गीत संजीवनी-4

उठो जवान देश के

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उठो जवान देश के

उठो जवान देश के- माँ भारती पुकारती॥
ज्योति प्राण की जलाओ- करो माँ की आरती॥

है मुकुट सजा हुआ- हिमालय इसकी शान है।
धो रहा है पाँव हिन्द- सागर महान है॥
बह रही पवित्र गंग- पाप से उबारती॥

राम, कृष्ण की ये भूमि- बुद्ध महावीर की।
अवतारों संतों की- नानक,कबीर की॥
कण- कण में इस धरा के- शक्तियाँ विराजती॥

बिस्मिल, आजाद, भगतसिंह से सपूत हैं।
जिनके बलिदान राष्ट्र- शान के सबूत हैं॥
घट न जाय इसकी- शान कहती माँ भारती॥

आज भेद- भाव, द्वेष- लोभ, मोह, बढ़ रहे।
भाई- भाई प्रेम छोड़- आपस में लड़ रहे॥
छोड़कर मनुष्यता- बनें हैं क्रूर स्वार्थी॥

ऋषि पुत्रों! युग ऋषि की- आपसे अपील है।
स्वयं के सुधार मेंऽ होती क्यों ढील है॥
आत्म शक्ति दुनियाँ को- पतन से उबारती॥

मुक्तक-


उठो जवानो बन तेजस्वी, सोया राष्ट्र जगाओ।
भारतीय संस्कृति की गरिमा, को फिर से दर्शाओ॥
ब्रह्म तेज से चमक उठे, फिर भारत देश हमारा।
और विश्व को आत्म ज्ञान का, फिर से मिले उजाला॥

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