गीत संजीवनी-4

आज दाँव पर लगा

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आज दाँव पर लगा

आज दाँव पर लगा देश का, स्वाभिमान सेनानी।
और पड़ा सोया तू कैसे, जाग वीर बलिदानी॥
सोया जाग वीर बलिदानी॥

भारत माँ ने था तुझको, पौरुष का पाठ पढ़ाया।
बलि पथ पर तूने आगे ही, आगे कदम बढ़ाया॥
लेकिन आज कौन सी तुझ पर,हाय! पड़ गयी छाया।
सब कुछ लुटा जा रहा लेकिन, तुझको होश न आया॥
रे दृग खोल और पढ़ पिछली, गौरवपूर्ण कहानी।

विधर्मियों के छद्म जाल में, फंसा देश यह सारा।
धर्म और ईमान मिट रहा, है अस्तित्व हमारा॥
भाई को भाई से अपने लड़वाते- कटवाते।
हाय! हन्त हम किन्तु न उनकी चाल समझ हैं पाते॥
अपने ही सब रिश्ते- नाते टूट रहे जिस्मानी।

अपराधों का असुर चतुर्दिक्, झण्डा गाड़ रहा है।
बहिन- बेटियों की इज्जत से, हो खिलवाड़ रहा है॥
हाहाकार मचा धरती पर, भारी मारामारी।
ऋषियों की सन्तानों! तुम पर, क्यों चढ़ रही खुमारी॥
जाग राष्ट्र के पौरुष जागे, सोई हुई जवानी।

सूरज रुके, चन्द्रमा रोये, रीते सागर का जल।
आज हवाओं में करनी है, फिर से ऐसी हलचल॥
इज्जत लगी दाँव पर अपनी, जागो उसे बचाओ।
नयी विचार क्रान्ति का आओ, फिर से बिगुल बजाओ॥
उदासीन अर्जुन फिर से पढ़, गीता वाली वाणी।

मुक्तक-

भारत माता के सपूत हम, इसकी शान बढ़ायेंगे।
सबको आपस में मिल- जुलकर, जीना हम सिखलायेंगे॥
हमको प्राणों से भी प्यारी, इस पर बलि- बलि जायेंगे।
तेरे लिये जियेंगे माता, तेरे हित मर जायेंगे॥
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