गीत संजीवनी-4

आज युग पुकारता

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आज युग पुकारता

आज युग पुकारता, जाग नौजवान रे।
मोर्चे सम्भाल रे, सम्भाल तू कमान रे॥

दुर्दशा ग्रसित समाज, हाय छटपटा रहा।
भ्रष्ट हुआ तंत्र राष्ट्र, सम्पदा मिटा रहा।
मुँह सिला है न्याय का, मौन है विधान रे॥

खोखला समाज को, बना रही कुरीतियाँ।
मृत्युभोज हो रहे, झुलस रही हैं बेटियाँ।
क्या नहीं रहा जवान, खून में उफान रे॥

राष्ट्र और संस्कृति, पर प्रहार हो रहा।
बढ़ रही अनीतियाँ, अंधकार हो रहा।
दे चुनौतियाँ उन्हें, वीर वक्ष तान रे॥

हाँथ ले मशाल ज्वाल, चीर अंधकार तू।
संस्कार को निखार, काट दे विकार तू॥
कर विजय प्रयाण आज, लक्ष्य है महान रे।

मुक्तक-

राष्ट्र विपदा से ग्रसित है जवानों,
हर दिशा ही दिग्भ्रमित है नौजवानों।

तुम्हीं पर आशा टिकी है राष्ट्र की अब,
तुम्हारी ताकत विदित है नौजवानों॥

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