गीत संजीवनी-8

भक्ति की झंकार

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भक्ति की झंकार उर के, तारों में कर्तार भर दो॥

लौट जाये स्वार्थ, कटुता, द्वेष, दम्भ निराश होकर।
शून्य मेरे मन भवन में, देव इतना प्यार भर दो॥

बात जो कह दूँ हृदय में, वो उतर जाये सभी के।
इस निरस मेरी गिरा में, वह प्रभाव अपार भर दो॥

कृष्ण के सदृश सुदामा, प्रेमियों के पाँव धोने।
नयन में मेरे तरंगित, अश्रु पारावार भर दो॥

पीड़ितों को दूँ सहारा, और गिरतों को उठा लूँ।
बाहुओं में शक्ति ऐसी, ईश सर्वाधार भर दो॥

रंग झूठे सब जगत के, ये प्रकाश विचार देखा।
क्षुद्र जीवन में सुघड़ निज, रंग परमोदार भर दो॥


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