गीत संजीवनी-8

प्रभाती कोई दूर पर

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प्रभाती कोई दूर पर गा रहा है।
बढ़ो, सामने युग नया आ रहा है॥

नयी रूप- रेखा बनी जिन्दगी की।
नयी चाँदनी अब खिलेगी खुशी की॥
हृदय प्यार से मानवों का भरेगा।
नमन शत धरा को गगन अब करेगा॥

नया चन्द्रमा शान्ति बरसा रहा है।
नया ज्ञान का सूर्य मुस्का रहा है॥

पगों में सभी के अतुल शक्ति होगी।
मनों में सभी के नवल भक्ति होगी॥
खुला प्यार का स्रोत जी भर नहालो।
नई रागिनी पर नये गीत गालो।

सुधा धार में वेग सा आ रहा है।
तृषित- सा मनुज शान्ति कुछ पा रहा है॥

जगेगी नवल चेतना मानवों की।
मिटेगी असद् कल्पना दानवों की॥
धरा पर नया स्वर्ग बस कर रहेगा।
तुम्हारी कथा विश्व मानव कहेगा॥

कि, इतिहास नूतन रचा जा रहा है।
मनुज देवता अब बना जा रहा है॥

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