गीत संजीवनी-14

प्रज्ञा पुत्रों की टोली

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प्रज्ञा पुत्रों की टोली, सबके हाथों में रोली।
पर्व है होली खुशियों का, चले हैं प्यार बढ़ाने॥

खुशियों से नहलायेंगे, मस्ती से सहलायेंगे।
सद्ज्ञान पढ़ो अब भाई, जन- जन को समझायेंगे॥

नन्हें दीपों की होली, ले ज्ञान फूल की झोली।
लेकर माँ का मधुर प्रसाद, चले हैं अलख जगाने॥

दुर्गुण से टकरायेंगे, सद्गुण को अपनायेंगे।
उल्लास जगाओ भाई, सबको यह सिखलायेंगे॥

हम आपस में हमजोली, अवसर शुभ है यह होली।
पाकर पावन आशीर्वाद, चले रस धार बहाने॥

अब फाग मधुर गाना है, संवेदन बरसाना है।
प्रेरक गायन अपनाकर, भक्ति रस बरसाना है॥

सज्जन बच्चों की टोली, लेकर अबीर और रोली।
माँ के सम्मुख हम गाकर, चले युगगान सुनाने॥

अब मन को नहीं दुखाओ, शुभ प्रेमभाव बतलाओ।
गन्दे किताब गानों को, होली में पुनः जलाओ॥

माँ के पुत्रों की टोली, त्यौहार पुनः है होली।
सतयुग का बन आधार, चले समता फैलाने॥

भावों का रंग उड़ेंलो, श्रद्धा, अबीर तुम ले लो।
बिछुड़ों को गले लगाकर, मुस्कान मधुर तुम ले लो॥

है ब्रह्मबीज की टोली, लेकर गुरुवर से रोली।
युग की पीड़ा हम गाकर, चले युगघोष सुनाने॥

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