गीत संजीवनी-4

आओ शिव संकल्प करें

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आओ शिव संकल्प करें

आओ! शिव संकल्प करें, आओ! युग का शिल्प करें।
तरुणों में नव, प्राण जगाकर, जीवन धन्य करें॥

जाग उठी सोई तरुणाई, चिंतन ने छूली गहराई।
मंथन के अमृत को पीकर, काया कल्प करें॥

विष घूटों को राष्ट्र पिये क्यों? निष्प्राणों सा राष्ट्र जिये क्यों।
भोगवाद के चक्कर में क्यों, आयु अल्प करें॥

क्यों अज्ञान- तिमिर में भटकें, क्षणिक प्रलोभन में क्यों अटकें।
ज्ञानामृत का अभिसिंचन कर, ‘मुक्ति’ विकल्प करें॥

मुक्त करें जीवन पतझर से, दे उछाल बासन्ती स्वर से।
तरुणाई का मंत्र फूँक दें, निष्क्रियता स्वल्प करें॥

तरुण चल पड़े गाँव,नगर में, शंख फूँकते डगर- डगर में।
युगशिल्पी- सैनिक का साहस, तनिक न स्वल्प करें॥

राष्ट्र सुदृढ़,समृद्ध बनाएँ, युग नेतृत्व सामर्थ्य जगाएँ।
विश्व राष्ट्र के लिए विश्व का, कायाकल्प करें॥

मुक्तक-

जवानी आँधियों तूफान से ही बात करती है।
जवानी मौत भी हो सामने दो हाथ करती है॥

जवानी जब करें संकल्प, तो नूतन सृजन होता,
मनुज में देव भू पर स्वर्ग, का श्रृंगार करती है॥
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