गीत संजीवनी-8

पुकारती नयी धरा

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पुकारती नयी धरा- पुकारता नया गगन।
नये मनुष्य के लिए -नवीन प्राण चाहिए॥

दिशाएँ विश्व की सभी, अनीतिपूर्ण आज हैं।
कि भावना सिमट रही, बिखर रहा समाज है॥
मिटा कुरीतियाँ सभी, हटा हरेक गन्दगी।
विनाश पाप का करो, कि मुस्कुराये जिन्दगी॥
पुकारती मनुष्यता- निहारते सजल नयन।
भविष्य को सँवारने- नया उफान चाहिए॥

धधक रही मशाल क्रान्ति की, सम्हाल लो सखे!।
चला कफन पहन के, कारवाँ उठो चलो सखे!॥
स्नेह झोंकते रहो, कि ज्योति यह बुझे नहीं।
जोश उमड़ता रहे कि, कारवाँ रुके नहीं॥
पुकारती हृदय तपन- पुकारता नया हवन।
शहीद सी लगन लिए- स्व चाहिए॥

रचो नवीन सूर्य अब, नये विहान के लिए।
रचो नवीन तान तुम, नवीन गान के लिए॥
रचो मनुष्य भी नया, कि ईश्वरत्व भी नया।
रचो सुनीतियाँ नयी, कि विश्व भी नया- नया॥
पुकारती नयी लगन- पुकारता नया सृजन।
नये भविष्य के लिए -सतत् प्रयास चाहिए॥

मुक्तकः-

उठो तुमको धरित्री का नया श्रृंगार करना है।
उठो तुमको विमल कर्तव्य का- भण्डार भरना है॥
उठो तुमको नये संकल्प- की भेरी बजाना है।
उठो तुमको नये निर्माण के- जौहर दिखाना है॥

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