति और साहस के सामने बर्बर आतंकियों के दिल दहल जाये। जब लाज लूटने वालों के सीने फटने लगे और कलेजे कसमसाने लगे। जब भारत माता के समृद्धि शृंगार की आभा से विश्व आलोकित हो जाये। ऐसा हो तब कहा जायेगा कि युवा भारत विनिॢमत हो चला है। ऐसा करने की राहें कठिन जरूर हो सकती हैं, पर इसमें असम्भव जैसा कुछ भी नहीं है और अगर असम्भव हो भी तो इसे सम्भव कर दिखाना देश की तरुणाई का काम है। इसी तरुणाई को पुकारते परम पूज्य गुरुदेव का गीत है-‘अंधकार कुछ सूझ न पड़ता, होता है हिमपात।
जग की सारी शक्ति लगाये बैठी तेरी घात॥
इन्द्र वज्र गिरता है ऊपर, लेता सिन्धु उफान।
मेरु उड़े जाते हैं, ऐसा आता है तूफान॥
नष्ट-भ्रष्ट करने आते हैं, प्रलय मेघ घनघोर।
पर तेरा तो पथ निश्चित है, बढ़ता जा उस ओर॥
देख-देख इन बाधाओं को, पथिक न घबरा जाना।
सब कुछ करना सहन, किन्तु मत पीछे पैर हटाना॥’
युवाओं में यह साहस जगे तो उन्हें युवा आन्दोलन के प्रवर्तन करने की डगर पर चल पड़ना चाहिए।