गीत संजीवनी-14

प्यार तो है हमें जिन्दगी से

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प्यार तो है हमें जिन्दगी से बहुत, किन्तु जीना हमें हाय आता नहीं।
क्योंकि जिससे जिसे प्यार होता अधिक, वह उसे व्यर्थ यूँ ही गँवाता नहीं॥

चाहते हम सभी हैं युगों तक जियें, और जीवन सुधा हम हमेशा पियें।
शाल फटने लगे जिन्दगी की अगर, जिस तरह हो उसे आखिरी तक सियें।
प्यार तो जिन्दगी में सभी चाहते, किन्तु कोई उसे साध पाता नहीं॥

जिन्दगी यूँ सिसकती हुई जा रही, सम्पदा यह बिखरती हुई जा रही।
होश हमको नहीं हम चले जा रहे, यह धरोहर छिटकती हुई जा रही।
चाहते हैं सभी मौज काटें सदा, मौज करना हमें किन्तु आता नहीं॥

लाड़ ही लाड़ में हम ज़हर दे रहे, प्यार ही प्यार में प्राण ही ले रहे।
हम अनाड़ी पनें से जिये जिन्दगी, जी रहे शान से यह कहे जा रहे।
जिन्दगी की कला सीख पाये न हम, कोई ऐसी कला क्यों सिखाता नहीं?

हम मनुज हैं मनुज की अदा से जियें, मानवी संस्कृति सम्पदा से जियें।
यह मनुज जन्म पशुवत् बितायें न हम, श्रेष्ठ है तो उसे सभ्यता से जियें।
त्याग, तप, सादगी जिन्दगी की कला, वासना से कला का तो नाता नहीं।

क्यों न हम जिन्दगी की कला सीख लें, इस मनुज से सबक सीख लें।
काश! मरकर भी आ जाये जीना हमें, जिन्दगी का यही हौसला सीख लें।
जिन्दगी की कला जब निखरने लगे, देखकर कौन फिर मुस्कराता नहीं॥

मुक्तक-

जीने की तो चाह बहुत है, पर जीने का ढंग न आता।
जीवन है संघर्ष पर हमें, संघर्षों का संग न भाता॥
जीने को तो पशु भी जीते, पर मानव का ढंग अलग है।
जीवन के जीवन चित्रों में, हमको भरना रंग न आता॥

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