गीत संजीवनी-14

होली के रंग से प्रभो

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होली के रंग से प्रभो, मन भी जरा रंगा दो।
सब द्वेष- द्रोह छूटे बस, प्यार वह जगा दो॥

मन का मलाल छूटे, खुलकर गुलाल खेलें।
मस्ती बरस रही है, जी भर के लाभ ले लें॥
आलस उदासियों को, अब दूर ही भगा दो॥

सब प्यार के रंगो की, पिचकारियाँ चलायें।
भदरंग हो गये जो, रंग में उन्हें डुबायें॥
तन- मन में जो लगा है, वह मैल सब हटा दो॥

सबको गले लगायें, कोई नहीं पराया।
उन सबको प्यार बाँटे, प्रभु ने जिन्हें बनाया॥
खुशियों का मस्तियों का माहौल प्रभु बना दो॥

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